उत्तराखंड हाईकोर्ट ने आय से अधिक संपत्ति और सरकारी कर्मचारियों द्वारा पारिवारिक संपत्ति के खुलासे में बरती जा रही लापरवाही पर कड़ा रुख अपनाया है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेंदर और न्यायमूर्ति सुभाष उपाध्याय की खंडपीठ ने बुधवार को हुई सुनवाई में स्पष्ट किया कि नियमों के तहत संपत्ति छुपाने पर जवाबदेही निश्चित की जाएगी। कोर्ट ने मुख्य सचिव और आयकर विभाग को विस्तृत कार्ययोजना के साथ कार्रवाई करने के निर्देश भी दिए हैं।
यह मामला जल निगम के कुछ अधिकारियों के खिलाफ दर्ज आय से अधिक संपत्ति की जांच से जुड़ा है। इस संबंध में अनिल चंद्र बलूनी और जाहिद अली ने जनहित याचिकाएं दायर की हैं, जबकि अखिलेश बहुगुणा और सुजीत कुमार विकास ने आरोपों को गलत बताते हुए याचिकाओं को चुनौती दी है। चारों प्रकरणों की सुनवाई एक साथ चल रही है।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने उत्तराखंड सरकारी सेवक आचरण नियमावली-2002 का हवाला देते हुए कहा कि कर्मचारी “परिवार के सदस्य आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं” कहकर संपत्ति विवरण न देने की छूट नहीं ले सकते। नियमों के अनुसार पत्नी, पति, पुत्र-पुत्री, सौतेले पुत्र-पुत्री और आश्रित रिश्तेदार परिवार की परिभाषा में शामिल हैं।
कोर्ट ने मुख्य सचिव को निर्देश दिए कि पारिवारिक संपत्ति के खुलासे से संबंधित सभी नियम दो सप्ताह के भीतर स्पष्ट कर गजट में प्रकाशित किए जाएं। अनुपालन रिपोर्ट 22 दिसंबर को प्रस्तुत करनी होगी।
आयकर विभाग को भी दोनों पीआईएल की प्रतियां उपलब्ध कराने और दो सप्ताह में जांच रिपोर्ट दाखिल करने के आदेश दिए गए हैं। विभाग को जरूरत पड़ने पर झारखंड से देहरादून तक रिकॉर्ड मंगाने की पूरी अनुमति दी गई है।
कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई में अनुपालन रिपोर्ट को कॉज़ लिस्ट में शीर्ष पर रखा जाए, ताकि किसी प्रकार की देरी न हो।
