उत्तराखंड में सख्त भू-कानून और भारत के संविधान की 5वीं और छठी अनुसूची में शामिल किए जाने की मांग जोर पकड़ने लगी है। पहाड़ी क्षेत्रों में इन दोनों मुद्दों को लेकर लोग अब सड़कों पर उतर रहे हैं। विशेष अधिकारों की मांग कर रहा है। सवाल यह है कि 5वीं अनुसूची में शामिल होने से उत्तराखंड को क्या लाभ मिलेंगे?
साल 1874 के शेड्यूल्ड डिस्ट्रिक्ट एक्ट के तहत यह क्षेत्र कभी विशेष प्रशासनिक संरचना का हिस्सा था, लेकिन साल 1971 में इस कानून को समाप्त कर दिया गया, जिससे स्थानीय निवासियों को गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
1971 में शेड्यूल्ड डिस्ट्रिक्ट एक्ट के हटाने के बाद उत्तराखंड के लोगों को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। भूमि के अधिकार कमजोर पड़ गए और बाहरी लोगों द्वारा भूमि खरीदने और प्राकृतिक संसाधनों के शोषण की घटनाएँ बढ़ने लगीं। राज्य के मूल निवासियों के लिए रोजगार के अवसर कम हो गए, और पलायन एक बड़ी समस्या बन गई।
पांचवीं और छठी अनुसूची का महत्व
भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची जनजातीय क्षेत्रों में भूमि, संसाधनों और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए बनाई गई है। यह प्रावधान वर्तमान में हिमाचल प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान जैसे राज्यों में लागू है। वहीं, छठी अनुसूची पूर्वोत्तर के राज्यों जैसे असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिजोरम में लागू है। इसके तहत स्वायत्त जिला परिषदें बनाई गई हैं, जो कानून, न्याय और प्रशासनिक मामलों में निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं।
क्यों जरूरी है ये प्रावधान उत्तराखंड के लिए?
उत्तराखंड के निवासियों को जमीन के अधिकार, रोजगार के अवसर, और सांस्कृतिक संरक्षण की कमी के चलते कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। अगर पांचवीं और छठी अनुसूची को राज्य में लागू किया जाता है, तो भूमि और संसाधनों की रक्षा होगी। बाहरी लोगों द्वारा भूमि के अधिग्रहण पर रोक लगेगी और स्थानीय समुदायों के अधिकार सुरक्षित रहेंगे। रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा और युवाओं का पलायन रुकेगा। संस्कृति और परंपराओं का संरक्षण होगा। स्थानीय रीति-रिवाजों और सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करने में मदद मिलेगी। स्वायत्त शासन स्थापित होगा। स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने की क्षमता बढ़ेगी, जिससे प्रशासनिक समस्याओं का समाधान प्रभावी रूप से हो सकेगा।
उत्तराखंड के सामाजिक और राजनीतिक संगठनों ने केंद्र सरकार से मांग की है कि राज्य को पांचवीं और छठी अनुसूची के तहत शामिल किया जाए। उनका कहना है कि यह कदम न केवल राज्य की सांस्कृतिक और भौगोलिक विशिष्टता को संरक्षित करेगा, बल्कि यहां के लोगों को उनकी भूमि, संसाधन और रोजगार के अधिकार भी लौटाएगा।
उत्तराखंड को विशेष प्रशासनिक प्रावधानों के तहत लाना न केवल राज्य की समस्याओं का समाधान करेगा, बल्कि इसे एक स्थायी और समृद्ध भविष्य की ओर ले जाएगा। केंद्र सरकार से अपील है कि वह उत्तराखंड की भौगोलिक और सांस्कृतिक परिस्थितियों को समझते हुए इसे पांचवीं और छठी अनुसूची का हिस्सा बनाए, ताकि राज्य के निवासियों को न्याय, सुरक्षा और विकास के अवसर मिल सकें।
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