Shankhnaad India Exclusive: उत्तराखंड में सख्त भू-कानून BhooKanoon  और भारत के संविधान की 5वीं अनुसूची में राज्य को शामिल करने की मांग तेजी से बढ़ रही है।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने सितम्बर में प्रेस वार्ता में घोषणा की कि आगामी विधानसभा बजट सत्र के दौरान उनकी सरकार सख्त भू-कानून पेश करने जा रही है। इसके तहत नगर निगम क्षेत्र से बाहर 250 वर्ग मीटर से अधिक भूमि खरीदने वालों का विवरण तैयार किया जाएगा। इस कदम का उद्देश्य राज्य के संसाधनों की सुरक्षा और भूमिगत भूमि सौदों को नियंत्रित करना है। जाने इसकी चुनौतियां, इतिहास और होने वाले बदलावों के विषय में:

 

चुनौतियां:
जमीनों का विवरण तैयार करना: 250 वर्ग मीटर से अधिक भूमि खरीदने वालों का विवरण तैयार करना राज्य सरकार के लिए कठिन हो सकता है। एडवोकेट एनके सरीन के अनुसार, यह प्रक्रिया समय-साध्य और महंगी हो सकती है।

परिवार के नाम पर खरीदी गई जमीन: यदि किसी व्यक्ति ने अपने परिवार के नाम पर जमीन खरीदी है, तो उसका पता लगाना मुश्किल हो सकता है। इसके अलावा, अगर जमीन का मालिक बदल गया है, तो कार्रवाई किस पर की जाएगी, यह भी एक बड़ा सवाल है।

संभावित समाधान:
उद्देश्य के विपरीत उपयोग: एडवोकेट सरीन के अनुसार, अगर जमीन का उपयोग उसके निर्धारित उद्देश्य के विपरीत किया जा रहा है, तो उसे ढूंढना और कार्रवाई करना सरकार के लिए आसान हो सकता है।

वरिष्ठ पत्रकार जय सिंह रावत की राय:
जय सिंह रावत के अनुसार, 250 वर्ग मीटर कृषि भूमि के प्रावधान के इतर खरीदी गई जमीनों का विवरण तैयार करना सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण होगा। कई जमीनें अब नगर निकाय क्षेत्र में आ गई हैं, जहां भू-कानून लागू नहीं होता। ऐसे में सरकार को इन मामलों में स्पष्ट नीति बनानी होगी।

कैबिनेट मंत्री सुबोध उनियाल का बयान:
सुबोध उनियाल ने कहा कि सरकार जनहित को ध्यान में रखते हुए भू-कानून BhooKanoon में संशोधन कर रही है। भू-कानून में यह प्रावधान है कि जिस उद्देश्य के लिए जमीन खरीदी गई है, उसके दो साल के भीतर निर्माण कार्य होना चाहिए। अगर जमीन का उपयोग निर्धारित उद्देश्य के विपरीत किया जाता है, तो उसे राज्य सरकार में निहित किया जाएगा।

 

भू-कानून का इतिहास:

ब्रिटिश काल का विशेष दर्जा: ब्रिटिश शासन के दौरान, यूपी के पहाड़ी जिलों को ट्राइब स्टेट्स का विशेष दर्जा प्राप्त था। लेकिन, आजादी के बाद यूपी सरकार ने यह दर्जा छीन लिया।

1971 का बदलाव: यूपी सरकार ने 1971 में पहाड़ी जिलों का ट्राइब स्टेट्स खत्म कर दिया, जिससे पहाड़ी लोगों को मिलने वाले अतिरिक्त अधिकार समाप्त हो गए।

जौनसार बाबर अपवाद:
उत्तराखंड के जौनसार बाबर क्षेत्र में अभी भी विशेष कानून लागू हैं, जिससे बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदना मुश्किल है और निवासियों को चार प्रतिशत आरक्षण मिलता है।

5वीं अनुसूची के फायदे:
संपत्ति की सुरक्षा: 5वीं अनुसूची में शामिल होने से जल, जंगल और जमीन की सुरक्षा होगी।

शैक्षणिक और रोजगार आरक्षण: केंद्रीय शिक्षण संस्थानों और नौकरियों में 7.5 प्रतिशत आरक्षण का लाभ मिलेगा।

संसाधनों की रक्षा: संसाधनों के दोहन पर रोक लगेगी।

कानूनी विशेषज्ञ की राय:
वरिष्ठ एडवोकेट सीके शर्मा के अनुसार, संविधान का अनुच्छेद 244 राष्ट्रपति को किसी राज्य को ट्राइबल स्टेट घोषित करने की शक्ति देता है, जिससे राज्य के लोग अपनी संस्कृति और संसाधनों की रक्षा कर सकें। बाहरी लोग बिना नियमों के प्रदेश में जमीन नहीं खरीद सकते।

 

भू-कानून में बदलाव:
2003 का भू-कानून: उत्तराखंड के गठन के बाद, नारायण दत्त तिवारी सरकार ने भू-कानून अधिनियम लागू किया था, जिसमें नगर निगम क्षेत्र से बाहर 500 वर्ग मीटर भूमि खरीदने की सीमा निर्धारित की गई थी।

2007 का संशोधन: भुवन चंद्र खंडूड़ी सरकार ने इस सीमा को घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया।

2018 का अध्यादेश: त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार ने 2018 में भू-कानून में संशोधन कर अधिकतम सीमा समाप्त कर दी, जिससे कोई भी व्यक्ति कितनी भी जमीन खरीद सकता है, लेकिन आवास बनाने के लिए 250 वर्ग मीटर की सीमा बरकरार रही।

वर्तमान स्थिति:
सीएम पुष्कर सिंह धामी ने भू-कानून को सख्त करने की दिशा में कदम उठाए हैं। 2022 में उन्होंने भू-कानून की मांग को देखते हुए एक समिति का गठन किया और बाहरी व्यक्तियों द्वारा खरीदी गई जमीन की जांच के लिए एक रिपोर्ट तैयार करने के निर्देश दिए।

उत्तराखंड में सख्त भू-कानून लागू करने और 5वीं अनुसूची में शामिल होने की मांग पहाड़ी जिलों के लोगों की सुरक्षा, संसाधनों की रक्षा और अतिरिक्त आरक्षण के लिए महत्वपूर्ण है। सरकार के प्रयास और कानूनी सुधार इस दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकते हैं।

 

 

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