दया नन्द /

सरकार की अयोग्यता और ख़राब आर्थिक नीतियों के कारण बेदम और बदहाल अर्थव्यवस्था अब बर्बादी की कब्रगाह बन चुकी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने सोमवार को आम बजट पेश किया और बजट पेश करने के साथ ही उन्होंने एक महत्वपूर्ण घोषणा करते हुए कहा कि सरकार एलआईसी (LIC) में अपनी हिस्सेदारी बेचेगी। मोदी सरकार ने भारत पेट्रोलियम और एयर इंडिया को पहले से ही बेचने की घोषणा कर रखी है।

स्वाभाविक रूप से सरकार का यह फैसला भारतीय जीवन बीमा निगम के आम बीमाधारकों पर किसी वज्रपात से कम नहीं है। एलआईसी में देश की अधिकांश जनता की जमा-पूंजी है। आम जनता प्रतिवर्ष अपनी बचत से हजारों-लाखों रुपये निकालकर एलआईसी की पॉलिसी में डालती है और इस पैसे के सहारे उसका और उसके परिवार का भविष्य सुरक्षित रहता है। एक आमजन जो किसी तरह मेहनत-मजदूरी कर अपना पेट काट अपने और बच्चों के भविष्य के लिए किसी तरह LIC की किस्त जमा करते हैं। ऐसे आमजनों के मन में अनेक प्रकार के सुखद सपने होते हैं। कोई बेटी की शादी के लिए क़िस्त जमा कर रहा होता है, कोई बच्चे की पढ़ाई के लिए तो कोई उनके भविष्य की आर्थिक सुरक्षा के लिए। लेकिन सरकार के इस फैसले से ऐसे आमजनों के मन में अनेक प्रकार के संदेह और सवाल कौंध रहे होंगे, क्या ऐसे मेहनतकश लोगों की रकम अब सुरक्षित है? सवाल अनेक हैं लेकिन आइए सबसे पहले भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के सफर को समझने का प्रयास करते हैं।

भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) भारत की सबसे बड़ी जीवन बीमा निवेशक कंपनी तो है ही साथ ही साथ यह विश्व की सबसे बड़ी बीमा कम्पनियों में भी एक प्रमुख कम्पनी है। इसकी स्थापना सन् 1956 में हुई। इसका प्रधान कार्यालय देश की वित्तीय राजधानी मुम्बई में है। एलआईसी देश की सबसे बड़ी बीमा कंपनी है, जिसकी कुल संपत्ति 31 लाख करोड़ रुपए से भी ज्यादा है। यह कंपनी भारत के 1.3 अरब लोगों में से करीब एक चौथाई लोगों को किसी न किसी तरह सेवा दे रही है।

19 जून, 1956 में जब भारत में जीवन बीमा से जुड़ी व्यापारिक गतिविधियों के राष्ट्रीयकरण के लिए संसद में एलआईसी एक्ट लाया गया था, तब इसका अंदाज़ा किसे रहा होगा कि एक दिन सरकार की लचर आर्थिक नीतियों के कारण संसद में इसकी बिक्री का प्रस्ताव लाए जाने की नौबत आ जाएगी। वैसे एलआईसी पर खतरा विगत कुछ वर्ष पहले से ही मंडराने लगा था। वर्ष 2014 में जब केंद्र में बड़ी बहुमत से बीजेपी की सरकार बनी तो देश के प्रधानमंत्री माननीय मोदी जी ने एक नारा बुलंद किया था-

“कसम मुझे इस माटी का,

मैं देश नही झुकनें दूँगा,

मैं देश नही बिकने दूँगा”

लेकिन एक पर एक राजनैतिक फैसलों के कारण आज देश इस मुकाम पर आ गया है कि देश के आमजनों के बीच सबसे विश्वसनीय बीमा कम्पनी एलआईसी की बोली लगने का मार्ग प्रशस्त किया जा रहा है। लालकिला, भारतीय रेलवे, बीएसएनएल, एयर इंडिया के बाद अब सरकार की कुदृष्टि इस सबसे विशाल बीमा निवेशक कम्पनी पर पड़ चुकी है। असफल नोटबन्दी, जटिल जीएसटी जैसे असफल फैसलों ने देश की अर्थव्यवस्था का बेड़ागर्क कर दिया।

एलआईसी पर केंद्र सरकार की असफल आर्थिक नीतियों का दबाव पिछले वर्षों से ही स्पष्ट रूप से देखा गया था जब नवम्बर 2019 में सरकार ने हाउसिंग प्रोजेक्ट के लिए 25 हजार करोड़ रुपये देने का ऐलान किया था जिसमें से 15 हजार करोड़ रुपये एलआईसी को देने पड़े थे। भारतीय जीवन बीमा निगम को सरकार के मुश्किल समय में कर्ज देने वाली उपक्रम के तौर पर देखा जाता रहा है। पिछले कुछ सालों में एलआईसी ने राज्य द्वारा संचालित कंपनियों के कई स्टॉक्स में तो भारी निवेश किया है जिससे एलआईसी भी लगातार घाटे में चल रही थी।

एलआईसी न केवल सरकार को कर्ज देती रही है बल्कि रेलवे, रोड और ऊर्जा सेक्टर को भी फंड देती है। एलआईसी समय-समय पर सरकार के लिए संकट मोचक बन कर उभरी है इसके कई अन्य प्रमाण भी हैं। जैसे –

साल 2016 में जब इंडियन ऑयल का विनिवेश फ्लॉप होता दिख रहा था तब एलआईसी ने इसमें 8,000 करोड़ रुपये का निवेश किया था। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने वर्ष 2019 में बताया था कि राजमार्गों के विकास के लिए साल 2024 तक भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) से सरकार 1.25 लाख करोड़ रुपये का कर्ज लेगी।

एलआईसी ने मार्च 2018 में हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटिड में 2843 करोड़ रुपए का निवेश किया था लेकिन, अब उसकी कीमतों में 38 फीसदी की गिरावट आई है और वो अब 1751 करोड़ रुपए पर आ गई है। एलआईसी ने एमएसटीसी और भारत डाएनमिक्स में भी निवेश किया था, उनकी भी स्थिति काफी खराब है।

एक और उदाहरण नुकसान में चल रही आईडीबीआई बैंक के अधिग्रहण की है,एलआईसी ने सितंबर-दिसंबर 2018 के बीच लगभग 21,624 करोड़ रुपए निवेश किया था। एलआईसी ऊर्जा क्षेत्र के सरकारी उपक्रम एनटीपीसी में भी 40 फीसदी हिस्सेदारी रखती है। अगस्त, 2017 में एलआईसी ने 4,275 करोड़ रुपए का निवेश किया था। ‘भरोसे का प्रतीक’ मानी जानी वाली सरकारी बीमा कंपनी LIC के पिछले पाँच साल के आँकड़े बहुत उत्साहजनक नहीं दिखाई देते।

सरकार की असफल आर्थिक नीतियों की भरपाई करने में जुटी इस बीमा कम्पनी के पिछले पाँच साल में नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स यानी एनपीए दोगुने स्तर तक पहुँच गए हैं।

हालांकि वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण ने 2020 के अपने बजटीय भाषण में ही LIC में प्रारंभिक पब्लिक ऑफर (आईपीओ) के जरिए अपनी हिस्सेदारी बेचने का ऐलान कर दिया था। लेकिन कानूनी अड़चनों और बाजार के प्रतिकूल होने की वजह से पूरे वित्त वर्ष में इस दिशा में कोई पहल नहीं हो सकी। यह भी तय नहीं हो सका कि सरकार एलआईसी में अपनी कितनी हिस्सेदारी बेचेगी। इस साल अप्रैल के बाद सम्भवतः इसकी प्रक्रिया शुरू हो सकती है।

2020 में सरकार के फैसले के खिलाफ सरकारी कर्मचारी संघ ने कड़ी प्रतिक्रिया दी थी कर्मचारी संघ के प्रवक्ता ने संवाददाताओं से कहा था, LIC में सरकार के एक हिस्से को बेचने की योजना का हम कड़ा विरोध करते हैं, यह पहल देश हित के खिलाफ है। कर्मचारी संघों का कहना था कि इस क़दम से करोड़ों बीमा धारक बुरी तरह प्रभावित होंगे। ऑल इंडिया लाइफ़ इंश्योरेंस एम्प्लॉयीज़ फ़ेडरेशन के महासचिव राजेश निम्बालकर ने कहा था, “सार्वजनिक क्षेत्र की दूसरी कंपनियों के लिए जब भी पैसे की ज़रूरत पड़ती है, एलआईसी हमेशा से आख़िरी सहारा रही है। हम एलआईसी में अपने शेयर का एक हिस्सा बेचने के सरकार के फ़ैसले का पुरज़ोर विरोध करते हैं। सरकार का ये क़दम जनहित के ख़िलाफ़ है क्योंकि एलआईसी की तरक्की बीमा धारकों और एजेंटों के भरोसे और समर्पण का विशुद्ध नतीजा है। निम्बालकर के अनुसार- “एलआईसी में सरकारी हिस्सेदारी में किसी भी तरह की छेड़छाड़ से बीमाधारकों का इस संस्थान पर से भरोसा हिला देगा”।

और अब वर्ष 2021 के बजटीय भाषण के जरिए LIC की 10-15 फीसदी हिस्सेदारी को बेचने के आधिकारिक ऐलान की रस्म भी पूरी की जा चुकी है, तो ऐसे में यह सवाल उठना बहुत ही स्वभाविक हो चला है कि आख़िर कब तक सरकार की असफल आर्थिक नीतियों की भरपाई एलआईसी के रकम से की जाएगी जो मूलतः आमजनों की बीमा रकम है? और फिर क्या आमजनों के रकम अब सुरक्षित हैं?

सवाल भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) के उस भरोसे के खात्मे का है जो इस बीमा कम्पनी को आमजनों के बीच “भरोसे का प्रतीक” बनाती है।

(दया नन्द स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)