नई दिल्ली। साकेत जिला अदालत ने फर्जी कानून की डिग्री और जाली दस्तावेजों के आधार पर खुद को वकील के रूप में नामांकित कराने के आरोपी जे. वंसंथन को बड़ी राहत देने से इनकार कर दिया है। अदालत ने आरोपी की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि आरोप अत्यंत गंभीर हैं और मामले में एक संगठित साजिश की आशंका है, जिसकी परतें खोलने के लिए आरोपी से हिरासत में पूछताछ आवश्यक हो सकती है।
यह आदेश अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश शुनाली गुप्ता की अदालत ने दिया। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि आरोप केवल आवेदक तक सीमित नहीं हैं, बल्कि जांच में ऐसे अन्य लोगों के नाम भी सामने आए हैं, जो कथित तौर पर फर्जी दस्तावेजों के आधार पर दिल्ली बार काउंसिल में नामांकन कराने वाला एक सिंडिकेट चला रहे हैं। अदालत के अनुसार, पूरे षड्यंत्र का खुलासा करने और इसके अन्य सदस्यों तक पहुंचने के लिए आरोपी से कस्टोडियल पूछताछ जरूरी है। ऐसे में इस स्तर पर अग्रिम जमानत देने का कोई आधार नहीं बनता।
अदालत को बताया गया कि आरोपी ने कथित तौर पर फर्जी कानून की डिग्री और मार्कशीट के आधार पर दिल्ली बार काउंसिल में वकील के रूप में नामांकन हासिल किया था। बाद में दस्तावेजों की जांच में उनके जाली होने का खुलासा हुआ, जिसके बाद उसे वकालत से निलंबित कर दिया गया।
अग्रिम जमानत की मांग करते हुए वंसंथन ने दावा किया कि उसने उत्तर प्रदेश स्थित भारतीय शिक्षा परिषद से कानून की पढ़ाई की थी और कुछ बिचौलियों के जरिए बार काउंसिल में नामांकन के लिए आवेदन किया। उसने यह भी कहा कि नामांकन के लिए उसने दो व्यक्तियों को 95 हजार रुपये नकद दिए थे और बाद में उसे पता चला कि बुंदेलखंड विश्वविद्यालय के नाम से जारी फर्जी दस्तावेज उसकी जानकारी के बिना जमा कर दिए गए।
हालांकि, अदालत ने स्पष्ट किया कि आरोपी ने बुंदेलखंड विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई नहीं की है और जिस भारतीय शिक्षा परिषद से पढ़ाई करने का दावा किया गया है, वह कानून की डिग्री देने के लिए मान्यता प्राप्त विश्वविद्यालय नहीं है।
इस मामले में आरोपी के खिलाफ आठ अक्तूबर 2025 को हौज खास थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। अदालत ने मामले की गंभीरता को देखते हुए फिलहाल किसी भी प्रकार की राहत देने से इनकार कर दिया।
