नई दिल्ली। राजधानी में वायु गुणवत्ता को सुधारने के उद्देश्य से ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (ग्रेप) का चौथा चरण लागू कर दिया गया है, लेकिन जमीनी स्तर पर नियमों का पालन होता नजर नहीं आ रहा। इसके चलते दिल्ली की हवा लगातार खराब श्रेणी में बनी हुई है और आम लोगों की सेहत पर सीधा असर पड़ रहा है।
मंगलवार को मयूर विहार इलाके में सड़क किनारे कूड़ा जलते हुए देखा गया। ग्रेप-4 के तहत कूड़ा जलाना पूरी तरह प्रतिबंधित है, क्योंकि इससे जहरीली गैसें और सूक्ष्म कण हवा में फैलते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, ऐसे मामलों से पीएम 2.5 और पीएम 10 का स्तर तेजी से बढ़ता है, जो दमा, फेफड़ों और हृदय संबंधी बीमारियों का कारण बनता है।
इतना ही नहीं, नई दिल्ली के कई इलाकों में निर्माण कार्य भी नियमों को ताक पर रखकर जारी रहा। निर्माण स्थलों पर न तो ग्रीन नेट लगाए गए थे और न ही धूल रोकने के अन्य इंतजाम किए गए थे। अप्सरा बॉर्डर के पास सड़क पर बसों और भारी वाहनों की आवाजाही से धूल का गुबार उठता दिखा, जिससे हालात ऐसे प्रतीत हुए मानो धूल भरी आंधी चल रही हो। आसपास रहने वाले लोगों को मजबूरी में प्रदूषित हवा में सांस लेनी पड़ी।
अग्निशमन विभाग के आंकड़े भी स्थिति की गंभीरता को उजागर करते हैं। विभाग के अनुसार, इस साल 30 नवंबर तक कूड़े के ढेरों में आग लगने की 4,753 कॉल मिलीं, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में 4,676 कॉल दर्ज की गई थीं। केवल अप्रैल माह में ही 1,030 और नवंबर में, जब ग्रेप-4 लागू था, 973 ऐसी घटनाएं सामने आईं। यमुनापार, गाजीपुर लैंडफिल और आसपास के इलाकों से सबसे ज्यादा शिकायतें मिली हैं।
विशेषज्ञों और डॉक्टरों का कहना है कि कचरा जलाने से निकलने वाले पीएम 2.5 के कण फेफड़ों में गहराई तक चले जाते हैं। इसके धुएं में नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड और अन्य जहरीले रसायन शामिल होते हैं, जो स्वास्थ्य के लिए जानलेवा साबित हो सकते हैं। पर्यावरण कार्यकर्ताओं ने अधिकारियों से कूड़ा जलाने पर सख्ती, निर्माण स्थलों पर ग्रीन नेट अनिवार्य करने और सड़क धूल पर नियमित निगरानी की मांग की है।
