उत्तराखंड में सत्तारूढ़ दल लगातार पलायन रोकने का दावा करती रही हैं. हालांकि ग्राम पंचायतों और पंचायत वार्डों के नए परिसीमन के बाद सरकार के इस दावे पर सवाल खड़े होने लगे हैं ,उत्तराखंड में राज्य गठन के 24 साल बाद भी पलायन का सिलसिला कम नहीं हुआ है. हाल ही में किए गए पंचायत परिसीमन से पता चला है कि पिछले पांच सालों में प्रदेश के कई पर्वतीय जिलों में क्षेत्र पंचायतों की सीटों की संख्या घट गई है.
क्षेत्र पंचायतों की कम हुई सीटें पलायन के गंभीरता को दर्शाती है. इसको लेकर किए जा रहे दावे खोखले साबित हो रहे हैं. साल 2024 में किए गए नए परिसीमन से सामने आया है कि क्षेत्र पंचायतों की पांच सीटें कम हो गई हैं, जबकि इस दौरान जिला पंचायतों की मात्र दो सीटें बढ़ी हैं.राज्य पर्वतीय जिलों से लगातार पलायन हो रहा है। इससे यहां पर जनसंख्या घटती जा रही है। ऐसे में विधानसभा और लोकसभा की सींटों का परिसीमन जनसंख्या बजाय क्षेत्रफल के आधार पर किया जाए। यहके 12 जिलों (हरिद्वार को छोड़कर) में पंचायतों का परिसीमन किया गया है. इस परिसीमन के अनुसार, प्रदेश में क्षेत्र पंचायतों की 2 हजार 936 सीटें हैं, जबकि पांच साल पहले 2020-21 में इन जिलों में 2 हजार 941 सीटें थीं. इसका मतलब है कि पिछले पांच सालों में कुल पांच सीटें कम हो गई हैं. पिथौरागढ़ जिले में क्षेत्र पंचायतों की सबसे ज्यादा तीन सीटें घटी हैं, इसी तरह चमोली और रुद्रप्रयाग जिलों में भी क्षेत्र पंचायत की सीटें कम हुई हैं.
इस अवधि में जिला पंचायतों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई है. साल 2020-21 में 12 जिलों में जिला पंचायतों की कुल 341 सीटें थीं जो बढ़कर 343 हो गई हैं. इससे स्पष्ट है कि राज्य में खासकर पर्वतीय जिलों में पलायन की समस्या बनी हुई है और इसका असर जनसंख्या घटने के रूप में पंचायत चुनावों में भी दिखाई दे रहा है. हरिद्वार जिले को छोड़कर अन्य सभी जिलों में ग्राम पंचायत और ग्राम पंचायत वार्ड के परिसीमन के बाद, अब क्षेत्र और जिला पंचायतों का परिसीमन भी पूरा कर लिया गया है. विभागीय अधिकारियों का कहना है कि आबादी के आधार पर यह परिसीमन किया गया है. विभागीय अधिकारियों के मुताबिक, जिन जिलों में जनसंख्या में कमी आई है, वहां पंचायत सीटों की संख्या घटाई गई है. कुछ क्षेत्रों में नगर निकायों के विस्तार के कारण पंचायतों की सीटें घटी हैं, जबकि ग्राम पंचायतों की संख्या 27 और पंचायत वार्डों की संख्या 138 बढ़ी है.
विभागीय अधिकारियों के मुताबिक, जिन जिलों में जनसंख्या में कमी आई है, वहां पंचायत सीटों की संख्या घटाई गई है. कुछ क्षेत्रों में नगर निकायों के विस्तार के कारण पंचायतों की सीटें घटी हैं, जबकि ग्राम पंचायतों की संख्या 27 और पंचायत वार्डों की संख्या 138 बढ़ी है. नए परिसीमन से एक बार फिर स्पष्ट हो गया है कि राज्य के पर्वतीय जिलों में पलायन एक बड़ी समस्या है. आबादी के हिसाब से किए गए इस परिसीमन में क्षेत्र पंचायत का मानक औसतन 1,250 की जनसंख्या है.
इसी तरह जिला पंचायत का मानक 12 हजार और ग्राम पंचायत का 500 और इससे अधिक का है. उप निदेशक पंचायत मनोज तिवारी के अनुसार, इसी मानक के आधार पर ही पंचायत सीटों का निर्धारण किया गया है.यह परिसीमन दर्शाता है कि पर्वतीय जिलों में जनसंख्या घटने के कारण क्षेत्र पंचायतों की सीटों में कमी आई है, जबकि मैदानों में स्थित जिलों में यह संख्या स्थिर है या बढ़ी है. पलायन की समस्या के समाधान के बिना राज्य के पहाड़ी इलाकों में विकास की गति धीमी होती रहेगी.