विजेन्द्र रावत:
दिल्ली में 11 लाख के पैकेज को छोड़ डा. सबिता
पौड़ी आकर बनी प्रगतिशील बागवान।
 सबिता पहाड़ को मानती है, खजाना जितना मेहनत करो उतना कमाओ
जहां पहाड़ के युवा दस – बीस हजार की नौकरी के लिए अपने घर व खेतों को बंजर छोड़कर शहरों में 8 से 12 घंटे तक कमर तोड़ मेहनत को मजबूर होते हैं।
       डा. सबिता रावत ने देश की नामी फार्मास्युटिकल कम्पनी की ग्यारह लाख रुपए से भी अधिक सालाना पैकेज को अलविदा कर पौड़ी से करीब 18 किमी सिरौली गांव आकर जम गई। यहां उसने 25 नाली जमीन खरीदकर सब्जी उगाने के अभियान में जुट गई।यद्यपि सबिता का आज तक का जीवन महा नगरों में बीता पर उसे बचपन से ही पहाड़ आकर्षित करते रहे।फार्मास्युटिकल कम्पनी में 12 साल नौकरी और अपने परिवार को सेटल करने के बाद वे अपने मिशन पहाड़ की ओर चल पड़ी। इतनी शानदार नौकरी छोड़कर पहाड़ के बंजर खेतों में कुछ करने का इरादा, परिवार व निकट सहयोगियों को रास तो नहीं आया पर सबिता के पक्के इरादे के सामने सब ने इनके इरादे को मौन स्वीकृति दे दी।
       सबिता कहती हैं कि उनका परिवार उनके सभी निर्णयों के साथ मजबूती से उनके साथ खड़ा रहा और यही उसकी ताकत है, खासकर उनकी मां उनका साहस बढ़ाने में सबसे आगे रहती हैं।सबिता ने बंजर खेतों में कड़ी मेहनत कर यहां दो विशाल पोलि हाऊस स्थापित कर उनमें सब्जी उत्पादन का काम शुरू किया। सबिता की मेहनत से यहां सब्जियां उगने लगी। उसके पोलि हाऊस में 12 फीट ऊंचा मिर्च का पौधा तैयार हुआ। उसे उम्मीद थी कि जैसे ही यह पौधा 14 फीट की ऊंचाई पार करेगा, वह इस गिनिस बुक आफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज करवा देगी, पर कुछ ही दिन में उसे तब झटका लगा जब यह पेड़ सूख गया।
         यह पेड़ तो सूख गया पर बागवानी के प्रति उसका इरादा और मजबूत हो गया।सबिता को पता चला कि यहां सेब का रूट स्टाक किस्म के पौधे एक साल में ही फल देने लगते हैं। इसके लिए उन्होंने बागवानी विभाग व उत्तराखंड के अत्याधुनिक सेब की नर्सरी उत्पादक बिक्रम रावत से सम्पर्क किया।इन सभी के कुशल निर्देशन में सबिता ने एक हजार सेब के पौधों का बाग तैयार किया।तकनीकी रूप से सक्षम सबिता ने कृषि एवं बागवानी विशेषज्ञों से बागवानी के गुर सीखे और उन्हें अपने बाग में जमीन पर उतारा।सबिता ने अपने बाग को जैविक सेब के बाग के रूप में विकसित किया जिसके लिए वे गोमुत्र, गोबर व कई तरह की वनस्पतियों से जीवा अमृत तैयार करती है जो पेड़ों में खाद एवं कीटनाशक का काम करता है।
     रासायनिक खादों के बजाय सबिता गोबर की सड़ी खाद व वर्मी कम्पोस्ट का प्रयोग करती है।
सबिता ने ड्रिप सिंचाई सिस्टम, ओलावृष्टि से फलों को बचाने के लिए एंटी हेल नेट लगाये हैं।
अभी सेब के पौधों ने पहली फसल दी है, जो जैविक होने के कारण स्थानीय बाजार में ही बिक गये।
सबिता का अपने बाग में होल्टी टूरिज्म के तहत होम स्टे बनाने की योजना है, इसके लिए उसने दो कमरों का स्थानीय शैली तथा गोबर की लिपाई कर एक सुन्दर आशियाना तैयार भी कर लिया है।
उसने यहां कड़कनाथ प्रजाति के मुर्गी पालन भी किया है। अब उनका मधुमक्खी पालन का भी इरादा है तथा वे पांच सौ और सेब की पौध भी लगा रही है।सबिता का कहना है कि यदि आप मेहनत करने वाले हैं तो सरकारी विभाग भी आपकी मदद के लिए आगे आते हैं।
    सबिता को उम्मीद है कि आने वाले दो वर्षों में वे जितना पैकेज छोड़कर आये थे उतना कमाने लगूंगी।वे पौड़ी के जिलाधिकारी रहे धीरज गर्वियाल का भी शुक्रिया अदा करती हैं जिन्होंने उनके जैसे कई बागवानों का न सिर्फ हौसला बढ़ाया बल्कि उनकी सरकार से मिलने वाली हर प्रकार की मदद की।उनका मानना है कि धीरज जैसे अधिकारी अगर पहाड़ के हर जिले में हो जाएं तो पहाड़ का विकास और भी तेजी से संभव है।वे इस बात से बेहद संतुष्ट हैं कि वे अपने बाग में आने वाली महिलाओं व लड़कियों को बागवानी के लिए प्रशिक्षित व प्रेरित करती है।डा. सबिता का अपना यूट्यूब चैनल भी है जिसके माध्यम से वे युवाओं को पहाड़ में बागवानी तथा स्वरोजगार के लिए प्रेरित करती हैं।

Share and Enjoy !

Shares

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

× हमारे साथ Whatsapp पर जुड़ें