शंखनाद INDIA

उत्तराखंड को यूं तो पूरी दुनिया में देवभूमि के नाम पर पूजा जाता है लेकिन जब बात यहां सत्ता के राज में हुए घोटालों को लेकर की जाए तो हर किसी की नजरों में देवभूमि की एक गलत पहचान बन जाती है| भ्रष्टाचार के नाम पर देवभूमि में भले ही राज्य सरकारों ने अपने नाम का लाख डंका बजाया हो लेकिन आज भी हकीकत सिर्फ यही है कि प्रदेश में भ्रष्टाचारियो पर नकेल कसने में इन बीस सालों में अभी तक कोई भी सरकार कामयाब नहीं हो पाई है। उत्तराखंड राज्य का गठन होते ही राज्य में घोटालों का सिलसिला भी शुरू हो चुका था| उत्तराखंड में इन बीस सालों में सत्ता में चाहे कोई भी सरकार क्यों न रही हो, राज्य में घोटालो का आंकड़ा तेजी से बढ़ा है|

नवोदित उतराखण्ड राज्य गठन से वर्तमान तक सैकड़ों करोड़ के घोटाले-घपले हुए जिसकी मार राज्य की जनता आज भी झेल रही है। तमाम घोटाले ऐसे रहे जिसमें सत्ता में  बैठे बड़े अफसर ही दोषी पाए गए लेकिन दुर्भाग्य की बात यह रही है कि आज तक जितने भी घोटालें हुए हैं उनमें किसी भी घोटालों को लेकर उचित कार्यवाही नहीं की गई है| कांग्रेस हो या बीजेपी दोनों सरकारों में अपने नाम घोटालों का बढ़ा आंकड़ा दर्ज कराया है| किसी भी सरकार ने राज्य में अपनी साफ सुथरी पहचान नहीं बनाई है| चुनाव के नाम पर आमजनों से झूठे वादे कर राज्य की जनता को केवल बरगलाने का काम किया गया है|

राज्य में जितने भी घोटाले हुए उनमें सत्ता में बैठे बड़े अफसरों ने मुख्य भूमिका निभाई| वो जांचो में दोषी भी पाए गए लेकिन सिर्फ कुछ दिन जेल की हवा खाकर फिर से सत्ता में बड़े पदों पर आसीन हो गए| आज भी इनके द्वारा किये गए घपले,घोटालो की जाँच की फाइलें रसुक के चलते शासन और विभागों की अलमारियो में पढ़ी हैं| राज्य निर्माण से आज तक पहाड़ी राज्य उतराखण्ड में भ्रष्टाचार को बर्दाश्त न करने का ढोंग करने वाली भाजपा, कांग्रेस या मिलीजुली सरकारों ने भ्रष्टाचारियो को जमकर पनाह दी और नतीजा यही रहा कि प्रदेश में एक के बाद एक करोड़ो की वित्तीय अनिमित्ताएं, घोटाले सामने आते रहे।

हकीकत यह है कि उतराखण्ड की सरकारें सिर्फ समाचार पत्रों की सुर्खियों के लिए जांच की बात कर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ती रही। कुम्भ घोटाला ट्रांसफार्मर घोटाला,बिजली मीटर,ढेंचा बीज,चावल घोटाला जैसे सैकड़ो छोटे बड़े घोटाले घपले राज्य में होते रहे| वैसे तो  उत्तराखण्ड में अब तक सुर्खियों में आये सैकड़ों घोटालों पर जांच बैठाने की ही परम्परा रही है। राज्य में चाहे कितने भी सरकार और मुख्यमंत्री बदले हो लेकिन राज्य में निर्णायक भूमिका निभाने वाले दर्जनों घोटाले अन्तहीन जांचों में गुम ही पाए गए हैं| जबकि जांच के नाम पर सरकार के करोड़ों रुपये जरूर फूंक डाले गए। लेकिन आजतक किसी भी मामले पर सही तरीक से कोई भी जांच नहीं हो पाई है|

उत्तराखण्ड राज्य के गठन के बाद से जितने घोटाले सामने आए हैं सबकी जांच के लिए आयोग का गठन किया गया मगर नतीजा हमेशा शून्य ही रहा| घाटालों को लेकर किसी आयोग ने कोई सिफारिश भी की तो सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की। बीजेपी हो या कांग्रेस कोई भी राज्य में हुए घोटालों को लेकर गंभीर नहीं रहा| उत्तराखण्ड में भ्रष्टाचार समेत विभिन्न मामलों को लेकर कई जांच कमेटियां बैठाई गईं| भ्रष्टाचार समेत अन्य मुद्दों को लेकर राज्य में कई आयोग व कमेटियां गठित हो चुकी थीं। लेकिन कड़वा सच यह है कि सत्ता की आंच में पल रहे भ्रष्ट अधिकारी आज भी खुलेआम घोटालों को अंजाम दे रहे हैं| पिछले 20 सालों का सच यह है कि राजधानी आयोग समेत भ्रष्टाचार आदि मामलों पर भी आधा दर्जन से अधिक आयोगों का गठन हो चुका है। करोड़ों खर्च होने के बाद भी आयोगों की सिफारिशें एक कदम भी कार्रवाई की तरफ नहीं बढ़ पाईं।

आइए जानते हैं राज्य में हुए तमाम बड़े घोटालों के बारे में:-

राजधानी के नाम पर भी घोटाला

राज्य गठन के बाद घोटालों की भी शुरूवात हो गई| इसका आगाज भाजपा की अन्तरिम सरकार में घोटालों के साथ हुआ। तत्कालीन मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी के कार्यकाल में सबसे पहले राजधानी घोटाला सुर्खियों में रहा। मामले को लेकर जांच बैठी लेकिन नतीजा शून्य रहा। राजधानी बनाने के नाम पर निर्माण एजेंसियों से घोटाले की शुरुआत हुई। इसमें सरकारी एजेंसियों का नाम आते ही विपक्ष ने इस मामले को लेकर जमकर तमाशा किया|  लिहाजा विपक्ष के दबाव में जांच कमेटी व जांच आयोग का गठन जरूर किया गया| कई दिनों तक यह तमाशा चलता रहा। विपक्षी कांग्रेस ने इस मामले को खूब भुनाया और अपनी सरकार आते ही इस मामले पर चुप्पी साध ली।

साइन बोर्ड कथित घोटाला

साल 2000 में ही बीजेपी की अंतरिम सरकार आते ही प्रदेशभर में लगने वाले साइन बोर्ड का कथित घोटाला भी खूब सुर्खियों में रहा| लेकिन जांच के नाम पर यह घोटाला फाइलों में ही दबकर रह गया|

इसी सरकार में प्रचार-प्रसार सामग्री और कार्यालयों के लिए सामान खरीद और निर्माण कार्यों को लेकर भी घोटाले चर्चाओं में रहे| लेकिन जांच के नाम पर यह घोटाला भी फाइलों में ही दबकर रह गया|

56 घोटालों पर भी जांच अधर में

वर्ष 2002 में राज्य की पहली निर्वाचित सरकार कांग्रेस की बनी। एन.डी. तिवारी के राज में भी भ्रष्टाचार और घोटालों का खूब हल्ला रहा। भाजपा ने 56 घोटालों की एक लम्बी फेहरिस्त बनाई और इस मुद्दे पर चुनाव लड़ा और चुनाव जीत गई। सत्ता में आने के बाद भाजपा चुनाव में उठाए गए 56 घोटालों की जांच को लेकर दबाव में थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री बीसी खंडूरी ने जस्टिस (सेवानिवृत) ए.एन.वर्मा को जांच सौंपी। फिर यही जांच जस्टिस (सेवानिवृत) आर.ए. शर्मा ने की और उनके निधन के बाद ये जिम्मा सरकार ने जस्टिस (सेवानिवृत) शंभू नाथ श्रीवास्तव को सौंपा। लेकिन किसी भी मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। आयोग की सिफारिश पर करीब एक दर्जन मामले विजिलेंस को सौंपे गए उन पर भी कोई कार्रवाई नहीं हुई। यह बात और है कि इन मामलों को लेकर राजनीतिकों ने कई साल तक जनता को गुमराह किया। बाद में यह आयोग भी ठण्डे बस्ते में चला गया। जब तक भाजपा सत्ता में रही, 56 घोटालों की जांच कछुआ गति से चलती रही।

पुलिस भर्ती घोटाला

इस सरकार में पुलिस भर्ती घोटाला बेहद ज्यादा सुर्खियों में रहा| जिस पर जांच के आदेश हुए और 253 दरोगाओं की भर्ती में गड़बड़ी को लेकर तत्कालीन डीजीपी पीडी रतुड़ी और एडीजी राकेश मित्तल समेत कई के खिलाफ चार्जशीट भी दाखिल की गई| ये मामला अब भी सीबीआई कोर्ट में लंबित है|

पटवारी भर्ती घोटाला

पटवारी भर्ती घोटाला भी इसी सरकार में बहुत चर्चा में रहा| इस मामले पर भी जांच बिठाई गई थी| जिसमें एक आईएएस अधिकारी पर भी गाज गिरी लेकिन न तो कोई सफेदपोश जेल गया और न ही इस पर कोई बड़ी कार्रवाई को अंजाम दिया गया|

जेट्रोफा घोटाला

जेट्रोफा से बायो फ्यूल बनाने की परियोजना वर्ष 2003 में एनडी तिवारी की सरकार में बनाई गई थी। इसके लिए उत्तरांचल बायो फ्यूल बोर्ड बना था और इसका करार उत्तरांचल बायो फ्यूल कंपनी से हुआ था। इस कंपनी को बायो फ्यूल की प्रोसेसिंग, मार्केटिंग आदि करनी थी। यह योजना करीब 22 करोड़ रुपये से शुरू की थी। जेट्रोफा के पौधे मंगाकर वन प्रभागीय अधिकारियों को बांटे जाने थे। जेट्रोफा परियोजना कुछ सालों के बाद घपले का शिकार हो गई। करार करने वाली कंपनी लापता हो गई और करोड़ों का चूना लगने बाद परियोजना ठंडे बस्ते में चली गई। मामले में शासन स्तर से किसी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की गई।

शिक्षा विभाग में 54 लाख का घोटाला

शिक्षा विभाग में 2004 से 2007 के बीच एससीआरटी में 54 लाख कि वित्तीय अनिमित्ता का खुलासा हुआ था| जाँच के 22 बिंदु में से 18 बिंदु में तत्कालीन शिक्षा महानिदेशक सी एस ग्वाल दोषी पाए गए थे। लेकिन अब उन पर लगे सारे आरोपों से उन्हें मुक्त कर दिया गया है। इसमे हैरान करने वाली बात यह है कि उन्हें उसी सिस्टम ने आरोपमुक्त किया है जिसकी जांच में वे दोषी साबित हुए थे। आदेशो में कहा गया ग्वाल पर लगे आरोप गंभीर प्रवृति के नहीं होते है। इसलिए उनको आरोप मुक्त कर दिया जाता है। तो क्या यह मान लिया जाए कि सरकार की नजर में 54 लाख रुपए का घोटाला गंभीर नहीं है ?

सिटूरजिया घोटाला

इसके बाद 2007 में बीजेपी सरकार बनी जिसमें जल विद्युत परियोजना के आवंटन का घोटाला, सीटूरजिया घोटाला काफी सुर्खियों में आया इसका आरोप सीधे तौर पर तत्कालीन मुख्यमंत्री पर लगाए गए| इसी सरकार में ढांचा बीज घोटाला भी सुर्खियों में आया जिस पर तत्कालीन कृषि मंत्री की विपक्ष ने खूब घेराबंदी की| इस सरकार में कुंभ घोटाला भी चर्चाओं में रहा जिस पर उत्तराखंड सरकार की खूब किरकिरी हुई, लेकिन किसी भी मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई|

सिंचाई विभाग

वहीं 2011 में सिंचाई विभाग के यांत्रिक उपकरण भंडार खंड देहरादून में डेढ़ करोड़ का फर्जीवाड़ा सामने आया जिसकी जाँच में तत्कालीन अधिशासी अभियंता बिजेंद्र कुमार,सहायक अभियंता एम के खरे और जूनियर अभियंता महेश गुप्ता को दोषी ठहराया गया|  इन सभी अधिकारियों को 6 माह निलंबित करने के बाद उन्हें बाईज्जत बरी कर दिया गया जबकि शासन के निर्देश पर इनके कार्यों की जाँच तत्कालीन मुख्य अभियंता लोक निर्माण विभाग द्वारा की गई थी| जाँच अधिकारी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा की खंड के उक्त अधिकारियों की मिली भगत से सरकार को 47 लाख का चूना लगाया गया है, लेकिन सरकार और शासन ने सरकारी राजस्व को ठिकाने लगाने वाले इन अधिकारियों से न तो कोई वसूली की और न ही इन्हें किसी भी मामले में दोषी ठहराया गया| बल्कि इन्हें फर्जीवाड़े की एवज में मलाई दार पदों से नवाज दिया गया।

हरक सिंह रावत ने 450 से ज्यादा घोटालों की लिस्ट राष्ट्रपति को सौंपी थी

विपक्ष की भूमिका में कांग्रेस भी घोटालों का जबाव घोटाले से देने में पीछे नहीं रही। तब नेता प्रतिपक्ष के तौर पर डॉ. हरक सिंह रावत ने भाजपा राज के 450 से ज्यादा घोटालों की एक लम्बी सूची बना कर राष्ट्रपति को सौंपी। इनमें स्टर्डिया भूमि घोटाला, 56 पनबिजली प्रोजेक्ट घोटाला, ढैंचा बीज खरीद घोटाला, दैवीय आपदा (2010) में हुए खर्च, केन्द्र पोषित योजनाओं में अनियमितता, महाकुम्भ घोटाला, कार्बेट टाइगर रिजर्व पार्क में अतिक्रमण से जुड़े मामले प्रमुख थे। इन सभी मामलों पर कांग्रेस ने चुनाव लड़ा और सत्ता में लौटी।

इसके बाद एक बार फिर 2012 में कांग्रेस सरकार आई और विजय बहुगुणा के हाथों में राज्य की कमान सौंपी गई| सत्ता में आने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने भी अप्रैल, 2011 में के.आर. भाटी आयोग का गठन किया। लेकिन मामलों की जांच जस की जस बनी रही| जांच के नाम पर करोड़ों रूपये खर्च किए गए लेंकिन घोटालों की जांच आज भी ठंडे बस्ते में पड़ी हैं|

आपदा घोटाला

साल 2013 में उत्तराखंड में आई प्राकृतिक आपदा में भी करोड़ों का घोटाला सामने आया| तबाही के बाद उत्तराखंड की सरकारी मशीनरी ने आपदा पीड़ितों को राहत व मुआवजा देने के नाम पर सरकारी पैसे की जमकर बंदरबांट की। इसके लिए न केवल सरकारी दस्तावेजों में छेड़छाड़ की गई, बल्कि राज्य आपदा मोचन निधि (एसडीआरएफ) के निर्धारित मानकों को ठेंगा दिखाते हुए अधिक धनराशि बांट दी गई। इस तरह से आपदा पीड़ितों की मदद के नाम पर सरकार को करोड़ों की चपत लगा दी गई।

पुल के नाम पर 100 करोड़ का घोटोला

उत्तराखंड में घोटालों का रिकॉर्ड बना चुकी कांग्रेस के नाम एक और घोटोला तब दर्ज किया गया जब राज्य में टिहरी बांध की झील के ऊपर पुल के निर्माण में सौ करोड़ रुपये से अधिक के घोटाले का खुलासा हुआ| यह घोटाला भी उस समय का है जब राज्य में सत्ता की कमान कांग्रेस के पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के हाथों में थी|  टिहरी बांध की झील के ऊपर पुल के इस निर्माण में काम  पूरा होने से पहले ही कंपनी के ठेकेदार को 120 करोड़ रूपये दे दिए गए| लेकिन पुल का निर्माण अधर में ही लटका रहा| पुल के नाम पर भ्रष्टाचार अधिकारियों ने खूब विदेश यात्राएं की और सरकार को खूब चूना लगाने का काम किया|

विस्थापितों की जमीन आवंटन का घोटाला

इसी सरकार में टिहरी विस्थापितों की जमीन आवंटन का घोटाला भी हुआ, जिसमें आईएएस अधिकारी के खिलाफ कागजी कार्रवाई तो की गई लेकिन कानूनी कार्रवाई के रूप में कोई कदम नहीं उठाया गया|

एनएच- 74 घोटाला

हरीश रावत के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार के कार्यकाल में उधमसिंह नगर ज़िले में एनएच-74 के चौड़ीकरण के लिए भूमि अधिग्रहण में बांटी गई मुआवज़ा राशि में 300 करोड़ रुपये का कथित घोटाला हुआ था| इस घोटाले को लेकर बीजेपी ने कांग्रेस पर खूब आरोप लगाए थे| लेकिन इस मामले पर भी कोई कार्रवाई नहीं हो पाई|

छात्रवृत्ति घोटाला

यह छात्रवृत्ति घोटाला उत्तराखंड का बहुत बड़ा घोटाला है जिसमें सैकड़ों शैक्षिक संस्थान के मालिक गिरफ्तार हो चुके हैं। उत्तराखंड में बड़े स्तर पर शैक्षिक संस्थानों द्वारा अनुसूचित जाति/जनजाति छात्र/छात्राओं के अपने संस्थानों में फर्जी प्रवेश दर्शाकर फीस प्रतिपूर्ति के रूप में समाज कल्याण विभाग से करोड़ों रुपये की धनराशि का गबन करने के आरोप है| करोड़ों रुपये के इस घोटाले में हाई कोर्ट के निर्देशानुसार एसआईटी जांच चल रही है। इसमें मुख्य तौर पर हरिद्वार, देहरादून और उधमसिंह नगर में सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है।

उद्यान विभाग में हुआ घोटाला

उद्यान विभाग के सबसे बड़े अल्मोड़ा मटेला कोल्ड स्टोर प्रकरण जिसमें की डेढ करोड़ का फटका विभाग और किसानों को लगाया गया| साथ ही 40 करोड़ के इस स्टोर को बैंक में आज भी गिरवी रखा गया है। इसके दोषी तत्कालीन प्रमुख सचिव बिभापुरी दास दो पदोनत्ति ले सेवानिवृत भी हो चुकी है। वहीं अपर सचिव संजीव चोपड़ा मूल कैडर वापिस जा चुके हैं। तत्कालीन निदेशक उद्यान विनोद सिंघल को इस घोटाले के बाद भूमि सरक्षण विभाग के निदेशक पद पर भी नवाजा गया है। ये सभी अधिकारी करोड़ो के घोटालों के आरोपी है। इनके साथ ही आधा दर्जन अफसरों की सहभागिता भी जाँच में सामने आई थी लेकिन कार्यवाही क्या हुई घोटालो के बाद पदोनात्ति?

आपदा किट के नाम पर करोड़ों का घोटाला

साल 2018 में उत्तराखंड में आपदा प्रबंधन के नाम पर करोड़ों के घोटाले सामने आया| दरअसल, 500 ग्राम पंचायतों में आपदा की स्थिती में लोगों की खोज और बचाव के लिए आपदा किट उपलब्ध कराई गई, जिसकी कीमत के तौर पर हर प्रधान से रुद्रपुर की एक फर्म को 20 हजार 200 रुपए का भुगतान किया गया| जबकि आपदा किट की असल कीमत काफी कम थी| किट में शामिल सामान बाजार मूल्य के हिसाब से सिर्फ 8 हजार रुपए का ही था, लेकिन ग्राम प्रधानों ने इसके लिए 20,200 रुपए दिए|

 खैर राज्य में और भी तमाम ऐसे कई घोटालें हैं जिनकी बात करें तो शायद यह लिस्ट खत्म ही ना हो| लेकिन सवाल बस यही है कि चाहे घोटाले कितने भी हो क्या इन घोटालों पर कोई सरकार कठोर कार्रवाई कर भी पाएगी या नहीं| बहरहाल अब राज्य की कमान नवनियुक्त सीएम तीरथ सिंह रावत के हाथों में हैं| ऐसे में बड़ा सवाल यह है कि क्या तीरथ सरकार राज्य में पल रहे इन भ्रष्टाचारियों पर कोई लगाम लगा पाती है या नहीं|  तीरथ सरकार ने सत्ता में आते सही राज्य की जनता से तमाम बड़े वायदे भले ही कर दिए हैं लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि आखिर कैसे राज्य में राज कर रहे भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसी जा सके| या फिर तीरथ सरकार के राज में भी घोटालों के मामलों में बढ़ोत्तरी होगी यह एक बड़ा सवाल है|  इस समय राज्य के सामने जो सबसे बड़ी चुनौती है वह यही है कि आखिर कब तक भ्रष्ट और दागी लोग सरकार से यूं ही संरक्षण पाते रहेंगे ? क्या तीरथ सरकार के राज में भी इन भ्रष्ट अधिकारियों को यूं ही पनाह दी जाएगी? यह सवाल तीरथ सरकार के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती साबित हो सकती है| जीरो टोलरेंस की त्रिवेंद्र सरकार की नीति पर खुद भाजपा हाईकमान ने उन्हें हटा दिया उसके बाद अब तीरथ सिंह रावत जीरो टोलरेंस की नीति पर भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसेंगे या नहीं यह कुछ दिनों में पता चल पाएगा|