गृह मंत्री अमित शाह ने बुधवार को लोकसभा में चुनाव सुधारों पर चर्चा के दौरान विपक्ष पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि देश में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) को लेकर झूठ फैलाया गया और जनता को गुमराह करने की कोशिश की गई। शाह ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 327 चुनाव आयोग को मतदाता सूची तैयार करने का पूर्ण अधिकार देता है, इसलिए एसआईआर पर संदेह जताना बेबुनियाद है।

शाह ने विपक्ष के उठाए गए ‘वोट चोरी’ के मुद्दे पर कई ऐतिहासिक उदाहरण दिए। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता के बाद पहली “वोट चोरी” तब हुई जब कांग्रेस अध्यक्षों के मतदान में सरदार पटेल को बहुमत मिला, लेकिन प्रधानमंत्री पंडित नेहरू बने। दूसरी घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी रायबरेली से “अनैतिक तरीके” से चुनाव जीतीं, जिसे इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निरस्त कर दिया था। शाह के अनुसार, इसके बाद संसद में ऐसा कानून लाया गया जिसने प्रधानमंत्री के खिलाफ मुकदमे की राह बंद कर दी। उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि इंदिरा गांधी ने वरिष्ठता क्रम तोड़कर चौथे नंबर के जज को चीफ जस्टिस नियुक्त किया।

गृह मंत्री ने दावा किया कि एक मामला सामने आया है जिसमें आरोप है कि सोनिया गांधी भारतीय नागरिक बनने से पहले ही मतदाता बन गई थीं। विपक्षी सदस्यों के विरोध पर उन्होंने स्पष्ट किया कि मामला अदालत में लंबित है और उन्होंने केवल तथ्यात्मक उल्लेख किया है, कोई निष्कर्ष नहीं दिया। कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल ने शाह को चुनौती दी कि वह यह आरोप साबित करें, जिस पर स्पीकर ने स्पष्ट किया कि गृह मंत्री ने केवल कोर्ट में मौजूद केस का जिक्र किया है।

शाह ने कहा कि 2014 के बाद बीजेपी ने 44 बड़े चुनाव जीते, वहीं विपक्ष ने भी 30 से अधिक जीतें दर्ज कीं, लेकिन बीजेपी ने कभी चुनाव आयोग या ईवीएम पर सवाल नहीं उठाए। उन्होंने आरोप लगाया कि विपक्ष हार के बाद पत्रकारों, जजों और चुनाव आयोग को निशाना बनाता है। बिहार की यात्रा और अभियानों के बावजूद हार पर टिप्पणी करते हुए शाह ने कहा कि असली समस्या विपक्ष के नेतृत्व में है।

इम्पीचमेंट प्रस्तावों को “वोट बैंक बचाने की राजनीति” बताते हुए शाह ने कहा कि जनता इसे माफ नहीं करेगी। उन्होंने कहा कि एसआईआर का उद्देश्य केवल मतदाता सूची का शुद्धिकरण है, जिसे वर्षों से विपक्ष ही मांगता आया है।