राहुल राजपूत शंखनाद इंडिया देहरादून :

उत्तराखंड राज्य के नैनीताल से एक बड़ी खबर सामने आ रही है जहां आज भारी बारिश के कारण भारी भूस्खलन हो गया है। यह मामला काफी संवेदनशील बताया जा रहा है आपको बता दें कि इतिहास भी इन बातों का गवाह है कि नैनीताल में भूस्खलन के कारण से तबाही मची हुई है।

अब बात करें नैनीताल के इतिहास की तो-

नैनीताल में 1880 में जबरदस्त तबाही मची थी। यह भूस्खलन की दृष्टि से बेहद संवेदनशील क्षेत्र है। यहां की संवेदनशील पहाड़ियाें से लगातार भूस्खलन होने के कारण खतरा बढ़ता ही जा रहा है।

नैनीताल में 18 सो 80 में हुआ था भारी भूस्खलन

बता दें कि 1880 में भी नैनीताल में भूस्खलन होने से 151 लोगों की मौत हो गई थी। दरअसल 18 सितंबर 1880 को शेर का डांडा क्षेत्र में आल्मा की पहाड़ी पर भूस्खलन में 151 लोगों की मौत हो गई थी। मृतकों में 43 अंग्रेज शामिल थे। 18 सितंबर, 1880 शनिवार का दिन नैनीताल के इतिहास में काले अक्षरों में दर्ज है। दो दिन से लगातार बारिश हो रही थी। इसके बाद मल्लीताल में भूस्खलन शुरू हो गया। भूस्खलन इतना भीषण था कि मल्लीताल में तमाम इमारतें इसकी चपेट में आकर ध्वस्त हो गईं। आपको यह भी बता दीजिए भूस्खलन इतना जबरदस्त था कि भूस्खलन का मलबा आने से नैनादेवी मंदिर क्षतिग्रस्त हो गया था।

आज भी नैनीताल में पहाड़ों से गुजर रहे वाहनों पर, वहां रहने वाले लोगों के ऊपर खतरा मंडरा रहा है। इस बार फिर से नैनीताल के पहाड़ी क्षेत्र रिस्क पर हैं। इनका केवल एक ही बड़ा कारण जो की अवैध निर्माण का कार्य है। नैनीताल के ग्रीन फील्ड जोन में धड़ाधड़ अवैध निर्माण और नगर के नालों पर अतिक्रमण से एक बार फिर बड़ी चुनौती के रूप में खड़ी हो गई है।

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