उत्तराखंड में लोकायुक्त अधिनियम, 2014 पारित किया गया , लेकिन अब तक लोकायुक्त नियुक्ति और क्रियान्वयन नहीं हो पाया ऐसी कौन से कारण हैं ?
लोकायुक्त की नियुक्ति और क्रियान्वयन में देरी
लोकायुक्त में मुख्यमंत्री, मंत्रियों और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को लोकायुक्त के दायरे में रखा गया था। यह कदम पारदर्शिता और भ्रष्टाचार पर रोक लगाने के लिए महत्वपूर्ण था, लेकिन इसके बावजूद राज्य में लोकायुक्त की नियुक्ति और क्रियान्वयन में देरी हुई है। इस स्थिति का प्रमुख कारण राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी है।
नहीं दी प्राथमिकता
लोकायुक्त का गठन एक स्वतंत्र निकाय के रूप में होता है, जो भ्रष्टाचार की शिकायतों की जांच करता है। इसके दायरे में मुख्यमंत्री और वरिष्ठ अधिकारी भी आते हैं, जिससे सत्तारूढ़ दलों में इसे लागू करने को लेकर हिचकिचाहट रही है। कई सरकारें आईं और गईं, लेकिन किसी ने इसे प्राथमिकता नहीं दी।
बार-बार सत्ता परिवर्तन
उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता भी एक बड़ी बाधा रही है। राज्य में बार-बार सत्ता परिवर्तन के कारण दीर्घकालिक नीतिगत सुधारों पर ध्यान नहीं दिया गया। लोकायुक्त जैसे संवेदनशील और पारदर्शिता से जुड़े मुद्दे सरकारों की प्राथमिकताओं में पीछे रह गए।
आवश्यक संसाधनों और बजट की कमी
प्रशासनिक अड़चनें भी लोकायुक्त की स्थापना में बड़ी भूमिका निभाती हैं। इसके लिए एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश या प्रतिष्ठित व्यक्ति की नियुक्ति की आवश्यकता होती है, लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और गति की कमी रही है। इसके अलावा, कार्यालय संचालन के लिए आवश्यक संसाधनों और बजट की कमी भी इसे प्रभावी रूप से लागू करने में बाधा बनी।
राजनीतिक दलों को दिखानी होगी अपनी प्रतिबद्धता
उत्तराखंड जैसे छोटे राज्य में भ्रष्टाचार रोकने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए लोकायुक्त की आवश्यकता महत्वपूर्ण है। जनता में सरकार और प्रशासन के प्रति विश्वास बनाए रखने के लिए यह कदम उठाया जाना चाहिए। इसके लिए राजनीतिक दलों को अपनी प्रतिबद्धता दिखानी होगी, प्रशासन को सक्रिय भूमिका निभानी होगी, और जनता को भी इस मुद्दे पर जागरूकता बढ़ानी होगी।
अगर लोकायुक्त को प्रभावी रूप से लागू किया जाए, तो यह न केवल भ्रष्टाचार पर रोक लगाने में सहायक होगा, बल्कि राज्य में सुशासन और पारदर्शिता की एक नई मिसाल भी कायम करेगा।
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