विधानसभा सत्र के चौथे दिन सदन के पटल पर उत्तराखंड भू-कानून को लेकर उत्तर प्रदेश जमींदारी विनाश एवं भूमि व्यवस्था संशोधन विधेयक 2025 सदन के पटल पर रखा। जिस पर विपक्ष ने चर्चा की मांग की। चर्चा के पास भू-कानून को पारित कर दिया गया है। अब इस पर मूल निवास, भू-कानून संघर्ष समिति का बड़ा बयान सामने आया है। समिति ने इसे जनता के साथ सबसे बड़ा धोखा बताया है।
मूल निवास, भू-कानून संघर्ष समिति ने भू-कानून में किए गए संशोधनों को उत्तराखंड की जनता के साथ सबसे बड़ा धोखा बताया और इसे जनता की आंखों में धूल झोंकने वाला कानून बताया है। संघर्ष समिति के संयोजक मोहित डिमरी ने भू-कानून के संशोधन विधेयक की प्रति फाड़ते हुए इसे माफिया के पक्ष में बताया। मोहित डिमरी का कहना है कि भू-कानून के संशोधित विधेयक में नगरीय क्षेत्रों को इस क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया है। सबसे ज्यादा बेशकीमती ज़मीनें शहरों में ही हैं। यहां जमीन खरीदने की कोई पाबंदी नहीं है। निकायों के विस्तार के चलते लगातार ग्रामीण क्षेत्रों की ज़मीन शहरों में शामिल हो रही है।
सरकार ने पुराने कानून में ही की है लीपापोती
मोहित डिमरी का कहना है कि देहरादून, ऋषिकेश, कोटद्वार, पौड़ी, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, गौचर, कर्णप्रयाग, गोपेश्वर, जोशीमठ, गैरसैंण, हल्द्वानी, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, रामनगर, नैनीताल, भवाली, टिहरी, नरेंनगर, देवप्रयाग, चंबा, रानीखेत, धारचूला सहित अन्य निकायों में कोई भी बाहरी व्यक्ति बेतहाशा जमीन खरीद सकता है।
यहां तक कि केदारनाथ, बद्रीनाथ और गंगोत्री नगर पंचायत क्षेत्र में भी जमीन खरीदने की छूट है। ये कानून सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र के लिए है। यहां 250 वर्ग मीटर ही कोई बाहरी व्यक्ति जमीन खरीद सकता है। शहरों में जमीन खरीदने की कोई लिमिट नहीं है। राज्य निर्माण के बाद शहरों की प्राइम लैड को माफ़िया और बाहरी लोगों ने खुर्द-बुर्द किया है। संघर्ष समिति की मुख्य मांग यही थी कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में भूमि खरीदने का एक ही कानून बने। लेकिन सरकार ने पुराने क़ानून में ही लीपापोती की है।
उत्तराखंड की डेमोग्राफी बदलना है सरकार की मंशा
संघर्ष समिति के संयोजक का कहना है कि हरिद्वार और उधमसिंहनगर जिले को भूमि क़ानून के दायरे से बाहर रखा गया है। उन्होंने कहा कि सबसे ज्यादा भू माफिया इन्हीं दो जिलों में हैं और यहां किसानों की ज़मीन खत्म हो रही है। मैदानी मूल के व्यक्ति भी इस बात की चिंता कर रहे हैं। सरकार की मंशा उत्तराखंड की डेमोग्राफी बदलना है, ताकि पर्वतीय राज्य की अस्मिता को खत्म किया जा सके।
लगातार जनसंख्या बढ़ने से भविष्य में होने जा रहे परिसीमन से हरिद्वार और उधमसिंहनगर की विधानसभा सीटें बढ़ने जा रही है। ये चिंता सिर्फ पर्वतीय मूल के लोगों की नहीं है, बल्कि मैदानी लोग भी इसको लेकर चिंतित हैं। समान नागरिक संहिता की बात करने वाली सरकार एक राज्य में दो-दो भू-क़ानून थोप रही है। उन्होंने कहा कि पर्वतीय क्षेत्र की कृषि भूमि को 30 साल तक पूंजीपतियों को पट्टे पर देने का भी प्रावधान किया गया है। इस से हमारे काश्तकार अपने ही खेतों में नौकर या चौकीदार बन जाएंगे। उन्होंने कहा कि संघर्ष समिति इस काले क़ानून को जनता के बीच ले जाएगी और सरकार द्वारा किये गए छलावे को बताएगी। एक बार फिर जनता को लामबंद किया जाएगा।