मैंगों शेक पी रहे रामलला
मंदिर के एक ट्रस्टी ने बताया कि इस समय आम का मौसम है, इसीलिए भगवान को कभी मैंगों शेक तो कभी आम का पना तो कभी समूचे आम का भोग लगता है। भोग व्यवस्था से जुड़े एक पदाधिकारी ने बताया कि इस समय मैंगो शेक का भोग लगता है। सिर्फ उत्सव पर ही पूड़ी-कचौड़ी, पक्का भोजन अर्पित किया जाता है।रामलला की पूजा-अर्चना के क्रम में नित्य अर्चक मंदिर में भोर तीन बजे पहुंचते हैं। वैदिक मंत्रोच्चार के बीच प्रभु को जगाते हैं। इसी के बाद कुछ तैयारी के साथ ही ब्रह्ममुहूर्त में चार बजे प्रभु को आम, सेब, केला व अन्य फलों का भोग लगाकर मंगला आरती की जाती है।
साढ़े चार बजे से किया जाता है रामलला का श्रृंगार
आरती के पहले फिर धूप, दीप, नैवेद्य, मधुपर्क दिया जाता है। इसके बाद लगभग साढ़े चार बजे से रामलला का श्रृंगार प्रारंभ होता है। इसमें भगवान को स्नान व नए वस्त्र धारण कराने के बाद छह बजे छिले हुए फल एवं मधुपर्क का अर्पण कर उनकी श्रृंगार आरती की जाती है। इसके पहले भी धूप-दीप व मधुपर्क का अर्पण होता है। इसके साथ श्रद्धालुओं के लिए दर्शन प्रारंभ कर दिया जाता है। फिर सुबह नौ बजे बाल भोग में कभी दलिया, कभी पराठा, आलू की टिक्की, तहरी तो कभी पोहा का भोग लगाया जाता है।
जानिए प्रभु की दिनचर्या
दिन के 12 बजे प्रभु को दाल-चावल, रोटी-सब्जी व दही, नारियल का पानी, लस्सी, अनार का जूस, मुसम्मी के जूस का भोग लगा मध्याह्न आरती की जाती है। इसके बाद गर्भगृह का पट बंद कर आराध्य को शयन कराया जाता है। एक बजे पुन: रामलला को जागरण कराकर उन्हें मधुपर्क, दीप धूप व नैवेद्य अर्पित कर दर्शन के लिए पट खोल दिया जाता है। शाम चार बजे बाल भोग में इस समय प्रायः: मैगों शेक दिया जाता है। इसी में कभी लस्सी, छाछ का अर्पण होता है। शाम सात बजे प्रभु को भोग लगाकर संध्या आरती की जाती है। इस दौरान मधुपर्क व लड्डू, पेड़ा का भोग लगाया जाता है। रात्रि साढ़े नौ बजे दाल-चावल, रोटी-सब्जी, दही आदि का भोग लगाकर उनकी शयन आरती की जाती है।