देहरादून। उत्तराखंड में सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति लगातार चिंताजनक होती जा रही है। प्रदेश के कई जिलों में अस्पतालों में महंगी और अत्याधुनिक मशीनें उपलब्ध होने के बावजूद टेक्नीशियन और विशेषज्ञ डॉक्टरों की कमी के कारण वे वर्षों से बंद पड़ी हैं। इसका सीधा असर मरीजों पर पड़ रहा है, जिन्हें जांच और उपचार के लिए एक जिले से दूसरे जिले, पड़ोसी राज्यों तक भटकना पड़ रहा है।

राजधानी देहरादून से सटे प्रेमनगर में चार वर्षों से एसएनसीयू (स्पेशल न्यूबॉर्न केयर यूनिट) संचालित नहीं हो पाया है। पछुवादून और जौनसार-बावर क्षेत्र में एक्सरे मशीनें पिछले पांच साल से बंद हैं। त्यूणी क्षेत्र के मरीजों को एक्सरे जांच के लिए हिमाचल प्रदेश जाना पड़ रहा है। पौड़ी जिले की पीएचसी पाबौ में लगभग दस लाख रुपये की अल्ट्रासाउंड मशीन एक साल से कमरे में बंद है, क्योंकि रेडियोलॉजिस्ट उपलब्ध नहीं है।

ऊधमसिंह नगर के काशीपुर स्थित एलडी भट्ट राजकीय चिकित्सालय में सी-आर्म मेश मशीन छह माह से बंद है। वहीं किच्छा सीएचसी में अल्ट्रासाउंड मशीन एक साल से और एक्सरे मशीन एक माह से टेक्नीशियन के अभाव में ठप है। पिथौरागढ़ जिले के अस्पतालों में पांच अल्ट्रासाउंड, एक एक्सरे और करीब 30 वेंटिलेटर मशीनें वर्ष 2020-21 से शोपीस बनी हुई हैं।

बागेश्वर में लैप्रोस्कोपी मशीन तीन साल से संचालित नहीं हो पा रही, जबकि सीटी स्कैन मशीन बीते 21 दिनों से खराब है। चंपावत के लोहाघाट अस्पताल में एक्सरे मशीन 13 दिनों से खराब है। रुद्रप्रयाग जिले में भी एक्सरे और सीटी स्कैन मशीनों का संचालन अनियमित बना हुआ है।

हरिद्वार के मेला अस्पताल में कोरोनाकाल के बाद बना पांच बेड का आईसीयू वार्ड विशेषज्ञों की कमी के कारण बंद पड़ा है, जिससे गंभीर मरीजों को महंगे निजी अस्पतालों में इलाज कराना पड़ रहा है।

स्वास्थ्य विभाग के दावों के बावजूद जमीनी हकीकत यह है कि संसाधन होते हुए भी मानव संसाधन की कमी उत्तराखंड की स्वास्थ्य व्यवस्था को लगातार कमजोर कर रही है।