मनोज सरकार उत्तराखंड के पहले ऐसे खिलाड़ी हैं, जिन्हें टोक्यो पैरालंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है। देश को पूरी उम्मीद है कि मनोज पदक लेकर ही वापस लौटेंगे। आज हम मनोज की सफलता देख रहे हैं, लेकिन यहां तक पहुंचने के लिए मनोज ने कितना संघर्ष किया, इसका आप अंदाजा भी नहीं लगा सकते। रुद्रपुर के गरीब परिवार में जन्में मनोज सरकार को आर्थिक तंगी के चलते बचपन में पंचर जोड़ने, खेतों में दिहाड़ी मजदूरी करने और घरों में पीओपी के काम करने पड़े थे। उन्होंने बैलगाड़ी से मिट्टी की ढुलान भी की। हर खबर पर हैं शंखनाद न्यूज़ की नज़र ….

सफलता की कहानी …

आपकप बताते हैं, बचपन में एक दवा के ओवरडोज से उनके एक पैर ने काम करना बंद कर दिया था। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के चलते वह अच्छे डॉक्टर से पांव का इलाज नहीं करा पाए। मनोज को बचपन से ही बैडमिंटन खेलने का शौक था, ऐसे में मां जमुना सरकार ने मजदूरी से जुटाए रुपयों से उन्हें बैडमिंटन खरीदकर दिया। मनोज बताते हैं कि पांव की कमजोरी के चलते साथी बच्चे उन्हें लंगड़ा कहकर चिढ़ाया करते थे। अगर उनकी शटल टूट जाती तो बच्चे उन्हें अपने साथ खेलने भी नहीं देते थे। अपाहिज होने के तानों से तंग आकर मनोज ने बैडमिंटन खेलने का विचार छोड़ दिया था। फिर टीवी में बैडमिंटन की वॉल प्रैक्टिस (दीवार में शटल को मारकर प्रैक्टिस) देखने के बाद उन्होंने घर पर ही अभ्यास शुरू किया। हाईस्कूल के दौरान ट्यूशन पढ़ने के बाद मनोज दिन का खाना न खाकर सीधे बैडमिंटन की प्रैक्टिस करते थे। इस तरह बचपन के संघर्ष की बदौलत वो आज शानदार मुकाम हासिल कर पाए हैं। अभी तक वह 33 देशों में अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताएं खेल चुके हैं। जबकि 47 मेडल अर्जित किए हैं। मनोज ने कहा कि पैरालंपिक मुकाबले को लेकर मैं अपना सर्वश्रेष्ठ दूंगा और पूरे जी-जान से देश के लिए गोल्ड मेडल जीतने की कोशिश करूंगा। उत्तराखंडवासियों को भी पूरी उम्मीद है कि मनोज देश के लिए स्वर्ण पदक लेकर आएंगे। खिलाड़ियों ने मनोज को टोक्यो पैरालंपिक में खेलने के लिए शुभकामनाएं दी हैं।

 

 

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