शंखनाद INDIA/ भाष्कर द्विवेदी/पौड़ी
कोटद्वार सतपुली बैजरो मोटर मार्ग के रीठाखाल व संगलाकोटी बाजार के लगभग बीचों बीच में सड़क से दाईं ओर बसा है गांव मंजीसेरा जहां पर वर्तमान में एक परिवार स्व० ख्याल गिरी का भी है जो अन्यों कि तरह जीवन यापन करते हैं इनकी जीवन शैली अन्य लोगों से किसी भी प्रकार से भिन्न नहीं है, भिन्न है तो इनका पूजा स्थल व पूजा विधि, इनके पूजा स्थल को एक अलग तरह के नाम ‘मंजी’ से जाना जाता है जैसे अन्य लोग अपने पूजा स्थल को मंदिर, मस्जिद, या गुरुद्वारा के नाम से पुकारते हैं, ये मंजी के नाम से जानते हैं

सामने स्थित हलूणी गांव के सेरों के एक किनारे में खुले आसमान के नीचे एक छोटे से आले के रूप में स्थित है इनका यह मंजी जिस पर सदैव झंडे के रूप में एक निसान फहरा कर अध्यात्मिक अनुभूति प्रदान करता है वास्तव में ये लोग गुरु गोरखनाथ के अनुयाई हैं,जो गुरु में दृढ़ विश्वाश रखते हैं परंतु इनके पूजा स्थल में कृष्ण व बैल की मूर्तियाँ भी देखने को मिलती है , जो इस बात का परिचायक है कि ये इनको भी अपने जीवन मैं उतना ही महत्व देते हैं बाँसुरी बजाते हुए कृष्ण की पत्थर पर उकेरी गई ये मूर्तियाँ इनके स्थापत्य कला में महारथ को भी इंगित करते हैं ,इसके अलावा ये देवी के भी उपासक माने जाते हैं हांलाकि वर्तमान में यह भी देखने में आया है कि ये लोग अन्यों की तरह नाग्रजा, नरसिहं, निरंकार आदि देवताओं की भी पूजा करने लगै हैं फिर भी गुरु व गुरु कि महानता पर विश्वाश रखते हैं ये लोग सुबह शाम दोनों समय अरदास करते हैं, व साल में एक बार भंडारा आयोजित कर गुरु का प्रसाद बांटते हैं।

 

एक प्रथा के अनुसार इनके भंडारे के आयोजन के लिए आस-पास के गांव के लोग अपने -अपने खेतों से एक नाली खेत का अनाज दान करते हैं ,आज के समय में इन लोगों की बसागत बहुत ही सीमित छेत्रों में है मंजी सेरा के अलावा ये लोग मालकोट, कांडई (मंजी), कंडुली (सेदिया), मेवा (मंजी), गाड़ की वीणा, गाड़, गौंखेड़ा, गुराड़ तल्ला, कल्जीखाल ब्लॉक के क्यार्द गांव, पोखरीखेत, बदलपुर सेरा, भल्ली गांव, लैंसडाउन, पंटागुणी, कलढुंगा, आदि में निवास करते हैं व इसी प्रकार की मंजियां पोखड़ा ब्लॉक के मालकोट, व मेवा में भी स्थित हैं ।

 

तो एकेश्वर ब्लॉक के कोयल गांव व गौंखेड़ा में भी मंजी स्थित हैं कुछ जगह ये लोग बन्दूणी तो कुछ जगह गोस्वामी भी लिखते हैं ,आपसी प्यार पिरेम व सामाजिक समरसता को बढ़ाने में ये लोग कहीं से भी कम नहीं दिखते किसी जमाने में भ्रमण व स्थानीय शिल्पों से अपणी जीविका चलाने वाले आज आधुनिक जीवन शैली की ओर बढ़ गये हैं जहां पर यह संस्कृति भी अपने स्तित्व को बचाने की जद्दोजहद में लगी है हांलाकि ये लोग अब सभी त्योहारों को भी मनाने लगै हैं, फिर भी इनकी धार्मिक आस्था और संपन्नता आज भी बरकरार है।

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