शंखनाद INDIA/ देहरादून डा अरुण कुकसाल : उत्तराखंड में भले ही आज आर्गेनिक खेती का उपयोग बहुत हो रहा हैं। परन्तु हम यह भी भलीभांति जानते हैं की आज जो यह खेती हो रही हैं;… वह कही न कही भूजल में मिलकर प्राकृतिक जल स्रोतों को दूषित कर रही हैं। वही आपको बता दे, उत्तराखंड कृषि प्रदान राज्य है जहां पर अधिकांश लोगों की आजीविका कृषि पर ही निर्भर है। राज्य का अधिकांश भाग पर्वतीय है जहां पर 65 प्रतिशत वन आच्छ्यादित है। पर्वतीय क्षेत्रों में बर्षा आधारित कृषि होती है साथ ही इस क्षेत्र में रसायनिक खाद का उपयोग बहुत कम याने 5 किलो ग्राम प्रति हेक्टेयर ही होता है । पहाड़ी क्षेत्रों में जैविक खेती की संभावनाओं को देखते हुए 2003 में शासन द्वारा पर्वतीय क्षेत्रों में शत् प्रतिशत एवं मैदानी क्षेत्रों में 50 प्रतिशत स्वैच्छा से जैविक खेती करने का निर्णय लिया गया। आगे पढ़े। …..

वही हम बात करे माननीय प्रधानमंत्री जी द्वारा बर्ष 2017 में राज्य में एक हजार पांच सौ करोड़ रुपये की परम्परागत कृषि विकास योजना स्वीकृत की गई, जिसका उद्देश्य राज्य के परम्परागत (स्थानीय/ देशी) बीजों का अनुरक्षण एवं संम्वर्धन करना एवं इन बीजों से प्राप्त उपज का जैविक प्रमाणीकरण करना तथा व्रान्डिंग कर मार्केटिंग करना है। इस कार्य हेतु प्रोत्साहन के लिए कृषकों की आर्थिक मदद करना है जिसका भुगतान डी बी टी के माध्यम से करने का है। इस योजना के अंतर्गत राज्य में कुल दस हजार जैविक क्लस्टरों में जैविक खेती करने का निर्णय लिया गया।

एक क्लस्टर में 20 हैक्टेयर भूमि ली जायेगी। प्रत्येक जैविक कल्सटर पर दस लाख रुपए व्यय किए जाने का प्रावधान है……

प्रधानमंत्री जी का संकल्प है कि किसानों को योजनाओं में मिलने वाला अनुदान सीधे उनके खाते में जमा हो इसी निमित्त भारत सरकार के कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय ने अपने पत्रांक कृषि भवन,नई दिल्ली दिनांक फरबरी,28 2017 के द्वारा कृषि विभाग की योजनाओं में कृषकों को मिलने वाला अनुदान डी वी टी के अन्तर्गत सीधे कृषकों के खाते में डालने के निर्देश सभी राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के कृषि उत्पादन आयुक्त, मुख्य सचिव, सचिव एवं निदेशक कृषि को किये गये। जिसके परिपालन में हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश सहित सभी राज्यों ने बर्ष 2017 से ही कृषि योजनाओं में मिलने वाले अनुदान की धनराशि चयनित कृषकों के खाते में डीबीटी के माध्यम से डालना शुरू कर दिया है। किन्तु देवभूमि उत्तराखंड में ऐसा नहीं हो रहा।

जैविक राज्य बनाने के लिए 610 करोड़ रुपए की मंजूरी मिली ….

उत्तराखंड में ओर्गेनक खेती के लिए केन्द्र सरकार से 610 करोड रूपए की मंजूरी मिल गई है इससे प्रदेश में 2024 तक 6100 ओर्गेनक क्लस्टर बनाये जायेंगे। राज्य में जैविक खेती का क्रियान्वयन बर्ष 2003-4 से हो रहा है राष्ट्रीय कृषि विकास योजना तथा 2017 से पारंपरिक कृषि विकास योजना के अंतर्गत प्रदेश को जैविक प्रदेश बनाने की बात की जा रही है। कृषि निदेशालय उत्तराखंड, देहरादून के पत्रांक- कृ०नि०/25/जैविक/ पी०के०वी०वाई०/2020 – 21/देहरादून दिनांक 09 अप्रेल 2020 के द्वारा परम्परागत कृषि विकास योजना 2019 – 20 हेतु भारत सरकार द्वारा प्रथम किस्त के रूप में रु० 3550.53 लाख की धनराशि अवमुक्त की गई है जिससे 3900 जैविक कल्सटर विकसित होने की बात की जा रही है।

पेश हैं श्रीनगर से भी एक खास रिपोर्ट आपके समक्ष ….

पिछले 2 हफ्ते में खुले में पड़ी हुई हैं. ये दवाएं और जैविक खाद अब खराब होने की कगार पर पहुंच चुकी हैं, लेकिन इन दवाओं और खाद का कोई हाल लेने वाला नहीं है. कृषि विभाग की ओर से ये खाद और दवाइयां जैविक कृषि को बढ़ावा देने के लिए किसानों को वितरित की जानी थी.

दरअसल, कृषि विभाग की ओर से जैविक खेती को बढ़ावा दिए जाने के लिए गांवों के समूह बनाए गए हैं. विभाग की ओर से किसानों को बीज, खाद और जैविक दवाइयां नि:शुल्क वितरित किया जाता है. साथ ही जैविक खाद तैयार करने के लिए रसायन भी दिए जाते हैं. लेकिन न्यूली गांव मे एक अलग ही दृश्य देखने को मिला है. 2 हफ्ते से यहां पर दवाइयां और खाद लावारिस खुले में पड़े हैं. इस ओर विभाग का ध्यान ही नहीं जा रहा है, वहीं, गांव के रहने वाले अनिल चमोली ने बताया कि यहां पर महंगी खाद और दवाओं की बेकदरी की जा रही है. यही खाद और दवाएं किसानों के काम आ सकती थीं. अनिल ने बताया कि इन दवाओं का कोई दुरूपयोग भी कर सकता कर सकता है. वहीं, कृषि एवं भूमि संरक्षक अधिकारी हरीश चंद्र भारद्वाज ने बताया कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं है. फिर भी वो इस पूरे मामले की जांच करेंगे।

किसानो की आय दुगनी का भी हैं मिशन ….

किसानों की आय दोगुना करने के मिशन के तहत केंद्र सरकार ने पिछले साल राज्य को परंपरागत कृषि विकास योजना को स्वीकृति दी थी। इस योजना के तहत परंपरागत किसानों के 39 सौ कलस्टर बनाए जा चुके हैं। हर कलस्टर में 50 किसान जोड़े गए हैं। प्रत्येक कलस्टर को एक साल में छह लाख रुपये बीज, खाद, दवा और प्रशिक्षण के लिए दिए जाने हैं। कृषि निदेशालय का कहना है कि पहली किश्त के रूप में 131 करोड़ स्वीकृति हुए थे। इसमें 65 करोड़ से विभिन्न कंपनियों के मार्फत निविदा से किट की खरीदारी हुई है। किट सभी कलस्टर में बांटी जा चुकी हैं। मगर, प्रशिक्षण देने वाली संस्था का शेड्यूल अभी तय नहीं हुआ है। खरीफ की फसल की बुआई को महज एक माह शेष है। ऐसे में कब प्रशिक्षण दिया जाएगा और कब फसल तैयार की जाएगी, इसे लेकर किसान चिंतित हैं। किसानों को आशंका है कि कहीं सिर्फ बजट ठिकाने लगाने के लिए किसानों की आड़ तो नहीं ली जा रही है।

PGS द्वारा जैविक प्रमाणीकरण के चार मानक है ……

1.भागीदारी-
प्रमाणीकरण प्रणाली में हितधारकों की सक्रिय भागीदारी होती है जिसमें न केवल किसान, बल्कि व्यापारी और उपभोक्ता भी शामिल हैं।

2. सहभागितापूर्ण दृष्टिकोण-
कार्यान्वयन और निर्णय लेने के लिये सामूहिक रूप से ज़िम्मेदारी ली जाती है, जो एक साझे दृष्टिकोण पर आधारित होती है।

3. पारदर्शिता-
जैविक गारंटी प्रक्रिया में उत्पादकों की सक्रिय भागीदारी के माध्यम से पारदर्शिता बनाए रखी जाती है।

4. विश्वास-
PGS का मूल विचार इस बात पर आधारित है कि उत्पादकों पर भरोसा किया जा सकता है तथा PGS प्रणाली इस विश्वास को जाँच के द्वारा सही सिद्ध करेगी ।

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