शंखनाद INDIA/देवेश आदमी/रिखणीखाल पौड़ी-: दीन बन्धु मित्र की सब से बेहतरीन रचनाओं में से एक नील दर्पण नाटक मेरे बेहतरीन नाटकों में से एक हैं। यह नाटक आप किसी भी भाषा में देखो हर पात्र हर घटना आप के इर्दगिर्द घूमने लग जाता हैं। मैं कभी फिल्मों का सौकीन नही रहा मेरी रुचि सिनेमा में नही नाटकों में रही क्यों कि में रंगमंचीय कलाकर को असली कलाकार मानता हूँ। काट छांट कर सिल्वेरस्क्रीन पर cinematography के आधुनिक तकनीक से यदि किसी को चमका भी दिया तो वो क्या चमका। असली कलाकर तो मंच पर दिखता हैं, चाहे पैसों की चकाचौंध ने आज मंच फीके कर दिए हो फिर भी थियेटरों में रुचिवान दर्शकों का टोटा नही हुआ। नील आंदोलन पर लिखी दीनबंधु मित्र का यह नाटक महाकवि कालिदास के मेघदूत श्रीलाल शुल्क की राग दरबारी भारतेंदु हरिशचंद्र की चन्द्रावली दानवीर राजा हरिश्चन्द्र इत्यादि नाटकों के दर्जे का मानता हूँ।
नील आंदलोन की यादें आज सिंधु बॉर्डर पर ताजा हो रही हैं जहां किसान आत्महत्या कर रहे हैं। नीलदर्पण नाटक में लेखक ने बंगाल में नील आंदोलन का बखान किया हैं किसानों द्वारा उगाये गए नील की खेती पर सरकार द्वारा कर लगाया गया था उसी पर आधारित यह नाटक आज भी नील किसानों के दर्द जो उजागर करता हैं। दीनबंधु मित्र जी कहते हैं यदि हम हिन्दू मुस्लिम नही कर रहे होते तो सायद हम रोजी रोटी कमाने की नही रोजी रोटी देने की बाते कर रहे होते। देश का दुर्भाग्य यह रहा कि हम ने राष्ट्र को क्या दिया हम यह नही सोचते हर वक्त यही राग अलापने है कि राष्ट्र ने हमें क्या दिया। 1857 की क्रांति के बाद भी देश में कुछ नही बदला सिर्फ जमीदारों के घर रजवाड़ों में बदले यही बदलाव आया।
देश के अलग अलग प्रांतो में आज भी किसान आंदोलित हैं और तब भी थे। पूर्व में कुछ किसान आंदोलनों ने देश की कृषि नीतियों में जबरदस्त बदलाव किए हैं भारतीय किसानों ने चम्पारण सत्याग्रह,खेड़ा सत्याग्रह,नील विद्रोह,बेगूँ किसान आंदोलन (राजस्थान) प्रमुख रहे हैं। कृषक आन्दोलन का इतिहास बहुत पुराना है और विश्व के सभी भागों में अलग-अलग समय पर किसानों ने कृषि नीति में परिवर्तन करने के लिये आन्दोलन किये हैं ताकि उनकी दशा सुधर सके।मोजुदा दौर में भारत में कृषक आंदोलन तेज गति से बढ़ रहे है। इसका मुख्य कारण कृषक की आर्थिक हालत दिन प्रति दिन कमजोर हो रही है और वो कर्ज के मकड़ जाल में फंस रहा फर्क इतना हैं पहले के साहूकार अब बिजनेस मैन कहलाने लगे।
मौजूद दौर में कृषि में लागत बढ़ रही है आमदनी घट रही है। इस सब के लिए हरितक्रांति आई थी अगर किसानों की आय में हरितक्रांति भी बढ़ोतरी नही कर सकी। विगत 70 वर्षों में किसानों की आय में मात्र 19% की बढ़ोतरी आई हैं जब कि राज्य व केन्द्र सरकार बेतनभोगियों के पगार में 210% की बढ़ोतरी हुई हैं और विधायक सांसद निजी सचिव के पगार में 254% की बढ़ोतरी आई हैं। इस कारण से किसानो में आत्महत्या की घटनाए बढ़ रही है ।
दूसरी तरफ लोग कृषि निति बदलवाने के लिए संघर्ष कर रहे है ।बर्ष 2017 में देश में छोटे बड़े सैकड़ो आंदोलन देश में हुए है सरकार को कृषि के सम्बन्ध में बोलने पर मजबूर किया है जिस में महारास्ट्र का जून 17 मेंगाँव बन्द हो चाहे नासिक से मुम्बई तक का मार्च हो राजस्थान में पानी व् बिजली के सवालो पर आंदोलन हरियाणा में 2015 में नरमें की फसल के खराबे पर मुअब्जे की मांग का आंदोलन हो तमिलनाडु के किसानो का महीनो तक संसद मार्ग पर धरना आदि मुख्यत रहे है।
दिल्ली की सीमाओं पर बैठे लाखों किसान एक नई इबारत लिखने जा रहे हैं। किसानों की मांगें जायज हैं या नाजायज यह समय के गर्भ में छिपा हैं। पर 43 किसानों की मौत बताता हैं अब मामला निचले स्तर पर नही रहा। नोटबन्दी में तो इस के 2 गुना अधिक लोग मरे थे जिसे आज सत्ता पक्ष भूलना चाहती हैं। वर्तमान मामलों में सरवोच्च न्यायालय भी हस्तक्षेप के मूड में नही हैं। वरना महामहिम के निर्णय पर विचार किया जा सकता था।