उत्तराखंड से रोजगार की तलाश में अपना गांव छोड़ गए ये चारों युवा आज इस दुनिया में नही हैं. यही उत्तराखंड का सच है चाहे कोई लाख दावे कर लें. अंकिता भंडारी की लाश नहर में मिली. केदार भंडारी की लाश आज तक नहीं मिली. विपिन रावत की पिटाई कर हत्या कर दी गई. नितिन भंडारी भी इस दुनिया में नहीं है.

इन चारों ने जीने से पहले की अपनी जिंदगी की अंतिम सांसें ले ली हैं. मां बाप को कंधा बेटे और बेटियां देते हैं. इन मां बाप से पुछिए अपने बच्चों के बिना इनके परिवार वालों पर क्या गुजर रही होगी, अपने बच्चों के लिए सभी मां बाप सपने देखते हैं. लेकिन इनके सपनों के लिए सिर्फ सिस्टम जिम्मेदार है. कानून व्यवस्था का दावा और दंभ भरने वाले न्याय की चौखट पर न्याय मांग रहे हैं.

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उत्तराखंड पुलिस पर सवाल

इनके मां बापों का रो रोकर बुरा हाल है. सिर्फ न्याय की मांग कर रहे हैं. उत्तराखंड की कानून व्यवस्था चौपट हो गई है. देहरादून किसी जमाने में रिटायरमेंट लोगों के लिए रहने के लिए सुंदर शहर माना जाता था. लेकिन जिस तरह देहरादून के माहौल में तेजी से बदलाव हो रहा है लगता है कि उत्तराखंड पुलिस के लिए यह सवाल भी कठिन होगा! देहरादून में जिस तरह घटनाएं हो रही हैं वह चिंता का विषय है.

उत्तराखंड की पुलिस सवालों के कटघरे में है. चाहे लाख दावे कर लें, अंकिता भंडारी की हत्या, केदार भंडारी की पुलिस अभिरक्षा में मौत? विपिन रावत की मौत और पुलिस का दबाव, नितिन भंडारी की मौत देवभूमि के माथे पर कलंकित करने जैसा है. उत्तराखंड की देवभूमि जिस तरह शर्मशार हुई है ऐसा लगता है राज्य के नेताओं और सिस्टम व पुलिस इस पर गौर करेगी. सभी राजनीतिक पार्टियों के लोगों से अपील है राज्य किसलिए मांगा गया था, राज्य की परिकल्पना क्या थी? उत्तराखंड के अहम मुद्दे गौण हैं. राज्य का भू कानून विधानसभा के अंदर फाइलों में कैद है, मूल निवास लापता है? सोचिएगा क्या पता आप लोगों की आत्मा भी जाग जाए. यह आपके ही बच्चे हैं, उत्तराखंड के बच्चे हैं.

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