शंखनाद INDIA/ शिव प्रसाद सती
200 से अधिक मौतों का जिम्मेदार कौन?
उजाले के लिए बनाई जा रही योजनाओं ने दौ सौ अधिक लोगों के जीवन में ऐसा अंधेरा कर दिया जो कभी लौट कर नहीं आएगा,प्रकृति के साथ न ही जीता जा सकता है,न ही कोई जीत सकता है एक ही मिनट में करोड़ों, अरबों का नुक्सान? जब आपदा आती है, किसी को पुछ कर नहीं आती है,न संभलने का वक्त देती है, नुकसान हो जाता है,कुछ लोग आपदा में बह जाते हैं।कालग्रसित हो जाते हैं,तो कुछ दिन शासन प्रशासन, मीडिया, हिमालय के सजग प्रहरी सजग हो हो जाते हैं, लेकिन जिस तरह पहाड़ों को डायनामाइट से हिमालय की जड़ों में कंपनियों ने हिला कर सब कुछ तबाह कर दिया,उस समय आपकी आवाजें क्यों मौन हो जाती हैं।
आज जिस तरह से अपनों को खोने के गम में आप आंदोलन कर रहे हैं,ठीक उसी तरह स्थानीय लोग रोजगार के लिए भी आंदोलन करते आए हैं। कुछ लोगों को ठेके मिल जाते हैं, कुछ लोगों को स्थानीय कंपनी में गाडियां लग जाती हैं,और कुछ लोगों को कंपनियां मैनेज कर अपना काम निकाल लेती हैं।हमारे काम में रूकावटें न आएं,
आपदा कहें या अनियंत्रित विकास चाहे कुछ भी कहें लेकिन जिस बात से शुरू हुई योजनाकारों ने पहाड़ों में बिजली उत्पादन के लिए लोगों को उजाला देने के लिए विकास की योजनाओं पर एक बार सोचने की जरूरत महसूस होने लगी है। केदारनाथ आपदा के बाद यह दुसरी बड़ी आपदा है। कल जोशीमठ में में एक बार अपनों को खोने के गम में स्थानीय लोगों एक बार शासन प्रशासन मुर्दाबाद और सेना जिंदाबाद के नारे लगाए।
एक बार फिर सोच रहा हूं आपदा प्रकृतिवादी है।कब और किस समय आ जाए उसका पता नहीं है, लेकिन जिस तरह से पहाड़ में बिजली उत्पादन के अनियंत्रित विकास ने हिमालय की जड़ों को जड़ों को खोखला कर दिया ।उससे लगता है हिमालय खतरे में तो है। लेकिन हिमालय के तलहटी के लोग भी मौत के मुहाने पर हैं।
ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट,एनटीपीसी पावर प्रोजेक्ट को एक मिनट में तबाह होने के बाद आंकलन कर दिया गया है पंद्रह सौ करोड़ रुपए का नुक्सान होने का अनुमान लगाया जा रहा है। उसके साथ कितना नुक्सान प्रकृति को हुआ?उसका कोई आंकलन नहीं?
अपनों लोगों और परिजनों को खोने का गुस्सा जिस तरह से स्थानीय लोगों में है।उनका गुस्सा फूट रहा है। आंदोलन कर रहे हैं। लेकिन प्रशासन उन्हें गिरफ्तार कर रही है, अनेक राज्यों से आए लोग अपनों के इंतजार में टनल के अंदर लापता लोगों में अपने परिजनों को ढुंडने के लिए आज सात दिनों से उनकी आंखें नम और लापता होने पर टकटकी लगाए हैं।
मुझे एक बार याद है २०११ के दौरान जोशीमठ में नये नये ज्वांइट मजिस्ट्रेट के पद पर ईमानदार अधिकारी वी षणमुगम थे। मैं भी उनके साथ चांई गांव के दौरे पर गया था।तब वहां के स्थानीय निवासी बता रहे थे। जेपी कंपनी की टनल से स्थानीय गांव में धंसाव हो रहा है। लेकिन जितनी कंपनियों ने पावर प्रोजेक्ट लगाए हैं किसी ने भी किसी गांव को एक भी युनिट बिजली नहीं दी है। गांव वाले बताते हैं स्थानीय लोगों को जो जमीन के बदले पैसा मिला था कुछ लोगों ने वह शराब और मुर्ग की टांगों में उड़ा दिया अब न जमीन और न पैसा , कंपनी को अपने काम निकालने होते हैं।वह निकाल चुके?
लेकिन आज जिस तरह पहाड़ में मानव जनित आपदाएं हो रही हैं।इसका जिम्मेदार कौन? सरकारी पैसों को ठिकाने लगाने के लिए आपदा में अवसरों को भी देखा है, केदारनाथ आपदा में करोड़ों रुपए के घोटालों को भुलाया नहीं जा सकता।कल शाम को एक फोटो जर्नलिस्ट मुझसे बहस कर रहा था। आप जहर उगल रहे हो।मेरा उस फोटो जर्नलिस्ट से सवाल ही इतना है आप जब भी कवर करने जाते हो तो सरकारी गाड़ी से जाते हो।खाते सरकारी हो।तो सरकार के गुणगान करो।अनेकों काम हो गये। लेकिन जिस तरह सेना, एनडीआरएफ, आईटीबीपी, अन्य लोग काम में जुटे हैं वह काबिले-तारीफ है।
केदारनाथ आपदा १६ जून को आई थी।उस दिन शनिवार था, रविवार को पुरे दिन बारिश रही, लेकिन लोगों को १९ तारीख को केदारनाथ से खबरें मिलनी शुरू हुई थी। लेकिन इस समय एक वीडियो ने ने सबको बता दिया आपदा आ रही है।शोसल मीडिया के फायदे भी हैं नुकसान भी,इस आपदा के लिए शोसल मीडिया ही वरदान साबित हुआ है।लोग सजग रहे,और दिन का समय था। बारिश नहीं थी,अगर बारिश हो रही होती तो कितना नुक्सान होता?इसका अंदाजा लगाया जाना मुश्किल होता।
जिस तरह से तपोवन आपदा में अभी सात दिन हो चुके हैं। अभी भी सेना, आईटीबीपी, पुलिस जिस तरह से काम रही है उसमें निसंदेह कोई कमी नहीं है, लेकिन सोचने का समय यह है कब तक इस तरह के अनियंत्रित विकास से पहाड़ों की विनाशलीला होती रहेगी? अभी चेतने का समय है, मनन करने का समय है।इस तरह के विकास से हम अपनों को न खोएं।
न हमारे पास आपदाओं का आने का अलार्म है,कब आ जाए ,अभी भी समय है पहाड़ों पर हो रहे अनियंत्रित विकास को न रोका गया तो भविष्य में हमें इसी तरह की आपदाओं से लडने के लिए तैयार रहना होगा।जो संभव नहीं है असंभव है? लेकिन इन मौतों की जिम्मेदारी कोई भी नहीं लेगा। नुकसान का आंकलन तो कर लिया गया,काश इन मौतों का आंकलन भी कर पाते? जिनके अंग जगहों जगहों नदी में बहकर विकृत हो गये।हम लोगों के पास संवेदनाएं हैं। व्यक्त कर सकते हैं, प्रकृति के इस आपदा में लापता लोगों को शांति दें।
सोशल मीडिया दरअसल एक अखाड़ा है। यहां हर वक़्त किसी न किसी मुद्दे पर जंग छिड़ी ही रहती है। कमाल बात यह है कि यहां कोई किसी को सुनना नहीं चाहता, सब अपनी-अपनी कहना चाहते हैं। जरा-सी आलोचना से बने-बनाए रिश्ते बिगड़ जाते हैं। असहमति का यहां कोई मोल नहीं।
शिव प्रसाद सती शंखनाद मीडिया के संपादक हैं,