शंखनाद INDIA/ अवतार सिंह पंवार/चमोली

जनपद चमोली के जोशीमठ विकासखण्ड में स्थित पांडुकेश्वर जो पाण्डु नगरी के नाम से भी जाना जाता है। इसी पाण्डु नगरी में मकर संक्रांति से प्रसिद्ध जांती मेला अब अपने अंतिम चरण की और बड़ रहा है । 25जनवरी को मेले के आखिरी चरण को लेकर यहाँ तैयारियां जोरों पर है,

बता दें की इस उत्सव में तपती आग में जांती को हाथों से पकड़कर शरीर के नीचे उतारने का अदभुत और श्रद्धापूर्ण दृश्य से भरे उत्सव को देखने के लिए काफी संख्या में श्रद्धालु पांडु नगरी पहुँच रहे है, हालाँकि इसबार भी गर्भ गृह में कम ही लोगो को प्रवेश दिया जाएगा, बावजूद इसके ग्रामीणों में अपने आराध्य देव घंटाकरण कुबेर देवता के प्रति अगाध श्रधा और भावना साफ झलक रही है,आप देख सकते है की कैसे कड़ाके की ठण्ड में भी कुबेर नगरी पांडुकेश्वर में देव उत्सव चरम पर है और लोग देव जागर और डाँकुडी लगाने में मगन है,
दरअसल कुंभ के हर 6 वर्षो के अंतराल में परंपरानुसार आयोजित होने वाला पांडुकेश्वर का जांती मेला श्रद्धा और विश्वास का वह उत्सव है, जिसे देखकर आंखेंखुली की खुली रह जाती हैं। इस उत्सव के केंद्र में चार पश्वा होते हैं, जिन्हें अवतारी पुरुष माना जाता है। इनमें कुबेर, घंटाकर्ण, कैलाश और नंदा माता शामिल हैं।

पांडुकेश्वर के सामाजिक कार्यकर्ता और मेला सचिव राम नारायण भंडारी बताते हैं कि लोहे से बनी जांती को अग्नि कुण्ड में रख गांव के लोग रात भर तक पारंपरिक जागर गाते हैं। इस दौरान अग्निकुण्ड में जांती तपती रहती है। अगले रोज प्रात: चार बजे कैलाश देवता के पश्वा ने आग में तपती और लाल हो चुकी जांती को हाथ से उठाते है। बाद में भक्तों के जयकारे के बीच घंटाकर्ण के पश्वे भी अग्निकुण्ड में प्रवेश कर भक्तों को आशीर्वाद देते है।

आज भी देव भूमि उत्तराखंड में कई जगहों पर देवी देवताओं के ऐसे अद्धभुत पशु अवतरित होते है जो एक अलौकिक दिब्य शक्ति के प्रमाण के रूप है

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