अनजाने में बीमारी को न्यौता तो नहीं दे रहे आप
अशोक लोहनी/बागेश्वर:

बच्चों में मोबाइल का प्रयोग काफी बढ़ता जा रहा है। कोविड काल में मजबूरी बने मोबाइल का प्रयोग अभिभावक अब भी कम नहीं कर पा रहे हैं। मोबाइल के अधिक प्रयोग से सामाजिक नुकसान के साथ ही शारीरिक बीमारियां पैदा हो रही हैं। अनजाने में अभिभावक अपने बच्चों के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

कोविड काल के बाद बच्चों में मोबाइल का प्रयोग अधिक बढ़ गया। अब स्थिति सामान्य हो गई परंतु मोबाइल मासूमों के जीवन का भी अंश बना हुआ है। मोबाइल के प्रयोग के दौरान गर्दन झुकानी होती है जिससे टेक्स्ट नेक की समस्या हो रही है जिसमें गर्दन टेढ़ी हो सकती है। साथ ही आंखों पर इसका असर पड़ रहा है। एक जगह बैठकर मोबाइल के प्रयोग से शारीरिक हरकत न होने से मोबाइल मांसपेशियों और हडिडयों से जुड़ी कई समस्याएं बहुत कम उम्र में परेशान कर सकती है तथा स्क्रीन को लगातार देखने से विस्तृत नजरिये की समस्या हो रही है। शारीरिक खेलों में शामिल न होने पर सहनशीलता कम हो रही है जिससे थकान, कम शक्ति, बदन दर्द जैसी समस्याएं उत्पन्न हो रही हैं।

सामाजिक संबंधों में बनी कमी
बागेश्वर। मोबाइल पर संपूर्ण अधिकार व नियंत्रण होने के कारण बाहरी दुनियां के रिष्ते व संबंधों के साथ समन्वय समाप्त हो रहा है। जहां समाज खाली समय में आपस में बैठकर सामंजस्य स्थापित करता था वहीं अब वह मोबाइल में समय व्यतीत कर रहा है। लोगों से संपर्क कम होने के कारण व्यवहारिक समस्या और अन्य के संपर्क न होने से समस्या हो रही है

मोबाइल को ही अपनी दुनियां मान लेने से कई बीमारियां हो रही हैं साथ ही लड़ाई झगडे, सड़क हादसे व आत्मघाती प्रवृत्तियां बढ़ रही हैं। पेरिफेरल व्यू, टेक्स्ट नेक जैसी बीमारियां हो रही हैं। अभिभावक को चाहिए कि वह बच्चों के साथ समय ब्यतीत करें तथा उन्हें सामाजिक ज्ञान, देश भक्ति व धार्मिक कहानियों की पुस्तकें दें। यदि समय पर चेते नहीं तो आने वाले समय में यह गंभीर समस्या धारण कर लेगी व बच्चों में कई बीमारियां होने लगेंगी।

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