शंखनाद INDIA/दिनकर प्रकाश जोशी/सोमेश्वर-: 

                                                         ‘’ कुमाऊँ में प्रचलित दंतकथाएँ ‘’

परिचय-

कुमाऊँ क्षेत्र की अपनी अलग पहचान है। यह पहचान यहाँ की कला,संस्कृति तथा लोकसाहित्य के अनूठेपन के कारण है। यहाँ मानवीय अभिव्यक्ति हमें दो रूपों में दिखाई देती है पहली वाचिक अथवा मौखिक परंपरा के रूप में तथा दूसरी परिनिष्ठित या लिखित रूप में। लिखित साहित्य का एक निर्धारित कालक्रम रहा है जबकि मौखिक परंपरा आदिकाल से समाज में चली आ रही है।

इसी मौखिक परंपरा की एक विधा है दंतकथाएँ। दंतकथाएँ यहाँ के लोकसाहित्य के जानकारों, बुजुर्गों आदि के मुख से सुनी जाती हैं। दंतकथाओं में कुमाऊँ क्षेत्र की स्थानीयता तथा ग्राम संस्कृति के तत्त्व निहित होते हैं।

प्रस्तुत दंतकथा के स्रोत विविध ग्रामों से लिए गए हैं। इनमें वही कथाएँ सम्मिलित हैं जो परिनिष्ठित साहित्य का अंग नहीं हैं। लेखकों द्वारा व्यापक क्षेत्र भ्रमण के उपरांत इन कथाओं को संकलित किया गया। ये कथाएँ बाल मनोविज्ञान से लेकर मनुष्य के संपूर्ण जीवन दर्शन को अभिव्यक्त करती हैं। इन दंतकथाओं को कुमाऊँ के बुजुर्ग अनुभवी लोगों से पूछकर लिखा गया है। इनमें से कुछ दंतकथाएँ यत्र-तत्र पुस्तकों में प्रकाशित भी हैं; परंतु हमारा पूरा प्रयास रहा है कि इन कथाओं की मौलिकता बनी रहे तथा ये अपने अस्तित्व में पूर्ण आख्यान को समाविष्ट कर लें। यदि ये दंतकथाए कहीं अन्यत्र प्रकाशित कथा के साथ मेल खाती हैं तो इसे मात्र एक संयोग माना जाएगा।

एक ब्राह्मण था। वह दिन-भर कमाई करके भिक्षा आदि माँगकर शाम को खाने-पीने का सामान लेकर घर लौटता था। सारा सामान वह अपनी पत्नी को दे देता था लेकिन जब भी वह खाने को बैठता तो उसकी पत्नी उसे मात्र चार रोटियाँ ही खाने को देती थी। ब्राह्मण को समझ में नहीं आता था कि अधिक कमाने पर भी उसे खाने के लिए मात्र चार ही रोटियाँ क्यों दी जाती थी |

एक दिन पिनगटिया ब्राह्मण समय से पहले ही घर लौट आया और घर के बाहर छिप गया। उसने चुपके से देखा कि उसकी पत्नी ने आठ रोटियाँ बनाई उनमें से चार घर की भरपाटी (दुछत्ती) में छिपा दी और चार रोटियाँ उसने थाली में रख दी।

ब्राह्मण घर के अंदर गया और कहने लगा-

” आठ रोटी, सोल छ्याँचार याँ चार काँ ”

अर्थात् आठ रोटियाँ की पलट के साथ सोलह सेंकने की आवाज ‘छ्याँ होती हैं। चार यहाँ हैं चार कहाँ गईं? इस आवाज से उसकी पत्नी डर गई। उसने अनुमान लगा लिया कि मेरे पति वास्तव में जानकार हैं। उन्हें मेरी करनी का पता चल गया है। अब सारे गाँव में यह खबर फैल गई कि ब्राह्मण बहुत विद्वान् और अंतर्यामी हो गया है। उसे छिपी बातें भी पता लग जाती हैं।

दूसरे दिन एक व्यक्ति का बैल खो गया। वह पूछ करने ब्राह्मण के पास आया। ब्राह्मण ने ऐसे ही कह दिया कि

बैल ‘रिखाण’ (गन्ने के खेत) के पास है और सचमुच इस बार बैल मिल जाता है। ब्राह्मण की इस प्रतिभा की भनक राजा को भी लग गई।

राजा ने उस ब्राह्मण को बुलाया और कहा कि राजमहल से रानी का कीमती हार चोरी हो गया है। इसे खोजने की तरकीब बताओ। ब्राह्मण सोच में पड़ जाता है। अनमन (उनीदे) मन से वह बोल उठता है-

” बल्द हराण रिखाण पै, हार हराण काँ पै,

ओ निनुरी भोल तेरि मौत ”

अर्थात् बैल खोजा तो गन्ने के खेत में मिला, हार खोया तो कहाँ मिले, अरे ओ नींद कल तेरी मौत है। ब्राह्मण की ये बातें राजमहल की दासियों ने सुन लीं।

उनमें से एक दासी का नाम ‘निनुरी’ था। वह समझी कि ब्राह्मण मुझे ही कह रहा है कि कल मेरी मौत है। वह डरकर ब्राह्मण के पैर पकड़ लेती है और उसे बता देती है कि हार उसी ने चुराया था ब्राह्मण उस दासी से कहता है कि जल्दी से हार लाकर रानी के सिरहाने रख दे । वह वैसा ही करती है। अगले दिन वह राजा को बता देता है कि रानी का हार सिरहाने के नीचे है और इस तरह हार मिल जाता है। राजा प्रसन्न होकर ब्राह्मण को खूब धन धान्य रत्न-जेवरात इनाम में देता है।

इस तरह पिनगटिया ब्राह्मण दरिद्रता दूर हो जाती है और वह खुशी-खुशी जीवन यापन करने लगता है।

डा प्रमिला जोशी

मरियम इंस्टिट्यूट फॉर हॉयर स्टडीज एंड

अलाइड कोर्सेज बरेली रोड हल्द्वानी

कुमाऊँ की सांस्कृतिक विरासत