harela हरेला

देवभूमि उत्तराखंड प्रदेश है जहां पर ना केवल देवताओं की बल्कि प्रकृति पेड़-पौधों तक की पूजा होती है। पत्थर से लेकर प्रकृति तक में ईश्वर का वासा माना जाता है उन्हें पूजा जाता है। यूं तो देवभूमि कहे जाने वाले उत्तराखंड में कई त्यौहार मनाते हैं। लेकिन एक बेहद ही खास त्यौहार हरेला भी यहां मनाया जाता है। ये त्यौहार इसलिए खास है क्योंकि ये लोगों को प्रकृति से जुड़े होने का एहसास करवाता है वो यहां

हरेला है हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने का सूचक

उत्तराखंड का लोकपर्व हरेला हरियाली और नई ऋतु के शुरू होने का सूचक है। हरेला पर्व मुख्यत: कुमाऊं मंडल में मनाया जाता है। इस त्यौहार की मनाने की शुरूआत दस दिन पहले हलेले को बोने से हो जाती है। इस दिन लोग अपने घरों और खेतों में पौधारोपण करते हैं। पहाड़ों पर ऐसा कहा जाता है कि इस दिन जो भी पौधे लगाए जाते हैं वो सूखते नहीं है बल्कि वो सालों-साल तक फलते और फूलते हैं।

लोकपर्व हरेला

हरेले से होती है पहाड़ी सावन की शुरूआत

देशभर में जहां सावन एक हफ्ते पहले शुरू हो जाता है तो वहीं पहाड़ों पर हरेले पर्व  के दिन से ही सावन की शुरूआत होती है। बता दें कि हरेला लोकपर्व साल में तीन बार मनाया जाता है। पहला – चैत्र मास, दूसरा – सावन मास और तीसरा – आश्विन मास में मनाया जाता है। हरेला पर्व कर्क संक्रांति के दिन मनाया जाता है।

हरेला

क्यों मनाया जाता है हरेला ?

आपको बता दें कि हरेला सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है। जिसे दस दिन बाद सावन के महीने के पहले दिन काटा जाता है। हरेले के शुभ पर्व पर मुख्यत शिव भगवान की पूजा की जाती है। हरेला का अर्थ है हरियाली इसलिए हरेले को प्रक़ति से जोड़ कर देखा जाता है। इसके साथ ही इस पर्व को शिव-पार्वती के विवाह के रूप में भी मनाया जाता है।

लोकपर्व हरेला

पांच या सात प्रकार के बोए जाते हैं अनाज

हरेला सिर्फ एक दिन मनाया जाने वाला त्यौहार नहीं हैं। इसे मनाने की तैयारी दो हफ्ते पहले से ही शुरू हो जाती है। हरेला पर्व मनाने के दस दिन पहले इसे बोया जाता है। जबकि कुछ लोग इसे नौ दिन पहले भी बोते हैं। लेकिन बोने के दो दिन पहले ही लोग गांव की साफ जगहों से मिट्टी खोदकर लाते हैं और उसे सुखाते हैं। सुखाने के बाद इसमें पांच या सात प्रकार के अनाजों को बोया जाता है। इसमें धान, गेंहू, मक्की, उड़द, गहत, तिल और भट्ट शामिल होते हैं।

हरेला
हरेले में बोए जाने वाले सात प्रकार के अनाज

क्या है हरेला पर्व का इतिहास ?

हरेले को बोने के नौ दिन बाद हरेले के गुड़ाई की जाती है। दूब, दाड़िम और फूल-पत्तियां चढ़ाकर इसकी पूजा की जाती है। फिर अगले दिन यानी कि दसवें दिन इसे काटा जाता है। जिसके बाद इसे देवताओं को चढ़ाकर पकवान बनाकर त्यौहार मनाया जाता है। बात करें हरेले के इतिहास की तो कुमाऊं में सदियों से इस त्यौहार को मनाया जाता है। हरेले को घर के दरवाजों और चौखटों पर लगाया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि ऐसा करने से घर में सुख-शांति और समृद्धि आती है।

 

इनपुट – योगिता बिष्ट