शंखनाद INDIA/डा० राजेंद्र कुकसाल/ उत्तराखंड-:
– हजारों करोड़ रुपए योजनाओं में खर्च करने के बाद भी राज्य में फ़ल उत्पादन का घटता क्षेत्रफल।
– पलायन आयोग की रीपोर्ट के अनुसार पौड़ी, टिहरी व अल्मोड़ा जनपदों में विभाग द्वारा दर्शाये गये आंकड़ों से हजारों हैक्टर कम पाया गया फल उत्पादन का क्षेत्रफल।
– बक्सी – पटनायक कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार भी उद्यान विभाग द्वारा दर्शाये गये फल उत्पादन क्षेत्र फल के आंकड़े मात्र 13 % ही सही है।
–खराब फल पौध व अनुचित तरीके से पैकिंग व कृषकों के खेत तक फल पौध ढुलान गलत तरीके से करने के कारण 40% पौधे पौध लगाने के प्रथम बर्ष में ही मर जाते हैं ।
–उद्यान विभाग योजनाओं में लगाये गये पौधों के हिसाब से हर बर्ष पौध रोपण का क्षेत्रफल व फलौं का उत्पादन बढता रहता है इसलिए दर्शाये गये आंकड़े सही नहीं है।
–फल उत्पादन के काल्पनिक आंकड़ों के सहारे राज्य नाशपाती,आड़ू,प्लम एवं खुवानी उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर।
– राज्य के सही नियोजन हेतु वास्तविक आंकड़ों का होना आवश्यक है।
– राज्य में काल्पनिक आंकड़ों के सहारे नियोजन की बात की जा रही है।
– काल्पनिक फल उत्पादन के आंकड़ों के सहारे पहाड़ी क्षेत्रों में स्थापित अधिकतर खाद्य प्रसंस्करण यूनिटें हुई बन्द।
उद्यान विभाग द्वारा हजारों करोड़ रुपए योजनाओं ( हार्टिकल्चर टैक्नोलॉजी मिशन, जिला योजना, राज्य सेक्टर की योजना, वाह्य सहायतित योजनाएं, कृषि विकास योजना, परम्परागत कृषि विकास योजना , जनजातीय विकास योजना निधि, नाबार्ड आदि ) पर खर्च करने के बाद ग्राम्य विकास एवं पलायन आयोग उत्तराखंड की जनपद पौड़ी, टिहरी व अल्मोड़ा की रिपोर्ट के अनुसार उद्यान विभाग द्वारा दर्शाये गये फल उत्पादन के आंकड़ों के विपरीत वास्तविक रूप में बहुत कम फल उत्पादन के अन्तर्गत क्षेत्र फ़ल पाया गया।
पलायन आयोग की पौड़ी जनपद की रिपोर्ट के अनुसार, जनपद में उद्यान विभाग द्वारा फल उद्यान के अन्तर्गत बर्ष 2015-16 में 20301 हैक्टियर क्षेत्रफल दर्शाया गया है। पलायन आयोग के बर्ष 2018-19 सर्वे में पाया कि पौड़ी जनपद में मात्र 4042 हैक्टेयर क्षेत्रफल में उद्यान हैं , याने दर्शाये गये क्षेत्रफल से 16259 हैक्टेयर कम ।
पलायन आयोग की टिहरी जनपद की रिपोर्ट के पृष्ट संख्या 86 के अनुसार जनपद में बर्ष 2015 – 16 में सेब का क्षेत्रफल जो 3820 था बर्ष 2017 – 18 में घट कर 853 हैक्टर, नाशपाती का 1815 से घटकर 240 हैक्टर , पुल्म का 2627 से घटकर 240, खुबानी का 1498 से घटकर 162 तथा अखरोट का 4833 से घटकर 422 हैक्टर रह गया है।
अल्मोड़ा जनपद की रिपोर्ट के पृष्ट संख्या 87 में उद्यानीकरण में निरंतर कमी होना लिखा गया है। यही हाल सभी जनपदों के हैं।
बर्ष 1986 में उत्तर प्रदेश के आठ पहाड़ी जनपदों में उद्यान विकास हेतु तत्कालीन मुख्यमंत्री स्वर्गीय श्री नारायण दत्त तिवारी जी ने बक्सी एवं पटनायक कमेटी का गठन विश्व बैंक हेतु प्रोजैक्ट बनाने के उद्देश्य से किया। पटनायक बक्सी कमेटी ने भी अपनी रिपोर्ट के पृष्ट संख्या दस मेंं लिखा है कि उद्यान विभाग द्वारा फलौ के अन्तर्गत दर्शाये गये क्षेत्र फल व उत्पादन के आंकड़े मात्र 13% ही सही है खराब फल पौध व अनुचित तरीके से पैकिंग व कृषकों के खेत तक फल पौध ढुलान गलत तरीके से करने के कारण 40% पौधे पौध लगाने के प्रथम बर्ष में ही मर जाते हैं विभाग योजनाओं में लगाये गये पौधों के हिसाब से हर बर्ष पौध रोपण का क्षेत्रफल व फलौं का उत्पादन बढता रहता है इसलिए दर्शाते गये आंकड़े सही नहीं है।
दूसरी ओर प्रत्येक जनपद की प्रगति आख्या में प्रति बर्ष लाखों पौधों के रोपण पर करोड़ों रुपए व्यय होना दर्शाया गया है।काल्पनिक आंकड़ों के सहारे राज्य नाशपाती, आड़ू,प्लम एवं खुवानी में देश में प्रथम स्थान पर।
उद्यान विभाग द्वारा बर्ष 2015–16 के फल उत्पादन के आंकड़ों एवं प्रगति रिपोर्ट के अनुसार उत्तराखंड राज्य नाशपाती, आड़ू , पल्म तथा खुवानी फल उत्पादन में पूरे देश में प्रथम स्थान पर तथा अखरोट उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर है। आंकड़ों के अनुसार नाशपाती 13029 हैक्टियर उत्पादन 78778 MT, आड़ू 7855 हैक्टेयर उत्पादन 57933 MT, प्लम 8837 हैक्टेयर उत्पादन 36154 MT, खुवानी 7954 हैक्टियर उत्पादन 28197 MT, अखरोट 17243 हैक्टेयर उत्पादन 19322 MT तथा सेव के अन्तर्गत 24982 हैक्टियर व उत्पादन 51940 MT दर्शाया गया है। फलों के अन्तर्गत बर्ष 2015 – 16 में फलों के अन्तर्गत कुल क्षेत्रफल 175329.90 हैक्टर तथा उत्पादन 659094.15 दर्शाया गया है।
विभाग के बर्ष 2018 – 19 के आंकड़ों के अनुसार राज्य में फ़ल उत्पादन के अन्तर्गत 180468.79 हैक्टर क्षेत्र फल तथा उत्पादन 664555.41 मैट्रिक टन दर्शाया गया है।
जवकि वास्तविकता यह है कि जव हम चार धाम यात्रा पर याने गंगोत्री यमुनोत्री श्रीबद्रीनाथ व केदारनाथ भ्रमण पर जाते है जिसमें राज्य के पांच पर्वतीय जनपदों का भ्रमण हो जाता है आपको 1200 मीटर की ऊंचाई तक कहीं कहीं घाटियों में आम बीजू के पौधे उससे ऊपर के क्षेत्रों में खेतों के किनारे व गधेरों में अखरोट के पौधे देखने को मिलते है ऊंचाई वाले क्षेत्रों में माल्टा पहाडी नीम्बू व चूलू खुवानी बीजू के पौधे देखने को मिलेगें रास्तों पर कहीं पर भी स्थानीय उत्पादित फल यात्रा सीज़न याने मई से अक्टूबर माह तक बिकते नहीं दिखते कुमाऊं मण्डल में भवाली गर्मपानी रानीखेत व कुछ अन्य स्थानों में स्थानीय उत्पादित फल बिकते हुए दिखाई देते हैं। द्वाराहाट व चौखुटिया क्षेत्र में गोला नाशपाती का उत्पादन होता है जिसका बाजार भाव कास्तकारों को अच्छा नहीं मिलता है।
वहीं दूसरी ओर यदि हिमाचल राज्य का भ्रमण करते हैं तो पोंठा साहव से आपको किन्नो व नीम्बू वर्गीय फलों के बाग दिखाई देते हैं सोलन के आसपास के क्षेत्रों में माह अप्रैल मई में चारों तरफ प्लम के बागों में सुफेद फूल दिखाई देते हैं तथा जुलाई अगस्त माह में सड़कों के किनारे पर प्लम सेंटारोजा के ढेर दिखाईं देते हैं।कुलू मनाली में सड़क के दोनों तरफ सेब के बाग दिखाई देते हैं।पूहू व लाहोल सफ्ति क्षेत्र में होप्स व खुबानी सकरपारा व चारमग्ज के बाग दिखाई देते हैं।
कहने का अभिप्राय यह है कि राज्य में नाशपाती ,आडू , प्लम , खुबानी के बहुत कम बाग देखने को मिलते है । फिर भी आकडो मै देश है प्रथम स्थान पर है।
अखरोट का कहीं कोई बाग बिकसित नहीं है बाग का अभिप्राय अख़रोट की नोन किस्म के 100 -200 पौधे एक साथ ले आउट में लगे हुए हों ऊचाई वाले क्षेत्रों में खेतों के किनारे या गधेरों में गांव के पास कहीं कहीं बीजू अखरोट के पौधे दिखाई देते हैं ।चकरौता नैनबाग रामगढ़ व पिथौरागढ़ चमोली व उतर काशी जनपद के कुछ क्षेत्रों में जंगल के रूप में अखरोट के पौधे दिखाई देते हैं यदि हम को अखरोट के कलमी पौधौ की व अखरोट बीज की आवश्यकता होती है तो हम हिमाचल या काश्मीर का रुख कर ते है फिर भी हम अखरोट उत्पादन में पूरे देश में द्वितीय स्थान पर है।
नाशपाती की मैक्स रैड व रैड बबूगोसा के फल बाजार में हिमाचल व काश्मीर के बिकते हैं फिर भी हम नाशपाती उत्पादन में देश में प्रथम स्थान पर है।यही स्थिति प्लम व आडू उत्पादन की है । कुछ क्षेत्रों नैनीताल जनपद के रामगढ़ टिहरी के नैनबाग क्षेत्र में कास्तकार अपने व्यक्तिगत प्रयासों से सेव के बाग हटा कर आड़ू के नये बाग बिकसित कर रहे है जिससे उन्हें अच्छा आर्थिक लाभ भी मिल रहा है ।
सेव में भी उत्पादन बहुत अधिक दर्शाया गया है सेव के पुराने बाग नष्ट हो चुके हैं नये बाग लगाने के प्रयास किए जा रहे हैं किन्तु गलत नियोजन व क्रियान्वयन में पारदर्शिता न होने के कारण आंशिक सफलता ही मिल पा रही है ।
उत्तरकाशी जनपद व राज्य के हिमाचल से लगे देहरादून व टेहरी जनपदों के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तथा पिथौरागढ़, चमोली जनपदों के बहुत अधिक ऊंचाई वाले क्षेत्र जो हिमालय के समीप है उन क्षेत्रों मैं सेब का अच्छा उत्पादन हो रहा है तथा सेव के कुछ नये बाग भी विकसित हुये है।
नैनीताल जनपद के रामगढ़ क्षेत्र में अधिकतर कृषकों ने सेब के पुराने पेड़ हटा कर आड़ू , प्लम, नाशपाती के अच्छे बाग विकसित किए हैं जिनसे अच्छा उत्पादन मिल रहा है सेब में रायमर व जौनाथन (केनिंग) किस्मौं का भी अच्छा उत्पादन हो रहा है।इस क्षेत्र में फूड प्रोसेसिंग की तीन चार छोटी इकाइयां भी चल रही है।
बर्ष 2005 से शासन लगातार उद्यान विभाग को फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक करने के निर्देश दे रहा है जिस के अनुपालन में राज्य के सभी जनपदों में राजस्व विभाग से सहयोग ले कर फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े एकत्रित कर निदेशालय भेजे किन्तु 15 बर्षों से अधिक समय व्यतीत होने के बाद भी विभाग द्वारा फल उत्पादन के वास्तविक आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए गये हैं।
काल्पनिक फल उत्पादन के आंकड़ों के सहारे लगी ज्यादातर बड़ी खाद्य प्रसंस्करण यूनिटें बन्द हुई है।
रामगढ नैनीताल में 70 के दशक में एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई थी फ़ल उपलब्ध न होने के कारण बन्द करदी गयी।
इसी प्रकार अल्मोड़ा जनपद के मटेला में 80 के दशक में करोंड़ों रुपए खर्च कर कोल्ड स्टोरेज बना जो आज फल उपलब्ध न होने के कारण बन्द पडाहै ।
रानीखेत चौबटिया गार्डन की एपिल जूस प्रोसिसिग यूनिट बन्द पड़ी है।
चमोली जनपद के कर्णप्रयाग में भी 80 के दशक में एग्रो द्वारा फूड प्रोसेसिंग यूनिट खुली और बन्द हुई।
रुद्रप्रयाग जनपद के तिलवाड़ा में भी फ़ूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई वह भी अधिक तर बन्द ही रहती है।
कई स्वयंम सेवी संस्थाओं एवं परियोजनाओं के माध्यम से फूड प्रोसेसिंग यूनिट लगाई गई किन्तु फल उपलब्ध न होने के कारण नहीं चल पाई।
पर्वतीय क्षेत्रों में कहीं कहीं पर व्यक्तिगत Small scale prossesing unit लगी है किन्तु अधिकांश यूनिटें पहाड़ी क्षेत्रों में फल न उपलब्ध होने के कारण मैदानी क्षेत्रो हरिद्वार आदि स्थानों से किन्नो संतरा का पल्प/जूस इक्ट्ठा कर माल्टा/संतरा जूस के नाम पर बेच रहे हैं।
किसी भी राज्य के सही नियोजन के लिए आवश्यक है कि उसके पास वास्तविक आंकड़े हों तभी भविष्य की रणनीति तय की जासकती है। काल्पनिक (फर्जी) आंकड़ों के आधार पर यदि योजनाएं बनाई जाती है तो उससे आवंटित धन का दुरपयोग ही होगा।
राज्य बनने पर आश जगी थी कि विकास योजनायें राज्य की विषम भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार बनेंगी किन्तु ऐसा नहीं हो पाया योजनाएं वैसे ही चल रही है जैसे उतर प्रदेश के समय में चल रही थी। राज्य के भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार योजनाओं में सुधार नहीं हुआ। विभाग योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए कार्ययोजना तैयार करता है कार्ययोजना में उन्हीं मदों में अधिक धनराशि रखी जाती है जिसमें आसानी से संगठित /संस्थागत भ्रष्टाचार किया जा सके ।
यदि विभाग /शासन को सीधे कोई सुझाव/ शिकायत भेजी जाती है तो कोई जवाब नहीं मिलता। माननीय प्रधानमंत्री जी /माननीय मुख्यमंत्री जी के समाधान पोर्टल पर सुझाव/ शिकायत अपलोड करने पर शिकायत शासन से संबंधित विभाग के निदेशक को जाती है वहां से जिला स्तरीय अधिकारियों को वहां से फील्ड स्टाफ को अन्त में जबाव मिलता है कि किसी भी कृषक द्वारा कार्यालय में कोई लिखित शिकायत दर्ज नहीं है सभी योजनाएं पारदर्शी ठंग से चल रही है।
उच्च स्तर पर योजनाओं का मूल्यांकन सिर्फ इस आधार पर होता है कि विभाग को कितना बजट आवंटित हुआ और अब तक कितना खर्च हुआ राज्य में कोई ऐसा सक्षम और ईमानदार सिस्टम नहीं दिखाई देता जो धरातल पर योजनाओं का ईमानदारी से मूल्यांकन कर योजनाओं में सुधार ला सके।
कहने को राज्य में अपना नया नर्सरी एक्ट लागू हो गया है पहले भी उत्तर प्रदेश नर्सरी एक्ट लागू था किन्तु अभी भी निम्न स्तर के खराब, कटी जड़ों की अनुचित तरीके से पैकिंग की हुई फल पौध योजनाओं में कृषकों को वितरित की जाती है।
राज्य बने बीस साल हो गए हैं आज भी उत्तराखंड के
प्रगतिशील कृषक अच्छी गुणवत्ता युक्त फल पौधों के लिए डाक्टर परमार औद्यानिक विश्व विद्यालय नौणी हिमाचल प्रदेश से लाइन में खड़े हो कर लेते हैं।
राज्य में पंजीकृत नर्सरियों में फल पौधों का उत्पादन उतना नहीं होता जितना दर्शाया जाता है विभागीय अधिकारियों से मिलकर नर्सरियों में उत्पादन अधिक से अधिक दिखा कर अन्य राज्यों की नर्सरियों से निम्न स्तर की फल पौध मंगा कर योजनाओं में वितरित किया जाता है।
निम्न स्तर की फ़ल पौध , गलत पैकिंग तथा नर्सरी से कृषकों के खेत तक अनुचित तरीके से ढुलान करने के कारण 40% से अधिक पौधे , पौध लगाने के प्रथम बर्ष में ही मर जाते हैं।
विभाग योजनाओं में लगाये गये पौधों के हिसाब से हर बर्ष पौध रोपण का क्षेत्रफल व फलौं का उत्पादन बढता रहता है इसलिए दर्शाते गये आंकड़े सही नहीं होते है।
जब तक किसान जागरूक नहीं होंगे , योजनाओं में राज्य की भौगोलिक स्थिति के अनुसार सुधार नहीं किया जाता तथा योजनाओं के क्रियान्वयन में पारदर्शिता नहीं रखी जाती सरकारी योजनाओ में लगे बाग कागजों में अधिक व धरातल में कम ही दिखाई देंगे।