देहरादून। सावन का महीना 4 जुलाई से शुरू हो चुका है, लेकिन भारत के विभिन्न राज्यों में सावन माह की शुरुआत अलग-अलग तिथियों से होती है। ऐसे में देवभूमि उत्तराखंड में सावन हरेला पर्व के साथ शुरू होता है। हरेला उत्तराखंड का लोकपर्व है, जो कर्क संक्रांति के दिन मनाया जाता है। वहीं हरेला पर्व को लेकर अवकाश भी घोषित किया गया है। बता दें कि अवकाश को लेकर कर्मचारियों की ओर से उठाई गई मांग के बाद अब 16 जुलाई को हरेला पर्व का अवकाश होगा। इसको लेकर आदेश जारी कर दिया गया है।

 

बता दें कि हरेला पर्व साल में तीन बार मनाया जाता है, पहला चैत्र मास, दूसरा सावन मास और तीसरा आश्विन महीने में। आइए जानते हैं हरेला पर्व कब है, इसका महत्व क्या है।

इस साल उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला 16 जुलाई 2023 रविवार को मनाया जाएगा। इस दिन शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती है। देवभूमि उत्तराखंड को शिव भूमि भी कहा जाता है. यहां केदारनाथ ज्योतिर्लिंग के साथ शिव जी ससुराल भी है। यही वजह है कि यहां हरेला पर्व की बहुत अहमियत है।

हरेला पर्व महत्व

हरेला का ​अर्थ हरियाली से है। यह पर्व हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है। उत्तराखंड में हरेला पर्व से सावन शुरू होता है। इस पर्व को शिव पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है। हरेला पर्व से 9 दिन पहले टोकरी में पांच या सात प्रकार के अनाज बोए जाते हैं और हरेला के दिन इसे काटा जाता है। मान्यता है कि हरेला जितना बड़ा होगा, किसान को कृषि में अधिक लाभ मिलेगा।

कैसे मनाया जाता है हरेला पर्व 

हरेला बोने के लिए स्वच्छ मिट्टी का उपयोग किया जाता है, इसमें कुछ जगह घर के पास साफ जगह से मिट्टी निकाल कर सुखाई जाती है और उसे छानकर टोकरी में जमा लेते हैं और फिर अनाज डालकर उसे सींचा जाता है। इसमें धान, मक्की, उड़द, गहत, तिल और भट्ट शामिल होते हैं। हरेला को घर या देवस्थान पर भी बोया जाता है। घर में इसे मंदिर के पास रखकर 9 दिन तक देखभाल की जाती है और फिर 10वें दिन घर के बुजुर्ग इसे काटकर अच्छी फसल की कामना के साथ देवताओं को समर्पित करते हैं।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× हमारे साथ Whatsapp पर जुड़ें