उत्तराखंड की नारी शक्ति में अनेक वीरांगनाओं की गाथाएं आज महिला दिवस पर इन वीर वीरांगनाओं को याद करते हैं। अपने कुशल पराक्रम से इतिहास में नाम दर्ज करा चुकी हैं। कुछ महिलाएं अभी भी बेहतर कार्य कर रही हैं। शंखनाद इंडिया की स्पेशल रिपोर्ट:

भारतीय ग्रंथों में महिला को लेकर कहा गया है ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः’ अर्थात जहाँ नारियों को पूजा जाता है वहां देवता निवास करते हैं। कहते हैं परिस्थितियां चाहे कैसी भी हों अगर साहस, हौसला, ढृड संकल्प हो तो इनके आगे मंजिलों को झुकना ही पड़ता है। इसी तरह देवभूमि उत्तराखंड में भी कई ऐसी वीरांगनाएं है जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में खुद को साबित कर कामयाबियों की अपनी अलग गाथा लिखी है। इतिहास गवाह है कि उत्तराखंड में महिलाओं ने अपनी बहादुरी, साहस, काबिलियत और हौसलों के दम पर ऐसे मुकाम हासिल किए हैं जो किसी मिसाल से कम नहीं है। आज देश और पूरे विश्व की महिलाएं उनसे प्रेरणा लेती हैं और उन्हें आदर्श मानती हैं। इसीलिए तो देवभूमि उत्तराखंड यहां रहने वाली वीरांगनाओं के कारण जाना जाता है। पेड़ों को बचाने के लिए गौरा देवी का योगदान पूरे विश्व में एक मिसाल के रूप में पेश किया जाता है। यहां तक की उत्तराखंड राज्य गठन में भी नारी शक्ति का ही अहम योगदान रहा है। प्रशासन, कला, फिल्म, पत्रकारिता, राजनीति, साहित्य, खेल, समाज सेवा, स्पेस… ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं है जहां उत्तराखंड की महिलाओं ने अपना परचम ना लहराया हो। वर्तमान में भी प्रदेश की कई महिलाएं अपने अपने कार्यक्षेत्र में शिखर पर हैं। आज हम आपको उत्तराखंड की ऐसी ही वीरांगनाओं से रूबरु करवाएंगे जिन्होंने अपने-अपने क्षेत्रों में एक मुकाम हासिल किया और जुगनू की तरह चमकती हुईं समाज को नई दिशा दे रही हैं

रानी कर्णावती

भारतीय इतिहास में जब रानी कर्णावती का जिक्र आता है तो फिर मेवाड़ की उस रानी की चर्चा होती है जिसने मुगल बादशाह हुमांयूं के लिये राखी भेजी थी। लेकिन उत्तराखंड में भी एक रानी कर्णावती हुई थी जिसे इतिहास में मुगल सैनिकों की नाक काटने के लिए जाना जाता है। जी हां, रानी कर्णावती गढ़वाल के राजा महीपति शाह की पत्नी थी। जब महिपतशाह की मृत्यु हुई तो उनके पुत्र पृथ्वीपतिशाह केवल सात साल के थे। हालांकि राजगद्दी पर पृथ्वीपतिशाह ही बैठे लेकिन राजकाज उनकी मां रानी कर्णावती ने चलाया। उस समय दिल्ली में मुगल सम्राट शाहजहां का राज था। इस दौरान जब मुगलों ने गढ़वाल पर आक्रमण करने की गुस्ताखी की तो रानी कर्णावती ने उन्हें छठी का दूध याद दिलाया था। रानी के आदेश पर मुगल सैनिकों के नाक काट कर उन्हें भागने को मजबूर कर दिया गया। रानी कर्णावती तभी से ‘नाक काटी रानी’ नाम से प्रसिद्ध हो गई।

जियारानी
कत्यूरी नरेश प्रीतम देव की छोटी रानी जियारानी कुमाऊं में न्याय की देवी और कुमाऊं की लक्ष्मीबाई नाम से विख्यात है। कुमाऊं पर रोहिलों और तुर्कों के आक्रमण के दौरान रानीबाग युद्ध में उनका डटकर मुकाबला किया था।

जसुली शौक्याण
आज भी कुमाऊं–गढ़वाल से लेकर तिब्बत तक व्यापारियों,यात्रियों के धर्मशालाएं,पानी के कई सराय देखने को मिलते हैं। सदियों पुराने यह सभी सराय दारमा की एक महिला जसुली शौक्याण ने बनवाए थे। जसुली अम्मा के नाम से विख्यात इस महिला ने अपने जीवन की पूरी कमाई इन्हीं सराय के निर्माण में लगा दी थी।

तीलू रौतेली

चौन्दकोट गढ़वाल में जन्मी अपूर्व शौर्य, संकल्प और साहस की धनी इस वीरांगना को गढ़वाल के इतिहास में ‘झांसी की रानी’ के नाम से जाना जाता है। केवल 15 वर्ष की उम्र में रणभूमि में कूद कर सात साल तक अपने दुश्मन राजाओं को छठी का दूध याद दिलाने वाली गढ़वाल की वीरांगना तीलू रौतेली मध्यकाल में गढ़वाल की शासिका थी। तीलू रौतेली के सम्मान में उत्तराखंड सरकार हर साल उल्लेखनीय कार्य करने वाली महिलाओं को सम्मानित करती है। उत्तराखंड में कांडा और बीरोंखाल में हर साल तीलू रौतेली की याद में मेले का आयोजन किया जाता है।

बिशनीदेवी शाह

देश के स्वतंत्रता संग्राम में उत्तराखंड की महिलाओं का भी अहम योगदान रहा और जिसमें एक प्रमुख नाम बिशनी देवी शाह का भी है। बागेश्वर में जन्मी बिशनी देवी शाह स्वतन्त्रता संग्राम में जेल जाने वाली उत्तराखण्ड की प्रथम महिला है। वह किशोरावस्था से ही स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़ी थी और देश के आजाद होने तक इसमें सक्रिय रही। उन्होंने भारत छोड़ो आंदोलन में भी अहम भूमिका निभायी थी। राज्य गठन की बात करें तो यह महिला शक्ति ही थी जिसने राज्य आंदोलन को गति देने का काम करते हुए बेहद अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी सरला बहन-मूल नाम मिस कैथरिन हैलीमन और अल्मोडा में जन्मी स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी कुन्ती वर्मा का अहम योगदान था।

टिंचरी माई

उत्तराखंड जब कभी नशा विरोधी आन्दोलन का जिक्र होगा तो टिंचरी माई का नाम हमेशा लिया जायेगा। टिंचरी माई ने सत्तर के दशक में पहाड़ में शराब विरोधी आन्दोलन चलाया था। थलीसैंण के मंज्यूड़ गांव में जन्मी टिंचरी माई की शादी पौड़ी गढ़वाल के हवलदार गणेशराम नवानी से हुआ था जो द्वितीय विश्व युद्ध में शहीद हो गए थे। तब वह संन्यासिन बन गई और अपना पूरा जीवन सामाजिक कार्यों में समर्पित कर दिया। बाद में पहाड़ लौटकर यहां की कुरीतियों के खिलाफ आवाज उठाने लगी। उन्होंने पहाड़ में शराबबंदी के लिये आवाज उठायी। अंग्रेज अफसर से डरे बिना अपने गांव में टिंचरी यानि शराब की दुकान जला डाली। तभी से लोग उन्हें टिंचरी माई कहने लगे। टिंचरी माई का वास्तविक नाम दीपा देवी था। गांव में यह ठगुली देवी के नाम से पुकारी जाती थी। इच्छागिरी माई के रूप में भी उन्होंने प्रसिद्धि पायी। बच्चों की शिक्षा विशेषकर बालिकाओं की शिक्षा के लिए कई स्कूलों का निर्माण कराने में टिंचरी माई का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

गौरा देवी

पेड़ों की रक्षा के लिये अपना जीवन समर्पित करने वाली गौरा देवी विश्व प्रसिद्ध चिपको आन्दोलन की जननी रही हैं। गढ़वाल के रैंणी गाँव की गौरा देवी जंगलों को अपना मायका मानती थी। जब ठेकेदार जंगल के पेड़ काटने रैंणी गांव पहुंचे तो वह जंगलों की अंधाधुंध कटाई का विरोध करने के लिये अपनी साथियों के साथ पेड़ों से चिपक गयी थी। गौरा देवी ने अपना जीवन गांव और जंगल की रक्षा के लिये समर्पित कर दिया था। उन्हें 1986 में पहले वृक्ष मित्र पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

आइरिन पन्त
अल्मोडा की आइरिन पन्त की शादी पाकिस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री लिकायत अली के साथ हुई थी। आइरिन पन्त 1954 में नीदरलैण्ड्स में पाकिस्तान की राजदूत रहीं और गवर्नर पद पर पहुंचने वाली वे पाकिस्तान की प्रथम महिला भी थी। इनको ‘मदर ऑफ पाकिस्तान’, ‘वूमन ऑफ द वल्र्ल्ड’ और संयुक्त संघ के मानवाधिकार पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

बसन्ती बिष्ट

पद्मश्री बसंती बिष्ट उत्तराखंड की लोक संस्कृति को आगे बढ़ा रही है। पुरुष वर्चस्व वाले जागर क्षेत्र के बंधनो को तोड़कर उन्होंने उत्तराखंड के जागर गायन को नए आयाम दिए। आकाशवाणी, दूरदर्शन और विभिन्न मंचों पर अपनी प्रस्तुति से पहाड़ की संस्कृति और लोक गायन की एंबेसडर मानी जाने लगीं है। देहरादून में रहकर वह लगातार पहाड़ की संस्कृति के संवर्द्धन में जुटी हुई हैं। अपनी मां से जागर गायन सीखने वाली बसंती बिष्ट को भारत सरकार ने लोक संगीत के क्षेत्र में विशेष योगदान के लिये पदमश्री से सम्मानित किया है। वह अब तक तमाम मंचों पर एक हजार से अधिक प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। बसंती बिष्ट ने नंदा देवी की जागरों की एक पुस्तक ‘नंदा के जागर- सुफल ह्वे जाया तुम्हारी जात्रा’ भी लिखी है।

कबूतरी देवी

सत्तर के दशक में आकाशवाणी से एक गीत प्रसारित होता था ….आज पनी ज्यों-ज्यों, भोल पनी ज्यों-ज्यों पोरखिन न्हें जोंला… पहाड़ के खेतों में काम करने वाली महिलाओं के बीच में यह आवाज खूब लोकप्रिय थी। जी हां, यह आवाज थी कुमाऊं कोकिला नाम से प्रसिद्ध कबूतरी देवी की। इनके लखनऊ और नजीबाबाद आकाशवाणी केन्द्रों से गाए गीत बहुत लोकप्रिय हुए थे। पिथौरागढ के काली कुमाऊं में जन्मी कबूतरी देवी राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित थी। 2016 में उत्तराखंड सरकार ने उन्हें लाइफ टाइम अचीवमेन्ट पुरस्कार से सम्मानित किया था।

बछेन्द्रीपाल

माउंट एवरेस्ट फतह करने वाली पहली भारतीय महिला बछेंद्री पाल ने पर्वतारोहण को नये आयाम तक पहुंचाया है। उत्तरकाशी के नकुरी में जन्मी बछेंद्री पाल ने 23 मई 1984 को एवरेस्ट फतह किया था। ऐसा करने वाली वह भारत की पहली और दुनिया की पाँचवीं महिला पर्वतारोही हैं। उन्हें 1984 में पदमश्री और इसके दो साल बाद अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

चन्द्रप्रभा एतवाल

चंद्रप्रभा ऐतवाल उत्तराखंड की एक प्रमुख पर्वतारोही हैं। पिथौरागढ़ के धारचूला में जन्मीं चंद्रप्रभा ऐतवाल ने हिमालय की बहुत सी चोटियां फ़तेह की हैं। भारत सरकार ने उन्हें 1981 में अर्जुन अवार्ड और 1990 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। उन्हें विश्व प्रसिद्ध पर्वतारोही नंदादेवी अभियान की 1993 में नेशनल एडवेंचर अवार्ड और वर्ष 2010 में तेनजिंग नोर्ग अॅवार्ड से सम्मानित किया गया है।

डॉ० हर्षवन्ती बिष्ट

उत्तराखंड की प्रसिद्ध पर्वतारोही और अर्जुन पुरस्कार विजेता डा. हर्षवंती बिष्ट महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं। हर्षवंती बिष्ट देश के सबसे बड़े पर्वतारोहण संस्थान इंडियन माउंटेनियरिंग फाउंडेशन की पहली महिला अध्यक्ष बनी । इसके साथ ही उत्तराखंड से IMF का पहला अध्यक्ष बनने का सम्मान भी उनके नाम पर है।

हंसा मनराल

द्रोणाचार्य पुरस्कार से सम्मानित होने वाली प्रथम महिला हंसा मनराल का जन्म पिथौरागढ़ के भाटकोट में हुआ है। वह भारत की पहली महिला भारोत्तोलक कोच रही है। इनके कुशल प्रशिक्षण में पहली बार भारतीय भारत्तोलक महिलाओं ने विश्व भारोत्तोलन प्रतियोगिता में पांच रजत और दो कांस्य पदक जीते थे।

प्रो० सुशीला डोभाल

उत्तराखण्ड की प्रथम महिला कुलपति होने का गौरव प्रो० सुशीला डोभाल के नाम है। वह 1977 में पहली बार और 1984-85 में दूसरी बार गढ़वाल विश्वविद्यालय की कुलपति बनीं। इससे पहले वह 1958 में महादेवी कन्या डिग्री कॉलेज देहरादून में प्रधानाचार्या भी रही हैं।

शिवानी उर्फ गौरा पंत

उत्तराखंड की प्रसिद्ध उपन्यासकार शिवानी उर्फ गौरा पंत को हिंदी साहित्य जगत में ऐसी लेखिका के रूप में याद किया जाता है जिन्होंने अपनी कृतियों में उत्तर भारत के कुमाऊं क्षेत्र के आसपास की लोक संस्कृति की झलक दिखायी और किरदारों का बहुत सुंदर तरीके से चरित्र चित्रण किया। उन्होंने महज 12 साल की उम्र से लिखना शुरू कर दिया था। उनकी लिखी कृतियों मे कृष्णकली, भैरवी, आमादेर शन्तिनिकेतन, विषकन्या चौदह फेरे, कृष्णकली, कालिंदी, अतिथि, पूतों वाली, चल खुसरों घर आपने, श्मशान चंपा, मायापुरी, कैंजा, गेंदा, भैरवी, स्वयंसिद्धा, विषकन्या, रति विलाप आदि प्रमुख हैं। हिंदी के अलावा उनकी संस्कृत, गुजराती, बंगाली, उर्दू और अंग्रेजी पर भी अच्छी पकड़ थी।


विजया बड़थ्वाल

विजया बड़थ्वाल उत्तराखंड की सबसे वरिष्ठ और सक्रिय राजनीतिज्ञों में से एक हैं। वह 2009 में उत्तराखण्ड विधानसभा की प्रथम उपसभापति चुनी गई। इसके बाद राज्यमंत्री बनाई गई। वह विधान सभा की तीन बार सदस्य रही और उन्होंने पौड़ी गढ़वाल, उत्तराखंड के यमकेश्वर विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया था। वह मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी और रमेश पोखरियाल की सरकार के मंत्रिमंडल में भी थीं। उन्हें उत्तराखंड विधान सभा के पहले डिप्टी स्पीकर के रूप में भी सेवा दी गई है ।


मधुमिता बिष्ट

मधुमिता बिष्ट उत्तराखंड की पूर्व बैडमिंटन खिलाड़ी हैं। वह आठ बार राष्ट्रीय एकल विजेता, नौ बार युगल विजेता और बारह बार मिश्रित युगल विजेता हैं। 1992 में विश्व की नंबर दो कुसुमा सरवंता ने मलेशियाई ओपन जीता था। 1982 में मधुमिता बिष्ट को अर्जुन पुरस्कार और 2006 में पदमश्री से सम्मानित किया गया।

श्रीमती लक्ष्मीदेवी टम्टा

लक्ष्मी देवी टम्टा उत्तराखंड की पहली दलित महिला स्नातक और उत्तराखंड की पहली दलित महिला सम्पादक थी। हिंदी पत्रकारिता के इतिहास में लक्ष्मी देवी का योगदान महत्वपूर्ण है। उत्तराखंड की पहली अनुसूचित जाती की महिला स्नातक का सम्मान प्राप्त लक्ष्मी देवी टम्टा ने समता पत्रिका के माध्यम से अनुसूचित जाती के लोगों की आवाज को बुलंद स्वर प्रदान किया और दलित वर्ग की शिक्षा समानता के लिए सदा प्रयासरत रही।

कैप्टेन भावना गुरुनानी

जनवरी 1972 में अल्मोड़ा के सूरीगांव में जन्मी कैप्टन भावना गुरनानी उत्तराखण्ड की पहली सैन्याधिकारी हैं। जिन्हें ए.एम.सी. के अतिरिक्त सेना की दूसरी शाखा (AEC ) में नियुक्ति पाने का गौरव प्राप्त हुआ। इन्होंने भारतीय सेना में 1994 में प्रवेश किया था।

आज उत्तराखंड में महिलाएं सफलता के नए शिखर छू रही हैं। प्रदेश की राजनीतिक और प्रशासनिक मोर्चे पर महिला शक्ति को यथोचित प्रतिनिधित्व मिला है। वर्तमान में ऋतु खंडूड़ी उत्तराखंड की पहली महिला विधानसभा अध्यक्ष है। वह कोटद्वार से विधायक है और उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री भुवन चंद्र खंडूड़ी की बेटी है। वहीं अल्मोड़ा में जन्मी रेखा आर्या भारतीय जनता पार्टी की सदस्य और उत्तराखंड सरकार में महिला एंव बाल विकास, खाद्य नागरिक आपूर्ति एवं उपभोक्ता मामले, खेल एवं युवा कल्याण मंत्री है।
इनके अलावा उत्तराखंड की प्रसिद्ध महिलाओं में विधानसभा अध्यक्ष ऋतु खंडूरी,प्रमुख सचिव राधा रतूड़ी युवा महिला क्रिकेटर एकता बिष्ट, स्नेहा राणा , मानसी जोशी, युवा एथिलीट मानसी नेगी और महिला हॉकी स्टार वंदना कटारिया का नाम उल्लेखनीय है।अनेक महिलाएं अपने क्षेत्र में बेहतर कार्य कर रह