शंखनाद INDIA :

हल्द्वानी: बच्चों की किलकारियों और हंसी-ठिठोलियों से जहां घरों को गुलजार होना चाहिए था, वे जेल की चहारदीवारी के भीतर कैद होकर रह गई हैं। महिला बंदियों और कैदियों के साथ उनके छोटे-छोटे बच्चों के जीवन की शुरूआत ही सलाखों के पीछे हो रही है। वहीं जीवन के अंतिम पड़ाव में भी कई बुजुर्ग बंदी और कैदी अपनी सजा काट रहे हैं। आपको बता दें कि हल्द्वानी उप कारागार में चार महिला बंदियों और टिहरी जेल में दो महिला बंदी और एक महिला कैदी के साथ उनके बच्चे भी जेल की चहारदीवारी के अंदर अपने मासूम जीवन की शुरूआत करने पर मजबूर हैं। सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक छह साल की उम्र तक के बच्चे को महिला बंदियों के साथ जेल में रखने की अनुमति है।

कायदे से तो इन बच्चों को भी स्कूल जाने के साथ ही खुली हवा में सांस लेने का हक है। लेकिन मां के जेल में बंद होने की वजह से इन्हें भी कैद काटनी पड़ रही है।

लोगों का तो यहां तक कहना है कि इन बच्चों को भी आम बच्चों की तरह स्कूल भेजना चाहिए, भले ही छह साल होने तक ये मां के साथ जेल में ही क्यों न रहें।

हल्द्वानी, टिहरी जेल में जिन महिला बंदियों और कैदियों के साथ उनके बच्चे रह रहे हैं उन पर हत्या, दहेज हत्या और पॉक्सो एक्ट समेत कई गंभीर आरोप लगे हैं।

हल्द्वानी उप कारागार में एक साल से बंद महिला पर उन्हीं बच्चों की मां (बहू) की हत्या का आरोप है। आपको यह भी बता दें कि इसके अलावा टिहरी जेल में हत्या के अपराध में उम्रकैद की सजा काट रहे दंपती की तीन और पांच साल की दो बेटियां और चार महीने का बेटा भी माता-पिता के गुनाहों की सजा भुगतने के लिए मजबूर है।

टिहरी जेल अधीक्षक अनुराग मलिक का कहना है कि दंपती को देहरादून शिफ्ट करने की बात चल रही है ताकि उनके बच्चों की बेहतर शिक्षा-दीक्षा हो सके। वहीं एक महिला बंदी ने तो बेटे को जन्म ही टिहरी जेल की चहारदीवारी में दिया है।

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