उत्तराखंड में बागेश्वर विधानसभा उपचुनाव के ऐलान के साथ ही उपचुनाव के लिए उल्टी गिनती शुरू हो गई है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस के सामने उत्तराखंड में उपचुनावों का इतिहास पलटने की भी चुनौती बनी हुई है।  दरअसल उत्तराखंड में अब तक 14 बार विधानसभा उपचुनाव हो चुके हैं, जिनमें से 13 बार सत्ता पक्ष को ही विजय मिली है। सिर्फ एक बार प्रदेश में उत्तराखंड क्रांति दल को जीत मिली थी। उस समय प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी।

लोकसभा चुनावों का खाका होगा तैयार 

बागेश्वर उपचुनाव पर पूरे प्रदेश की निगाह टिकी हुई हैं। बागेश्वर उपचुनाव बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों के लिए महत्वपूर्ण है। इस उपचुनाव से ही प्रदेश में लोकसभा चुनावों का खाका तैयार होगा। इसके अलावा सबकी निगाहें कैंडिडेट्स पर भी टिकी हुई हैं। खासकर लोग जानना चाहते हैं की आखिरकार स्वर्गीय कैबिनेट मंत्री चंदन राम दास का राजनीतिक वारिस कौन बनता है। फिलहाल भाजपा अपनी तैयारी में जोर शोर से लगी हुई है। पार्टी के पदाधिकारी तैयारियां पूरी होने की बात कर रहें हैं, लेकिन कैंडिडेट के बारे में कुछ भी कहने से बच रहे हैं।

कांग्रेस के लिए ये है चुनौती 

बागेश्वर उपचुनाव को लेकर कांग्रेस भले ही ताल ठोक रही हो और जीत का दावा कर रही हो लेकिन विपक्ष में रहते हुए उपचुनाव में सीट जीतने की चुनौती कांग्रेस के सामने है। भले ही इस समय सारे दिग्गज एक मंच पर नजर आ रहे हों लेकिन चुनावी रणनीति और जनता के सामने वोट के लिए एकजुटता दिखाना कांग्रेस के लिए काफी मुश्किल भरा काम हो सकता है।

10 सितंबर से पहले उपचुनाव की प्रक्रिया होगी पूरी
बता दें उपचुनाव के लिए नामांकन जमा करने की अंतिम तिथि 17 अगस्त है जबकि 21 अगस्त को नाम ली वापस लिए जा सकते हैं। 5 सितंबर को मतदान और 8 सितंबर को मतगणना होगी। मुख्य निर्वाचन अधिकारी डॉक्टर वी षणमुगम ने अधिसूचना जारी करते हुए बताया है कि 10 सितंबर से पहले उपचुनाव की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी। उपचुनाव के मद्देनजर बागेश्वर में धारा 144 लागू कर दी गई है। सत्तारूढ़ दल भाजपा ने उपचुनाव के लिए प्रत्याशियों का पैनल तय किया है।  प्रदेश पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में सर्वसम्मति से उपचुनाव के लिए तीन नामों का पैनल तैयार किया है जिसे केंद्रीय पार्लियामेंट्री बोर्ड को भेजा जा रहा है।