मदमहेश्वर Madmaheshwar

पंच केदारों में द्वितीय केदार के नाम से विश्व विख्यात भगवान मद्महेश्वर के कपाट खोलने व चल विग्रह उत्सव डोली के शीतकालीन गद्दी ओंकारेश्वर मन्दिर से कैलाश रवाना होने की तिथि वैशाखी पर्व पर शीतकालीन गद्दी ओंकारेश्वर मन्दिर मे पंचाग गणना के अनुसार घोषित कर दी गई है ।

21 मई को खुलेंगे द्वितीय केदार मद्महेश्वर के कपाट

18 मई को भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव मूर्तियां ओंकारेश्वर मन्दिर से सभा मण्डप मे विराजमान होगी। जिसके बाद 19 मई को भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली शीतकालीन गद्दी स्थल ओंकारेश्वर मन्दिर से धाम के लिए रवाना होगी। विभिन्न यात्रा पड़ावों पर श्रद्धालुओं को आशीर्वाद देते हुए 21 मई को मद्महेश्वर धाम पहुंचेगी। भगवान मद्महेश्वर की चल विग्रह उत्सव डोली के धाम पहुंचने पर मदमहेश्वर धाम के कपाट वेद ऋचाओं के साथ ग्रीष्मकाल के लिए खोल दिए जाएंगे ।

मद्महेश्वर में होती है नाभि की पूजा

आपको बता दें कि उत्तराखंड के पंचकेदार में भगवान शिव के पांच अलग-अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है। भोले के भक्त केदारनाथ में बैलरूपी शिव के कूबड़ की, तुंगनाथ में भुजाओं की, रुद्रनाथ में मस्तक की, मद्महेश्वर में नाभि की और कल्पेश्वर में जटाओं की पूजा करके पुण्यफल प्राप्त करते हैं। हिंदू मान्यता के अनुसार जो व्यक्ति मद्महेश्वर मंदिर में जाकर भगवान शिव की नाभि का दर्शन और पूजन करता है। उस पर महादेव की असीम कृपा बरसती है।

लिंगायत ब्राह्मण होते हैं पुजारी

ऐसी मान्यता है कि प्रकृति की गोद में बसे इसी मंदिर कभी महादेव और माता पार्वती ने रात्रि बिताई थी। मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की पूजा के लिए दक्षिण भारत के लिंगायत ब्राह्मण पुजारी के रूप में नियुक्त होते हैं। मद्महेश्वर मंदिर के साथ इस पावन धाम के निकट स्थित बूढ़ा मद्महेश्वर मंदिर, लिंगम मद्महेश्वर, अर्धनारीश्वर और भीम के मंदिर की पूजा और दर्शन का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है। बता दें मद्महेश्वर धाम 3,497 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां पहुंचने के लिए भक्तों को करीब 14 किलोमीटर की पैदल यात्रा पूरी करनी पड़ती है।