राहुल राजपूत शंखनाद इंडिया देहरादून :

जुलाई यानी सावन महीना, इस महीने की समाप्ति आकाश में आकर्षक उल्का बौछार के साथ होने जा रही है। आपको बता दें कि बृहस्पतिवार की रात से शुक्रवार सुबह तक यह उल्कापात अपने चरम पर रहेगा।

आखिर क्यों होती है उल्का बौछार

बता दें किउल्का बौछार तब होती है जब पृथ्वी धूमकेतु की ओर से छोड़े गए मलबे की एक धारा से होकर गुजरती है। जैसे ही मलबे की धारा में स्थित चट्टान और धूल के टुकड़े पृथ्वी के वायुमंडल से टकराते हैं, वे जल जाते हैं और आकाश में आग की धारियां जैसी बनाते हैं। विभिन्न धूमकेतु सूर्य के करीब 14 लाख किलोमीटर के भीतर अपने निकटतम होने पर नजर आते हैं। डेल्टा एक्वेरिड उल्का बौछार के उत्पादन के लिए जिम्मेदार मूल धूमकेतु के बारे में अब भी अनिश्चितता है।

अब तक की मान्यता-

उल्का बौछार मार्सडेन और क्रैच सनग्रेजिंग धूमकेतु के टूटने से उत्पन्न हुई है। अब वैज्ञानिक धूमकेतु 96 पी मैकोल्ज नामक एक अन्य सनग्रेजिंग धूमकेतु तो इस उल्का बौछार के संभावित स्रोत के रूप में मानने लगे हैं। 1986 में डोनाल्ड मैकहोल्ज के खोजे गए इस धूमकेतु का अनुमानित व्यास करीब 6.4 किलोमीटर है और सूर्य के चारों ओर एक परिक्रमा पूरी करने में इसे पांच साल लगते हैं।

क्या कहते है वैज्ञानिक

आर्य भट्ट शोध एवं प्रेक्षण विज्ञान संस्थान, एरीज के वैज्ञानिक डॉ. शशिभूषणपांडे ने बताया कि जैसे ही धूमकेतु सूर्य की ऊर्जा से गर्म होता है, धूमकेतु में बर्फ वाष्पीकृत हो जाती है। इससे चट्टान और धूल के छोटे-छोटे टुकड़े ढीले हो जाते हैं जो मलबे की धारा बनाते हैं और डेल्टा एक्वेरिड्स उल्का बौछार का उत्पादन करते हैं।

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