प्रदेश के अस्पतालों में सुविधाएं होने के दावों की पोल खोलती तस्वीरें अक्सर पहाड़ों से सामने आती रहती हैं। लेकिन इसके बावजूद स्वास्थ्य सुविधाएं जस की तस हैं। चमोली जिले से ऐसी खबर सामने आई है जिसने प्रदेश की स्वास्थ्य सुविधाओं की पोल तो खोली ही इसके साथ ही ये भी साबित कर दिया कि एक जान की कीमत सरकारी तंत्र के लिए कुछ भी नहीं है।
पांच अस्पतालों में रेफर के बाद भी नहीं बची जान
10 जुलाई की रात गढ़वाल मंडल के सुदूर चमोली जिले के चिडंगा गांव के निवासी और वर्तमान में जम्मू-कश्मीर में तैनात सैनिक दिनेश चंद्र के लिए जिदंगीभर का दुख दे गई। ये रात सैनिक दिनेश के लिए कभी ना भूलने वाली रात बन गई। मिली जानकारी के मुताबिक दोपहर बाद उनके डेढ़ साल के बेटे शुभांशु जोशी की अचानक तबीयत खराब होने लगी।
बच्चे की हालत बिगड़ता देख उनकी मां और पत्नी उसे लेकर ग्वालदम अस्पताल पहुंचे। लेकिन वहां बच्चे को इलाज नहीं मिल सका। इसके बाद दोनों वहां से बच्चे को कुमाऊं के बागेश्वर जिले के बैजनाथ अस्पताल ले गए। वहां से भी उन्हें बागेश्वर रेफर कर दिया।
हायर सेंटर ले जाने के लिए नहीं मिली मदद
बागेश्वर जिला अस्पताल में बच्चे को भर्ती कर लिया गया। लेकिन शाम छह बजे भर्ती बच्चे की हालत गंभीर बताते हुए डॉक्टर ने उसे हल्द्वानी रेफर कर दिया। हल्द्वानी ले जाने के लिए जब बागेश्वर में जब परिजनों ने 108 पर एंबुलेंस के लिए कॉल किया तो एक घंटा बीत जाने के बाद भी एंबुलेंस नहीं पहुंची।
मां और पत्नी के बार कहने पर भी एंबुलेंस ना आने पर फौजी पिता ने खुद जिलाधिकारी को फोन कर मदद मांगी। जिसके बाद जिलाधिकारी के आदेश पर रात साढ़े नौ बजे एंबुलेंस मिली। लेकिन अल्मोड़ा से हल्द्वानी ले जाते वक्त शुभांशु ने दम तोड़ दिया। इस घटना के बाद से परिवार सवाल उठा रहा है लेकिन जवाब देने वाला कोई नहीं है।