अरविंद शेखर/देहरादून
अलकनंदा व भागीरथी नदी घाटी में 23 जलविद्युत परियोजनाओं को बंद करने की सिफारिश की थी
वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों ,राष्टीय पार्कों व अभयारण्यों , में जल विद्युत परियोजनाओं पर पाबंदी की सिफारिश की थी
ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना नंदादेवी बायोस्फेयर रिजर्व के बफर जोन में है
आज प्रदेश को हिमालयी क्षेत्र में जिस आपदा का सामना करना पड़ा है। उसके बारे में 2013 की आपदा के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर बनी डॉ. चोपड़ा वाली कमेटी ने 2014 में चेता दिया था। चोपड़ा कमेटी को उत्तराखंड में निर्माणाधीन पानी से बिजली बनाने की योजनाओं के आकलन का जिम्मा दिया गया था। बाद में चोपड़ा कमिटी की सिफारिश पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड की आधा दर्जन निर्माणाधीन परियोजनाओं का काम रोक दिया था.
बता दें कि ऋषिगंगा जलविद्युत परियोजना नंदादेवी बायोस्फेयर रिजर्व के बफर जोन में है। बहरहाल, कमेटी ने आपदा की आशंकाओं को देखते हुए भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा अलकनंदा व भागीरथी नदी घाटी में चिह्नित 24 में कम से कम 23 जलविद्युत परियोजनाओं को बंद करने की सिफारिश की थी और कहा था कि वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों मसलन राष्टीय पार्कों व अभयारण्यों , गंगोत्री इको सेंसिटिव जोन में जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण की इजाजत नहीं देनी चाहिए। समिति का साफ कहना था कि ढाई हजार मीटर से ऊंचाई वाले स्थल वन्यजीवों के आवास है और उच्च जैव विविधता वाले तो हैं ही साथ ही अप्रत्याशित ग्लेशियल व पैराग्लेशियल गतिविधियों के कारण बहुत ही नाजुक व क्षणभंगुर हैं। समिति ने कहा था कि दो मेगावाट से बड़ी परियोजा के लिए पर्यावरण क्लीयरेंस जरूरी होना चाहिए और विंटर स्नोलाइन से ऊपर के इलाकों यानी 2200 से 2500 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में किसी भी जल विद्युत परियोजना के निर्माण की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए।
समिति ने डब्लूआईआई के अध्ययन के हवाले से कहा था कि जलविद्युत परियोजनाओं का रणनीतिक पर्यावरणीय आकलन करवाया जाना चाहिए। दिलचस्प बात यह है कि कमेटी के साथ बैठकों में प्रदेश के मुख्य सचिव कमेटी के सामने कहते रहे कि जिन परियोजनाओं को पर्यावरण अनुमति मिल गई है उन्हें न तो रोका जाए न बंद किया जाए। बहरहाल, कमेटी ने राष्ट्रीय हिमालय नीति बनाने की भी सिफारिश की थी साथ ही हिमालयी नदियों द्वारा बहाए जाने वाले मलबे के प्रवाह का अध्ययन करने की भी सिफारिश की थी और उत्तराखंड की सभी नदियों के लिए इको सेंसिटिव जोन घोषित करने को कहा था। हैरत की बात यह भी है कि उस वक्त केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय कमेटी की कई सिफारिशों के विरोध में खड़ा था और बड़े बांधों के पक्ष में खड़ा था।