सिसकिंयां थम न रहीं, मलबे से शव निकलते ही मानव झुंड चिपट पड़ते हैं। जनाब अपनों की लाश पहचानने को। हैरत है कि सरकार समर्थक मस्त हैं।
उत्तराखंड के चमोली जिले में ग्लेशियर टूटने की आपदा में 14 दिन बाद 62 शव मिल चुके हैं। देश के अन्य हिस्सों के लोगों के लिए इस दुख का अंदाजा लगाना जरा कठिन है। सोशल मीडिया में दुख है, पर सरकार की खिलाफत करो तो समर्थक अपनों की मौत को भी जायज बताने पर आमादा हैं। इन्हें विद्युत उत्पादन के मौजूदा स्रोतों का भी पता नहीं, दुनिया में बड़े बांध ध्वस्त करने की वर्षों से चल रही मुहिम का भी भान नहीं।
खैर समाज की अक्ल का हाल कुछ ऐसा ही है। फिलवक्त चमोली पुलिस का कहना है, 7 फरवरी की आपदा में मरने वालों की संख्या 62 हो गई है, 142 लोगों की तलाश अभी जारी है, ये सभी मलबे में गहरे धंस चुके हैं। इतनों की लाश निकालना भी अब संभव न रहा, क्योंकि बचाव के इंतजाम नाकाफी हैं।
…जल विद्युत परियोजना के लिए कमोजार पहाड़ियां काटकर लंबी सुरंगें बना दी गईं। ये कब्र सिर्फ तबाही के लिए बनाई गई हैं। वैज्ञानिक और भूगर्भवेत्ता बड़े बाधों का विरोध करते हैं। अब धरती में बिजली पैदा करने के लिए सूर्य, पवन, परमाणु ऊर्जा किफायती साधन उपलब्ध हैं।
वैसे भी अफगानिस्तान से बंगाल की तीस्ता नदी के बीच फैले मध्यम हिमालयी विशाल भूभाग में उत्तराखंड क्षेत्र की पहाड़ियां सबसे कमजोर बताई गई हैं। यहां की मिट्टी भुरभुरी है। ये चट्टानें हल्की कंपन में ही दरक जाती हैं। इस इलाके में भारी निर्माण और पानी के विशाल कुंड जल प्रलय की तस्दीक करते हैं।
तपोवन-विष्णुगाड़ जलविद्युत परियोजना की टनल दुनिया की सबसे भारी मशीनों से बनाई गई हैं। इन मशीनों ने आसपास की पहाड़यों को बेहद कमजोर कर दिया है। यह सरकार निर्मित कब्र हैं। इसमें अब तक 13 शव मिले हैं। प्रभावित क्षेत्र में विभिन्न स्थानों से 28 मानव अंग भी मिले हैं, ये किसके हैं अब तक पता नहीं। 62 शवों में भी सिर्फ 33 की पहचान हो पाई है। उन मरने वालों का कभी जिक्र भी न हो पाएगा जिन्हें ठेकेदार ट्रकों में ठूंस कर दूर राज्यों से लाए होंगे। उनके घर वाले मौत का कभी दावा भी न कर पाएंगे, उनका कहीं लेखा-जोखा भी नहीं मिलेगा।
ऋषिगंगा पर ग्लेशियर टूटने से हिमस्खलन हुआ था, जिससे नदी के किनारे 13.2 मेगावाट की एक जलविद्युत परियोजना ध्वस्त हो गई। धौलीगंगा के साथ लगती एनटीपीसी की तपोवन-विष्णुगढ़ जलविद्युत परियोजना को व्यापक नुकसान पहुंचा। तपोवन सुरंग से मलबा पूरी तरह साफ नहीं हो पाया है। अभी तक 161 मीटर तक ही सुरंग का मलबा हटाया गया है। सुरंग से पानी का रिसाव थम नहीं रहा है। मलबा हटाने का काम अब सिर्फ दिन के समय हो रहा है। जेसीबी और पोकलैंड मशीनों के बस की बात नहीं कि दुनिया की सबसे हैवी मशीनों से बनाई इस सुरंग से मलबा हटा सकें।