रिपोर्ट शिवानी पांडे

साल 1952 में भारत ने अपनी पहली राष्ट्रीय वन नीति बनाई। इस वन नीति में बड़े बड़े लक्ष्यों के साथ भारत में कुल वन क्षेत्र को 33% पहुंचाने का लक्ष्य भी निर्धारित किया गया। और 1952 के बाद जितने भी छोटे बड़े वन आधारित नियम कानून बने उन सभी में इस लक्ष्य को कॉपी पेस्ट किया गया। यह लक्ष्य ऐसा है कि जो आज तक भी पूरा नहीं हुआ।

World Environment Day 2022

पूरा कैसे होगा? न भारत सरकार ने इस लक्ष्य को सीरियसली लिया और ना जंगलों को। अगर जंगलों को महत्वपूर्ण माना गया होता तो हर विकास परियोजना में जरूरत से दो गुना चार गुना इनकी कटाई ना हो रही होती।

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हसदेव अरण्य में साढ़े चार लाख पेड़ों की बलि इसलिए दी जा रही है क्योंकि वहां अडानी को कोयले के भंडार चाहिए वही कोयला जिसके लिए हमारे महान प्रधानमंत्री cop26 के सम्मेलन में कह चुके हैं कि वह 2070 तक कोयले से मुक्ति की तरफ भारत को बढ़ाएंगे।

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हसदेव अरण्य मध्य भारत का फेफड़ा है और लाखों आदिवासियों का घर। आदिवासी लगातार अपने घर को उजड़ने का विरोध कर रहे है लेकिन चूंकि अडानी साहब का हित है तो न राज्य सरकार को चिंता है और न बड़बोले केंद्र सरकार को। सनद रहे कि भर 1952 के लक्ष्य से अभी कोषों दूर है, और तब भी लगातार कश्मीर से कन्याकुमारी, कच्छ से पूर्वोत्तर भारत की वन संपदा को लगातार काटा जा रहा है।

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देश भर में जगलों की हत्या का यह सिलसिला लगातार ऐसे ही चल रहा है। किसी को दिल्ली से देहरादून 15-20 मिनट जल्दी पहुंचना है इस लिए सरकार 4200 ऐसे पेड़ काट रही है जो 1000 साल पुराने है और अंग्रेजी हुकूमत में भी बच गए थे।

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पेड़ों का कटना इस दौर में इस लिए भी भयावह है, क्योंकि दुनिया जलवायु परिवर्तन से दिन रात जूझ रही है लेकिन सरकारों को न जलवायु परिवर्तन समझ आया ना पेड़ों के कटने का नुकसान।

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पर्यावरण दिवस की शुभकामनाओं के पोस्टर आप प्रधानमंत्री से लेकर छुटभैया नेताओं तक के देखेंगे आज। जिसमें कुछ हरा हरा होगा, जो केवल फोटो -पोस्टर में बचा रह गया है।