उत्तरकाशी आपदा की वजह

5 अगस्त को दोपहर करीब 1:50 पर खीर गंगा में बादल फटने से तबाही का आलम शुरू हुआ। कुछ ही घंटों के भीतर उत्तरकाशी में दो और जगह बादल फटे जिसने उत्तरकाशी में तबाही मचा दी। धराली में बादल फटने से जो मलबे का सैलाब आया वो अपने साथ पूरे धराली बाजार को बहा ले गया। अब तक 4 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है और 70 से ज्यादा लोग लापता है।

उत्तरकाशी में बादल फटने की ये मानी जा रही वजह

वैज्ञानिकों की मानें तो उत्तरकाशी में बादल फटने की सबसे बड़ी वजह Mediterranean Sea से उठने वाले Western Disturbance का हिमालय से टकराना है। साल 2013 में केदारनाथ में भी इसी वजह से आपदा आई थी। सालों बाद अब फिर से उत्तरकाशी में भी सेम पैटर्न दिखाई दे रहा है। रिसर्चर और लेखक महिपाल नेगी के मुताबिक आज जो इलाका मलबे से पट गया गया है दरअसल वो एक ज़माने में खीरगंगा का पुराना बगड़ और थाला था और गांव ऊंचाई पर बसता था। जबकि नीचे के मैदान जहां आज होटल और होमस्टे हैं वो नदी का प्राकृतिक फ्लड प्लेन था।

यहां घाट, घराट और मवेशियों के चरने की जगहें होती थीं। लेकिन अब इन्हीं फ्लड प्लेन में पक्की इमारतें बना दी गई हैं।
पर्यटन के दबाव और आधुनिकता की अंधी दौड़ में लोग पहाड़ों में अनप्लांड कनस्ट्रक्शन हो रहा है। ये ही आपदाओं को सीधा न्योता है। पर्यावरणविद और वैज्ञानिक भी सालों से यही बात कहते आ रहे हैं।

कैरींग कैपेसीटी पर उठ रहे सवाल

धराली के परिपेक्ष में पर्यावरणविदों की मानें तो यहां की आबादी कैरींग कैपेसीटी से कही ज्यादा हो गई है। लेकिन शासन-प्रशासन ने कभी इस बात पर ध्यान नहीं दिया। हैरानी बात तो ये है कि लोग नदी के फ्लड प्लेन में कनस्ट्रक्शन करते चले रहे लेकिन प्रशासन द्वारा उन्हें रोकने की तो छोड़िए चेतावनी भी नहीं दी गई।

शुरुआत में धराली में हुए हादसे को ग्लेशियर लेक का फटना माना जा रहा था। लेकिन वैज्ञानिकों का कहना है शायद जंगलों के बीच कहीं पानी रुका था जो तेज़ ढलान की वजह से अचानक बह निकला। कई विशेषज्ञ बड़े अमाउंट में पेड़ों के कटान और ग्लोबल वार्मिंग को भी इसका ज़िम्मेदार मानते हैं हालांकि अभी तक आपदा की सही वजहों का पता नहीं लग पाया है लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है की अगर ऐसा ही चलता रहा हो तो आने वाले वक्त में उत्तराखंड के और इलाकों से भी ऐसी ही तस्वीरें सामने आ सकती हैं।