अरविंद शेखर/देहरादून
विशेषज्ञ समिति ने 7 दिसंबर 2006 को कई तात्कालिक व दीर्घकालिक सिफारिशें की थीं
हाइड्रोलॉजिकल व क्लाइमेटोलॉजिकल आंकड़े जमा किए जाने थे
आखिर सरकारें खुद अपनी रिपोर्टों को ठंडे बस्ते में क्यों डाल देती है। ऋषिगंगा बांध हादसे के बाद यह सवाल फिर मुंह बाये है। भले ही इस आपदा के कारणों की तलाश अभी पूरी न हुई हो लेकिन प्रदेश सरकार द्वारा की ग्लेशियरों को लेकर गठित विशेषज्ञ समिति ने 7 दिसंबर 2006 को कई तात्कालिक व दीर्घकालिक सिफारिशें की थीं। तब पूर्व मुख्य सचिव ने एनएस नपलच्याल ने भी प्रदेश सरकार के आपदा प्रबंधन एवं पुनर्वास विभाग से कहा था कि यह रिपोर्ट ग्लेशियरों से पैदा होने वाले खतरों को लेकर अद्वितीय रिपोर्ट है और सरकार इन सिफारिशों के आधार पर ठोस कदम उठाएगी। तात्कालिक सिफारिशों के तौर पर सबसे पहले मौजूदा ग्लेशियर इनवैंट्री के आधार पर प्रदेश के उन आबाद इलाकों का चिन्हीकरण किया जाना था जो ग्लेशियरों के पैदा होने वाले खतरे से प्रभावित हो सकते हैं। इसी के साथ ग्लेशियरों के पीछे खिसकने के हाइड्रोलॉजिकल व क्लाइमेटोलॉजिकल आंकड़े जमा किए जाने थे। इन आंकड़ों के आधार पर ही आने वाली बाढ़ और ग्लेशियरों से पानी के बहाव की मॉनीटरिंग की जानी थी। यही नहीं सिफारिश यह भी थी कि प्रदेश में स्थापित होने वाले हर हाइड्रो प्रोजेक्ट के लिए नदियों के उद्गम क्षेत्र में मौसम केंद्रस्थापित करना और नदियों के प्रवाह की मॉनीटरिंग के लिए केंद्र स्थापित करना जरूरी हो और ये आंकड़े प्रदेश सरकार को नियमित मिलते रहें। भागीरथी घाटी की केदार गंगा और केदार बामक के आस पास की ग्लेशियल झीलों की लगातार मॉनीटरिंग हो और उससे आने वाले पानी की मॉनीटरिंग भी हो। यही नहीं यह सिफारिश भी की गई थी कि डीएमएमसी स्कूल व कॉलेज आदि में ग्लेशियरों से जुड़ी आपदाओं व दुर्घटनाओं के प्रति बच्चों और स्थानीय लोगों को सचेत करेगा। यही नहीं कक्षा 9 सेलेकर 12 तक की पाठ¬ पुस्तकों में ग्लेशियरों या अन्य कारणों से आने वाली आपदाओं के बारे में जानकारी दी जाए। यह भी कहा गया था कि गौमुख के गंगोत्री ग्लेशियर व सतोपंथ ग्लेशियरों में पर्यटकों की आवाजाही पर कड़ा प्रतिबंध लगाया जाए इसके लिए पर्यावरण संरक्षण कानून 1986 के प्राविधानों की मदद ली जा सकती है।इसी के साथ एक नियमित ग्लेशियल वुलेटिन को ऑडियो या वीडियो मीडिया के जरिए जारी करने कोशिश कीजाए।

नहीं हुई बर्फ, ग्लेशियल झीलों, उनके बनने
और संभावित विभीषका की मॉनीटरिंग
विशेषज्ञ समिति द्वारा कुछ दीर्घ कालिक सिफारिशें भी की गई थीं। जिनमें कहा गया था कि ग्लेशियरों और ग्लेशियल झीलों के बड़े परिमाण यानी 1: 25000 के मानचित्रों के साथ की इनवैंट्री बनाई जाए जिसमें उनकी पहचान भी स्पष्ट कीजाए। उनकी स्नोकवर मैपिंग की जाए और जाड़ों में स्नोकवर पैटर्न का आकलन किया जाए। मॉनीटरिंग सिस्टम को मजबत करने के लिए एडब्लूएस नेटवर्क के जरिए पर्यावरण और बर्फ, ग्लेशियल झीलों, उनके बनने और संभावित विभीषका की मॉनीटरिंग हो। बर्फ के गलने और उस पर अवसाद व मलबे के भार का आकलन हो। ग्लेशियरों के सिकुड़ने, उनके मास वॉल्यूम में हो रहे बदलाव और स्नोलाइन की मॉनीटरिंग हो ताकि पर्यावरण की बेहतर समझ पैदा हो सके। ग्लेशियरों की वजह से बांधों उनके जलाशयों और जल विद्युत परियोजनाओं की सुरक्षा को पैदा होने वाले खतरों का पहले से आंकलन कर लिया जाए। यही नहीं प्रभावी योजना व व प्रबंधन के लिए सभी हिमालयी ग्लेशियरों की जानकारी को जियोग्राफिकल इनफॉरमेशन सिस्टम (जीआईएस) के जरिए संकलित व एकीकृत किया जाए।

क्या हुआ ग्लेशियर जनित विभीषिकाओं के
अध्ययन को बनने वाले विशेषज्ञ समूहों का
सवाल यह भी है कि बीते 14 साल में ग्लेशियर जनित विभीषिकाओं के अध्ययन को बनने वाले विशेषज्ञ समूहों का क्या हुआ। विशेषज्ञ अध्ययन समूह ने सिफारिश की थी कि ग्लेशियरों व ग्लेशियरों के कारण पैदा होने वाली विभीषका के अध्ययन के लिए विशेषज्ञों का पांच अध्ययन समूह गठित किया जाए । इस समूह में रीमोट सेंसिंग एवं जीआईेस एनालिसिस ग्रुप, ग्लेशियर हैजार्ड एवं मैपिंग ग्रुप, ग्लेशियल मॉनीटरिंग ग्रुप, हाइड्रोलॉजिकल एवं मीटियोरोलॉजिकल ग्रुप और सोशियो-इकॉनोमिक स्टडी ग्रुप गठित करने की सिफारिश की गई थी। रिपोर्ट को लागू करने के लिए एक्शन प्लान भी बनाया गया

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