नई दिल्ली। पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को कड़ा संदेश देते हुए जल नीति पर बड़ा कदम उठाया है। केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर में चिनाब नदी पर 1,856 मेगावाट क्षमता वाली सवालकोट जलविद्युत परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी की सिफारिश कर दी है। यह कदम सिंधु जल संधि (Indus Waters Treaty) के निलंबन के बाद भारत की जल-नीति में निर्णायक बदलाव का संकेत माना जा रहा है।
करीब चार दशकों से लंबित यह परियोजना अब पुनर्जीवित हो रही है। राष्ट्रीय जलविद्युत निगम (एनएचपीसी) द्वारा संचालित यह रन-ऑफ-द-रिवर योजना 31,380 करोड़ रुपए की अनुमानित लागत से जम्मू-कश्मीर के रामबन, रियासी और उधमपुर जिलों में विकसित की जाएगी। इसमें 192.5 मीटर ऊंचा कंक्रीट बांध और भूमिगत बिजलीघर शामिल होगा, जो हर साल लगभग 7,534 मिलियन यूनिट बिजली उत्पादन करेगा।
केंद्र का यह कदम उस घोषणा के बाद आया है जिसमें सरकार ने पहलगाम आतंकी हमले के उपरांत सिंधु जल संधि को निलंबित करते हुए भारत को सिंधु, झेलम और चिनाब नदियों पर स्वतंत्र रूप से परियोजनाएं विकसित करने की अनुमति दी थी। सिंधु जल संधि के तहत तीन पूर्वी नदियां (रावी, व्यास, सतलुज) भारत को और तीन पश्चिमी नदियां (सिंधु, झेलम, चिनाब) पाकिस्तान को आवंटित थीं। भारत को अब इन पश्चिमी नदियों पर जलविद्युत उत्पादन, नौवहन और मत्स्य पालन के सीमित अधिकार प्राप्त हैं।
26 सितंबर को हुई पर्यावरण मंत्रालय की विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति (EAC) की बैठक में एनएचपीसी के संशोधित प्रस्ताव की समीक्षा के बाद मंजूरी की सिफारिश की गई। जुलाई में परियोजना को चरण-I वन मंजूरी मिल चुकी है। परियोजना क्षेत्र में कुल 1,401 हेक्टेयर भूमि शामिल है, जिसमें 847 हेक्टेयर वन क्षेत्र है। एनएचपीसी ने पर्यावरण प्रबंधन योजना के तहत 594 करोड़ रुपए शमन और पुनर्स्थापन कार्यों पर खर्च करने का प्रस्ताव दिया है।
सवालकोट परियोजना से रामबन जिले के 13 गांव प्रभावित होंगे और करीब 1,500 परिवारों का पुनर्वास किया जाएगा। कंपनी ने प्रभावित परिवारों को आवास, रोजगार और कौशल विकास सहायता देने की योजना बनाई है। निर्माण चरण में लगभग 1,500 लोगों को रोजगार मिलेगा, जबकि संचालन के दौरान 200 तकनीकी पद सृजित होंगे।
1980 के दशक में प्रस्तावित यह परियोजना वर्षों तक वन मंजूरी और पर्यावरणीय विवादों के कारण अटकी रही। अब केंद्र द्वारा रणनीतिक दृष्टि से इसे पुनः स्वीकृति देने के फैसले को विशेषज्ञ भारत की जल-राजनयिक रणनीति में बड़ा बदलाव मान रहे हैं — जो पाकिस्तान को स्पष्ट संकेत देता है कि पानी पर पुरानी रियायतों का दौर अब खत्म हो चुका है।