शंखनाद  INDIA/ हरिद्वार : यह गाना तो आपने जरूर सुना होगा “जो हर हर गंगे बोले, जो दुःख में कभी न डोले वो गंगा माँ का प्यार पायेगा” हर हर गंगे। ….. “हर हर गंगे” शब्द का उत्पादन हम सभी को पता है क्यों हुआ है क्योंकि कहते हैं कि गंगा इतनी ज्यादा पवित्र है, कि यहां पर यदि कोई अपने आप को शुद्ध कर ले. तो वह पवित्र माना जाता है। दरअसल, गंगा पवित्र नदी वो पावन नदी हैं जो पवित्र कहलाती हैं। परंतु आज शंखनाद इंडिया आपके साथ साझा करना चाहता है पिछले कुछ सालो का वह रिकॉर्ड जो गंगा मैया को सिर्फ नाम का पवित्र बता सकता है। हम ऐसा क्यों कह रहे हैं वह भी आपको बता दे, उत्तराखंड मैं पिछले 10 सालों से गंगा में तकरीबन ₹26 सौ करोड़ लग चुके हैं लेकिन गंगा अभी भी मैली की मैली है। जिस का क्या कारण है वह आज शंखनाद इंडिया आपको बताता है…..

मोक्ष दायिनी “गंगा” मैया को साफ करने का अभियान पिछले दो दशक से चल रहा है। दो हजार करोड़ रुपये खर्च होने बावजूद जीवनदायिनी को गंदगी से निजा नहीं मिल सकी। गोघाट के बाद जब गोमती लखनऊ में प्रवेश करती है तो इसे सर्वाधिक प्रवाह प्राकृतिक कुकरैल नाले से प्राप्त होता है। जो मानसून के सीजन में नदी की मुख्य धारा को गति प्रदान करने में अग्रणीय है। गोमती बैराज के समीप गोमती में मिलने वाला कुकरैल आज प्रदूषित होकर स्वयं में ही सिमट गया है। अब यह केवल असंशोधित सीवेज से गोमती को मैला कर रहा है।

क्या हैं महवपूर्ण बात …

पहला कारण : 960 किमी की यात्रा में किया अध्ययन के अनुसार बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय के पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर वेंकटेश दत्ता ने 2011 में,गोमती नदी के साथ-साथ पीलीभीत से वाराणसी तक 960 किमी की यात्रा की, और यूपी सरकार को एक विस्तृत पुनरीक्षण रिपोर्ट प्रस्तुत की और अभी तक इसको लेकर कार्य नहीं किया गया। सिंचाई विभाग द्वारा हार्डिंग पुल से गोमती के किनारों के साथ दो बड़े ट्रंकों का निर्माण गोमती बैराज के डाउनस्ट्रीम तक किया गया था, जिससे कुकरैल नाले समेत शहर के लगभग 20 नालों का सीवेज बह सके। लामार्टीनियर कालेज के पास डाउनस्ट्रीम क्षेत्र में सीवेज का निर्वहन किया जा सके, ताकि आगे सीवेज भरवारा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की और बहे। लेकिन सरकारी दोषपूर्ण परियोजना के चलते निर्मित ट्रंक कुकरैल के समग्र बहिर्वाह को ले जाने के लिए पर्याप्त नहीं हैं, जिसका परिणाम यह हो रहा है कि कुकरैल का अतिरिक्त निर्वहन नालों में जाने के स्थान पर गोमती को प्रदूषित कर रहा है।

दूसरा कारण : राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण ने 20 सितंबर, 2018 को अपने आदेश में प्रदेश को गोमती नदी की गुणवत्ता को बहाल करने के लिए गोमती एक्शन प्लान तैयार करने का आदेश दिया। नदी को उद्योगों और सीतापुर, हरदोई, बाराबंकी, सुल्तानपुर, जौनपुर और केराकत (जौनपुर) के विभिन्न नगर पालिका क्षेत्र से हर दिन उद्योगों और सीवेज सिस्टम से काफी मात्रा में अपशिष्ट जल प्राप्त होता है। जिससे इसकी जल गुणवत्ता बिगड़ जाती है. गोमती नदी में 68 नालों के माध्यम से सीवेज और औद्योगिक अपशिष्ट के रूप में 865 एमएलडी के कुल निर्वहन का अनुमान है और नदी में 30 उद्योगों का प्रत्यक्ष निर्वहन है। लगभग 835 एमएलडी सीवेज और 30 एमएलडी औद्योगिक अपशिष्ट वर्तमान में विभिन्न नालियों और सरायन नदी के माध्यम से गोमती नदी में जा रहा है. प्रदूषित नदी के बहाव में 30 एमएलडी, 30 उद्योगों से आने वाले औद्योगिक अपशिष्ट गोमती नदी में बहाया जा रहा है। 835 एमएलडी के कुल अनुमानित सीवेज निर्वहन के रूप में केवल 443 एमएलडी सीवेज का उपचार किया जाता है।

यह हैं विशेष बात……

नाली और नाले का पानी : कुल 138 नाले गंगा में 6087 एमएलडी गंदगी छोड़ते हैं, जिनमें 14 उत्तराखंड, 45 उत्तरप्रदेश, 25 बिहार और 54 नाले पश्चिम बंगाल में हैं। इसके अलावा 764 अति-प्रदूषित औद्योगिक इकाइयां गंगा में गंदगी डाल रही हैं जिसमें 687 उत्तरप्रदेश में हैं।

विश्व बैंक की एक रिपोर्ट के अनुसार उत्तरप्रदेश में बहुत-सी बीमारियों का कारण जहर बन चुका गंगाजल है। आज गंगा जल पीने व नहाने के योग्य नहीं रहा। कई वैज्ञानिकों के अनुसार गंगा का पानी फसलों की सिंचाई करने के योग्य भी नहीं है।

कारखानों से फैल रहा गंगा में जहर : सीपीसीबी ने एनजीटी को 956 औद्योगिक इकाइयों की सूची सौंपी थी जिनसे गंगा में प्रदूषण हो रहा है। इन सभी औद्योगिक इकाइयों पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है। गंगा के किनारे लगे परमाणु बिजलीघर, रासायनिक खाद, शकर के कारखाने और चमड़े के कारखाने जहररूपी अपना औद्योगिक कचरा गंगा में फेंक रहे हैं। मोदी सरकार के आने के बाद भी नहीं यह कचरा फेंका जा रहा है। तत्काल प्रभाव से इन इकाइयों को बंद नहीं किया गया तो जानकार कहते हैं कि मात्र 20 साल में गंगा पूरी तरह से मर जाएगी।

दुर्लभ प्रजा‍तियां खतरे में : इस नदी में मछलियों तथा सर्पों की अनेक प्रजातियां तो पाई ही जाती हैं, मीठे पानी वाले दुर्लभ डालफिन भी पाए जाते हैं। जल प्रदूषण और जल की कमी के कारण हजारों दुर्लभ जलचर जंतुओं का जीवन अब खतरे में है।

पवित्र है गंगा का जल : इसका वैज्ञानिक आधार सिद्ध हुए वर्षों बीत गए। उसके अनुसार नदी के जल में मौजूद बैक्टीरियोफेज नामक जीवाणु गंगाजल में मौजूद हानिकारक सूक्ष्म जीवों को जीवित नहीं रहने देते अर्थात ये ऐसे जीवाणु हैं, जो गंदगी और बीमारी फैलाने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर देते हैं। इसके कारण ही गंगा का जल नहीं सड़ता है।

निष्कर्ष

गंगा, यमुना, गोदावरी समेत देश की विभिन्न नदियों के संरक्षण के लिए 10 वर्षों में 2600 करोड़ रूपये से अधिक धनराशि खर्च करने के बाद भी नदियों में प्रदूषण का स्तर चिंताजनक है। यदि यही हाल रहा तो क्या लोगो को यह मैली गंगा में ही अपने को पवित्र करना होगा। जब्को वह खुद पूरी तरह मैली हो चुकी हैं. आखिर कब होगी गंगा मैली से स्वच्छ। ….

शंखनाद की संवाददाता आरती पांडेय की पेशकश …..

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