भाजपा सरकार ने घोंटा लोकतंत्र का गला ,उत्तराखंड कांग्रेस की मुख्य प्रवक्ता गरिमा मेहरा दसौनी ने प्रदेश मुख्यालय में पत्रकारों से चर्चा में इस बात को कहा कि मतदान करना एक नागरिक का मौलिक अधिकार है, चुनावी प्रक्रिया में जनता का विश्वास सर्वोपरि है। चुनावी प्रणाली में पारदर्शिता और राजनीतिक सुचिता सुनिश्चित करना सरकार और निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है।
दसौनी ने कहा की शहरी निकायों के चुनाव में मतदान के दिन पूरे प्रदेश भर में जिस तरह की अव्यवस्थाएं देखने को मिली उससे आमजन का विश्वास चुनावी प्रणाली से पूरी तरह से उठ गया। रुड़की में लाठी चार्ज का मामला सामने आया जिसमें मतदाताओं को भेड़ बकरियों की तरह लाठियों से पीटा गया।दसौनी ने पूछा कि जिन मतदाताओं को लाठियां से कूटा गया क्या वह जीवन में कभी मतदान के लिए बाहर निकल पाएंगे?
गोपेश्वर से सूचना मिली कि जिला स्तर के अधिकारी जिनके ऊपर जिम्मेदारी थी चुनाव में बड़ी संख्या में मतदान करवाने की, उनका स्वयं का नाम सूची से गायब था। और तो और हद तो तब हो गई जब लोग अपने नाम मतदाता आयोग की वेबसाइट में देखकर वोट डालने पहुंचे तो उन्हें वोटर लिस्ट में उस क्रमांक पर अपना नाम नहीं मिला ।मतदाता सूची में बहुत सारी त्रुटियां देखने को मिली, पुरुष को महिला बना दिया गया, महिला को पुरुष ,पिता को पुत्र और पुत्र को पिता। 10 साल के बच्चों का नाम भी मतदाता सूची में पाया गया ।दसौनी ने कहा समझ से परे है कि इसे सियासी खेल समझे, षड्यंत्र या फिर लापरवाही का नाम दिया जाए ?पर कुल मिलाकर उत्तराखंड की चुनावी प्रणाली को बहुत गहरी चोट पहुंची है।
दसोनी ने कहा की इसे विडंबना ही कहा जा सकता है कि वन नेशन वन इलेक्शन की बात करने वाले लोग एक छोटा सा लोकल बॉडीज का चुनाव तक ठीक ढंग से नहीं कर पा रहे हैं। दसौनी ने कहा कि यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि सूबे के मुख्यमंत्री रहे दो महत्वपूर्ण व्यक्ति मतदान से वंचित हो गए, जागर सम्राट प्रीतम भर्तवान् और प्रदेश के विख्यात, नामी लोगों के नाम भी मतदाता सूची से गायब मिले। गरिमा ने कहा कि प्रचंड बहुमत और ट्रिपल इंजन की सरकार में पहली बार ऐसा हुआ है की मतदाता सूची से इतनी बड़ी संख्या में और व्यापक स्तर पर मोहल्ले के मोहल्ले और गली की गली गायब कर दी गई।
ऋषिकेश के स्ट्रांग रूम में देर रात तक हंगामा मचा रहा, पोलिंग बूथ पर सत्ताधारी दल के विधायकों और मंत्रियों के पहुंचने पर लोगों का गुस्सा चरम पर पहुंच गया, यह सब आखिर किसकी कोताही से हुआ? दसौनी ने कहा कि हैरत की बात तो यह है कि सत्ताधारी दल का एक भी नेता और प्रवक्ता इस पूरे गंभीर घटनाक्रम से चिंतित विचलित या परेशान नहीं दिखाई पड़ा। जिस तरह के वक्तव्य सत्ता रूढ़ दल की तरफ से आए वह सभी बेहद अपरिपक्व और असंवेदनशील थे। मामले की तह तक जाने की बात कहने के बजाय वह उल्टा जिनके नाम गायब हैं और जो मतदान से वंचित और मायूस हो गए उन्हीं पर हमला बोला जा रहा।
आज उत्तराखंड के आम जनमानस में भारी आक्रोश और गुस्सा व्याप्त है, राजनीतिक दलों के कार्यकर्ताओं ने कई दिनों से मेहनत मशक्कत खून पसीना बहा कर लोकतंत्र के इस पर्व में प्रतिभाग किया था परंतु सरकार और निर्वाचन आयोग की उदासीनता ने उनके जोश और जज्बे पर पानी फेर दिया। चुनाव में मतदान मौलिक अधिकार है,चुनावी प्रणाली को सभी के लिए पारदर्शि और सुचारू प्रक्रिया सुनिश्चित करनी चाहिए थी, लेकिन चुनाव आयोग ,सरकार एवं सरकारी मशीनरी की विफलता का प्रत्यक्ष प्रमाण ये निकाय चुनाव रहा और वो चुनाव कराने में पूर्णतया विफल साबित हुए । जिस प्रकार से सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग कर लोकतंत्र का गला घोंटने का प्रयास किया गया वह बेहद निंदनीय है। पिछले आम चुनावों में अपने मताधिकार का प्रयोग करने वाले हजारो मतदाताओं के नाम मतदान केंद्रों की मतदाता सूची में नहीं थे। साफ तौर पर मतदाता सूची से अच्छे खासे स्तर पर नाम सूची से गायब होना लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन है और चिंताजनक एवं निंदनीय है।