womens day 2025

देवभूमि उत्तराखंड की रीढ़ महिलाओं को कहा जाता है। जिसके पीछे की वजह ये है कि जब पहाड़ के पुरूष रोजगार की तलाश में जाते हैं तो यहां की महिलाएं हर जिम्मेदारी खुद निभाती हैं। घास काटने से लेकर घर के काम, बच्चों से लेकर खेत खलिहान सब कुछ महिलाएं ही देखती हैं और अपनी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही हैं। पहाड़ की महिलाएं पहाड़ की तरह हमेशा मजबूत इच्छा शक्ति को लेकर आगे बढ़ी हैं। आज महिला दिवस पर हम आपको उत्तराखंड की कुछ ऐसी महिलाओं के बारे में बताने जा रहे हैं जिन्होंने इतिहास के पन्नों पर अपना नाम दर्ज कर दिया।

तीलू रौतेली तीलू रौतेली को गढ़वाल की लक्ष्मीबाई के नाम से जाना जाता है। आज भी उनके अदम्य शौर्य के कारण उन्हें याद किया जाता है। तीलू जो कि गढ़वाल की शासिका थीं और महज 15 साल की उम्र में अपने राज्य के लिए वीरगति प्राप्त हो गई थी। पौड़ी-गढ़वाल में चौंदकोट की 17वीं शताब्दी की वीरांगना तीलू रौतेली ने लगातार सात साल तक युद्ध लड़ कत्यूरों को हराया था। छोटी सी उम्र में सात युद्ध लड़कर अदम्य शौर्य का परिचय देने के कारण उन्हें याद किया जाता है। हर साल 8 अगस्त को तीलू रौतेली की जयंती मनाई जाती है।

तीलू रौतेली

 जसुली अम्मा – उत्तराखंड के इतिहास में जसुली अम्मा का नाम उनके सामाजिक कार्यों के चलते स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। जसुली अम्मा जिनका पूरा नाम जसुली दताल था करीब 200 साल पहले पिथौरागढ़ में दारमा के दांतू गांव की निवासी थीं। जो कि एक संपन्न परिवार से आती थीं। जसुली अथाह धन संपदा की मालिक थी लेकिन वो कम उम्र में ही विधवा हो गईं।

अपने जीवन से निराश होकर उन्होंने एक दिन अपनी सारी दौलत धौलीगंगा नदी में बहा देने का फैसला लिया। वो इसे बहाने ही जा रही थी कि तभी वहां से कुमाऊं कमिश्नर हेनरी रैमजे का काफिला गुजर रहा था। कुमाऊं कमिश्नर को जब पता चला कि जसुली दताल अपनी धन-संपदा नदी में बहाने जा रही है तो उन्होंने जसुली दताल को रोका और इस धन को समाज के काम लाने की बता समझाई। जिसके बाद जसुसी अम्मा ने व्यापारियों और तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए अपने धन से अनेक धर्मशालाओं का निर्माण करवाया। लोगों के लिए किए गए अपने कार्यों के कारण वो जसुली अम्मा के नाम से प्रसिद्ध हो गईं।

जसुली दताल

 

कबूतरी देवी – कबूतरी देवी उत्तराखंड की पहली महिला लोक गायिका थीं। 70 के दशक में आकाशवाणी से एक गीत आता था ‘आज पनी ज्यों-ज्यों, भोल पनी ज्यों-ज्यों पोरखिन न्हें जोंला’। पूरे पहाड़ में ये गीत बेहद ही मशहूर था। कबूतरी देवी की आवाज और उनके गीत लोगों के दिलों को छू जाते थे।

कबूतरी देवी

कबूतरी देवी का जन्म 1945 में चंपावत में हुआ था। उन्होंने आकाशवाणी के लिए उस वक्त गाना शुरू किया जब कोई भी महिला संस्कृतिकर्मी आकाशवाणी के लिये नहीं गाती थी। 70-80 के दशक में नजीबाबाद और लखनऊ आकाशवाणी से प्रसारित कुमांऊनी गीतों के कार्यक्रम से उनकी ख्याति बढ़ी और वो पूरे पहाड़ की पहचान बन गई। कबूतरी देवी ने आकाशवाणी के लिए 100 से भी ज्यादा गीत गाए।