शंखनाद INDIA / हल्द्वानी। दीपावली के बाद मनाए जाने वाले पर्व को आमतौर पर भैया दूज के नाम से जाना जाता है। कुमाऊं अंचल में इस पर्व को को दूतिया त्यार (यम द्वितीया पर्व) Dutiya Tyar के रूप मनाने की परंपरा है। यम द्वितीया की तैयारी कुछ दिन पहले से ही शुरू हो जाती है। एकादशी, धनतेरस या दीपावली के दिन तौले (एक बर्तन) में धान भिगोकर रख दिए जाते हैं। गोवर्धन पूजा के दिन धान को पानी से अलग कर कढ़ाई में आग पर भूना जाता है। उसके बाद इसे गरम-गरम मूसल से कूटा जाता है। यह धान से चावल को अलग करने का पारंपरिक तरीका है। आग में भूने होने की वजह से चावल स्वादिष्ट होता है। इसे च्यूड़े कहा जाता है।च्यूड़े देवताओं और सिर पर चढ़ाने के साथ खाए भी जाते हैं। च्यूड़े में अखरोट, भूनी भांग व सोयाबीन मिलाया जाता है। शर्दियों में इसका सेवन गर्माहट देता है। संस्कृति कर्मी जगमोहन रौतेला कहते हैं कि च्यूड़े बनाने से पहले धूप जलाकर ओखल की पूजा की जाती है। ओखल की पूजा का मतलब है कि उसमें कूटा हुआ अनाज पूरे परिवार को साल भर खाने को मिले और परिवार में किसी को भी भूखे पेट न सोना पड़े।यम द्वितीया की सुबह पूजा इत्यादि के बाद घर की सबसे सयानी महिला च्यूड़ों को सबसे पहले देवताओं को अर्पित करती हैं। उसके बाद परिवार के हर सदस्य के सिर में चढ़ाती हैं। च्यूड़ों में सरसों का तेल और हरी दूब मिलाई जाती है। ज्योतिषाचार्य डा. नवीन चंद्र जोशी बताते हैं कि दूब गुणकारी है। तमाम संकटों और विपरीत परिस्थितियों में भी दूब अपना विस्तार नहीं छोड़ती। दूब हमें संघर्षों से जूझते हुए अपने उद्देश्य की ओर बढऩे का संदेश देती है। जगमोहन रौतेला कहते हैं कि सिर पर च्यूड़े चढ़ाने का संबंध भाई-बहन से नहीं है। विवाहित महिला परिवार में हर एक के सिर पर चढ़ाती हैं। स्थानीय लोक परंपरा के मुताबिक इसमें थोड़ा बहुत अंतर रहता है।