टिहरी की श्रुतिका ने दिल्ली में उच्च शिक्षा के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में कुछ अलग करने की ठानी और दो साल में उनका चयन राष्ट्रमंडल युवा पुरस्कार के लिए हो गया। उनका चयन राष्ट्रमंडल देशों के कुल 50 युवाओं में किया गया है, जिसमें चार भारतीय शामिल हैं। सितंबर में उन्हें लंदन में यह पुरस्कार दिया जाएगा।

शिक्षा के सुधार पर काम कर रही हैं श्रुतिका

श्रुतिका सिंपल फाउंडेशन के साथ टिहरी गढ़वाल में शिक्षा के सुधार पर काम कर रही हैं। वह फाउंडेशन की एसोसिएट डायरेक्टर हैं। फिलहाल वह पांच स्कूलों में अपना प्रोजेक्ट चला रही हैं, लेकिन उनका सपना देशभर के सरकारी स्कूलों में गुणात्मक सुधार पर है। इसके लिए उन्होंने कुछ प्रोजेक्ट बनाएं हैं जो बच्चों को भावनात्मक रूप से काफी मजबूत बनाते हैं।

शिक्षा के लिए पहाड़ से होने वाले पलायन से आहत

उन्हें इससे पहले भी टीचर फॉर इंडिया और दलाईलामा फेलोशिप मिल चुकी है। मूल रूप से टिहरी के कखीलभेलधार की रहने वाली श्रुतिका के पिता विनोद सिलस्वाल एमआईटी कॉलेज ढालवाला में जबकि मां मीनाक्षी चंबा के जीआईसी नागणी में शिक्षिका हैं। श्रुतिका कोविड के बाद शिक्षा के लिए पहाड़ से होने वाले पलायन से आहत हैं और वह नहीं चाहतीं कि कोई प्राथमिक शिक्षा के लिए अपना घर छोड़कर दूसरे शहर जाए।

बच्चों के से कम्यूनिकेशन करते हैं टीचर

हम स्कूल के अंदर बच्चों के साथ दिल से लगाव के लिए प्रैक्टिस करते हैं। हर दिन सुबह के समय बच्चों से शिक्षक बात करते हैं कि वह कैसा अनुभव करते हैं और बच्चों को पूछते हैं कि आज क्या खाया। क्या आज वह ठीक से सो पाए या नहीं सो पाए। क्या उनके घर में कोई समस्या तो नहीं है। इस तरह की बातें बच्चों को प्रभावित करती हैं और बच्चो को लगता है कि कोई उनकी भी सुन रहा है। ऐसे में अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं।

श्रुतिका सिलस्वाल में ऐसे जागा बच्चों के लिए स्नेह

श्रुतिका सिलस्वाल ने ओमान और दिल्ली में पढ़ाई की।  इस बीच यूथ एलायंस संस्था के साथ वालिंटियर के रूप में काम कर रही थीं। बीकॉम खत्म होने के बाद सीए की तैयारी शुरू करनी थी। लेकिन उनका मन सामाजिक कार्यों में लग रहा था। कोविड-19 के दौरान अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही थीं. इस दौरान उत्तराखंड से काफी संख्या में लोग पलायन कर दूसरे शहरों में जा रहे थे। श्रुतिका बताती हैं कि मैंने अनेक लोगों से बात की। सबसे ज्यादा समस्या बच्चों की शिक्षा की थी। इसके अलावा मेरी मम्मी शिक्षिका हैं तो गांव का अनुभव था। तभी मुझे लगा कि वापस गांव जाना चाहिए और लोगों के लिए कुछ करना चाहिए। इसके बाद सिंपल फाउंडेशन से संपर्क किया और हम एक साथ काम करने लगे। इसका आज परिणाम सामने देखने को मिल रहा है।