शंखनाद INDIA / शिमला : अमेरिका से लौटे इंजीनियर अपने खेतों में उगाया कस्तूरी बासमती रमेश गनेरीवाल ने कृषि के क्षेत्र में कमाल कर डाला। कुछ साल पहले जब वह भारत लौटे तो कांगड़ा जिला मुख्यालय के पास स्थित घरोह गांव में अपने एग्रो फार्म की शुरूआत की और पहाड़ के खेतों से गायब हो चुके हिमाचली पालम लाल चावल, नवरंगी और कस्तूरी बासमती चावल को अपने खेतों में पुनर्जीवित कर दिखाया। वे अपने खेतों में वे चावल की कई पुरानी प्रजातियों पुनर्जीवित करने में सफल रहे। बता दें कि पालम लाल चावल में आयरन और फाइबर प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, जिस कारण इन चावलों की मेडिसनल वैल्यू है। कभी कांगड़ा घाटी के स्थानीय किस्मों के चावल विदेशों तक मशहूर थे।

कई पुराने बीजों की खोज

रमेश गनेरीवाल ने जब जैविक खेती शुरू की तो सबसे पहले गैर-संकर बीजों की खोज शुरू हुई। जिनके पास बीज बैंक थे और पुरानी किस्मों के बीज सुरक्षित थे, ऐंसे पुराने किसानों को ढूंढा गया। बीज मिले तो प्रयोग शुरू हुए और वे कई गैर संकर बीजों को पुनर्जीवित करने में सफल रहे। गनेरीवाल कहते हैं कि हाइब्रिड बीज केवल एक बार इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसे बीजों से उत्पादन के लिए हैं और रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता है। आप उनके साथ जैविक खेती नहीं कर सकते।

सौ फीसदी जैविक उत्पाद

रमेश गनेरीवाल के खेतों की खासियत यह है कि यहां के उत्पाद सौ फीसदी जैविक है। वे अपने खेतों में देशी खाद का प्रयोग करते हैं। वे कहते हैं कि रासायनिक खाद और कीटनाशक हानिकारक हैं। इनके इस्तेमाल से लोग खुद पर्यावरण और मिट्टी के लिए खतरा बन रहे हैं। मिट्टी यूरिया की आदी हो जाती है और मांग के अनुरूप खुराक बढ़ानी पड़ती है। वे कहते हैं कि अमेरिका में रसायनों के उपयोग से क्षतिग्रस्त हुई मिट्टी को पुनर्जीवित करने में 10-15 साल लग गए।

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