मुस्लिम युवाओं ने बडगाम के ओमपोरा गांव के निवासी कश्मीरी पंडित जगननाथ कौल का पूरी तरह से हिन्दू रीति रिवाज से उनका अंतिम संस्कार किया। जगननाथ कौल एनसीसी में नौकरी करते थे और आतंकवाद के बावजूद वे गांव छोड़ कर नहीं गए थे। कश्मीरी पंडितों के पलायन के बाद से ही बचे खुचे कश्मीरी पंडितों के लिए आज भी उनके कश्मीरी मुस्लिम पड़ोसी उनके काम आते हैं।

चाहे पिछले 33 सालों से पाक समर्थक आतंकियों ने लाख कोशिशें की हों पर कश्मीर में आज भी कश्मीरियत जिन्दा है। कश्मीरियत के मायने होते हैं आपसी सौहार्द और भाई चारा जिसमें धर्म नहीं होता और धर्म की चर्चा नहीं होती।

ऐसी ही मिसाल एक बार फिर कश्मीर के उस इलाके से देखने को मिली है जहां सिर्फ बारूद की गंध ही फिजां में महका करती है। वैसे यह कोई पहली बार नहीं था कि कश्मीरी मुस्लिमों ने अच्छे पड़ोसी का फर्ज निभाते हुए कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार किया था।

कश्मीर अब कश्मीरियत की उस मिसाल के लिए भी पहचान बना चुका है जिसे नेस्तनाबूद करने की साजिशें अभी भी रची जा रही हैं। मुस्लिमों द्वारा कश्मीरी पंडित का अंतिम संस्कार करना, उनके अंतिम संस्कार के लिए लकड़ियों तथा अन्य सामग्रियों का इंतजाम कोरोना काल में करना वाकई कश्मीरियत को सलाम ठोंकने जैसा है।

इस दौरान ओमपोरा में मुस्लिम समुदाय के लोगों ने इंसानियत की अनूठी मिसाल पेश की है। मौत की खबर मिलते ही इलाके के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने उनके घर पहुंचकर परिवार की मदद की। साथ ही मृतक के अंतिम संस्कार के लिए आवश्यक सामान की व्यवस्था की।