यमकेश्वर ब्लॉक के कंडवाल गाँव की बेटी ने शुरू किया है हैंप एग्रोवेंचर्स स्टार्टअप
शंखनाद.INDIAदेहरादून। भांग की खेती को पहाड़ों में बुरा कहा जाता है और अक्सर लोग गाली देने के लिए भांग की खेती का इस्तेमाल करते हैं। इस सब से हटकर पौड़ी गढ़वाल के यमकेश्वर ब्लॉक के कंडवाल गाँव की नम्रता, उसके पति और भाई ने फलदाकोट मल्ला में भांग (हैंप) से बिल्डिंग तैयार कर दी है। नम्रता कंडवाल और गौरव दीक्षित की टीम का दावा है कि भांग से मकान निर्माण भारत में पहली बार किया गया है। दिल्ली में रहकर आर्किटेक्ट की पढ़ाई के बाद नम्रता ने गांव वापस आकर भांग से कई प्रोडक्ट बनाने का स्टार्टअप शुरू किया है। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत खुद फालदाकोट मल्ला पहुंचे और उन्होंने नई तकनीक से बने घर का शुभारंभ किया। उनका कहना है कि इंडस्ट्रियल हैम्प हिमालयी राज्य उत्तराखंड की तस्वीर, तक़दीर बदल सकती है। हमें इसकी खेती और उत्पादों को योजनाबद्ध रूप से प्राथमिकता से विकसित करना चाहिये।
सीमेंट से ज्यादा मजबूत होता है
नम्रता बताती है कि है। मैं आर्किटेक्ट हूं तो इसे ज्यादा बेहतर तरीके से जानती हूं, सीमेंट से बनी बिल्डिंग की उम्र ज्यादा से ज्यादा पचास साल तक होती है, जबकि ये समय के साथ और मजबूत होता जाता है। हम कागज के लिए पेड़ों को काटते हैं। जबकि भांग चार महीने की फसल होती। चार महीने की इस फसल में आपको इतना फाइबर मिल जाता है, जो हम जंगलों में कई साल पुराने पेड़ों से मिलता है। ये उससे काफी ज्यादा बेहतर भी है। इसके तने से एक बिल्डिंग मटेरियल बनता है, और ये कोई नया इनोवेशन भी नहीं है, ये हमारे यहां पुराने समय होता रहा है। अजंता और एलोरा की गुफाओं में इसी से बना प्लास्टर उपयोग हुआ है। और जो दौलताबाद का किला है, वहां पर भी इसका इस्तेमाल हुआ है। यही नहीं फ्रांस तो इससे बना एक पांच सौ साल पुराना एक पुल भी है।” वो आगे कहती हैं, “इसमें हम चूने का इस्तेमाल करते हैं, इसकी सबसे अच्छी खासियत होती है, ये वातावरण से कार्बन डाई ऑक्साइड को अवशोषित कर लेता है, और चूना पत्थर में बदल जाता है। इसकी सबसे अच्छी बात यही होती है, ये समय के साथ और मजबूत होता जाता।
रोजगार के लिए बन सकता है बड़ा माध्यम
यह रोजगार बड़ा माध्यम बन सकता है। इस पर गहन शोध किया जाए तो इसके कई फायदों के बारे में हमें पता चलेगा। भांग से तैयार बिल्डिंग के अलावा स्वदेशी तकनीकी से भारत में निर्मित देश की पहली हेंप डेकोर्टिकेटर मशीन भी उत्तराखंड में गोहेंप एग्रोवेंचर्स स्टार्टअप द्वारा लाई गई है। नम्रता ने बताया कि मशीन की सहायता से औद्योगिक हेंप के रेशे को बिना पानी के ही क्षणभर में लकड़ी से अलग किया जा सकता है। वर्तमान में हेंप इत्यादि के रेशे को अलग करके इसके गट्ठर सिर पर ढोकर गदेरे (साफ पानी के प्राकृति नाले) तक ले जाने पड़ते हैं। और फिर यहां लगभग एक महीने इसे गलाना पड़ता है।