Igaz festival : उत्तराखंड में बड़े ही धूम धाम के साथ आज इगाज पर्व मनाया गया , सीएम धामी ने जहां पत्नी गीता के साथ मुख्यमंत्री आवास देहरादून में गौ-पूजन कर प्रदेशवासियों की सुख- समृद्धि एवं खुशहाली की कामना की, वहीं कैबिनेट मंत्री रेखा आर्य ने इगाज पर्व पारम्परिक जौनसार -बाबर की वेशभूषा में नजर आई जगह जगह इगास पर्व की धूम देखने को मिली —-

लेकिन हमारा आपसे सवाल ये है कि क्या आप जानते है कि उत्तराखंड में इगास पर्व क्यों मनाया जाता है इस पर्व के क्या मायने है इसका क्या महत्व है अगर आप भी इन सवालों के सवाल जानना चाहते है तो हमारे इस लेख को जरुर पढ़े —

सांस्कतिक और पारम्परिक त्यौहारो में से एक है इगाज
इगास बगवाल उत्तराखंड का वो सांस्कतिक और पारम्परिक त्यौहार जिसे उत्तराखंड वासी सदियों से मनाते आ रहे. दिपावली के ठीक 11 दिन बाद मनाए जाने वाला ये त्यौहार एक र जहां उत्तराखंड की लुप्त हो रही सांस्कति को दर्शाता है तो वहीं इतिहास के कुछ अनछुए पन्ने भी पलटता है । इतिहास जो एक युध्द की कहानी कहता है ।

इसलिए मनाया जाता है इगाज
ये बात है कि आज से करीब 400 साल पहले की जब उत्तराखंड के टिहरी जिले में महिपति शाह नाम के एक राजा हुआ करते थे, एक बार की बात है कि टिहरी के राजा ने अपनी सेना को तिब्बत से युद्ध करने का आदेश दिया । राजा ने गढ़वाल की वीर भड़ माधो सिंह भंडारी जो कि उस समय टिहरी की सेना के सेनापति हुआ करते थे उन्हें सेना के साथ तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा। लेकिन टिहरी की सेना के तिब्बत रवाना होने के कुछ दिन बाद ही दिपावली का त्यौहार आ गया लेकिन क्योंकि दिपावली तक टिहरी सेना का कोई भी सैनिक युद्ध से वापस नही लौटा था इसलिए किसी ने भी इस साल दीपावली नहीं बनाई लोगों ने सोचा कि माधो सिंह भंडारी और उनकी सेना युद्ध में शहीद हो गए , टिहरी सेना का टिहरी वापस ना लौटना सबसो चिंतित कर रहा था लेकिन लोगों की चिंता दिपावली के ठीक 11 दिन बाद तब दूर हुई जब दिवाली के 11 दिन बाद माधो सिंह भंडारी और अपने सैनिकों के साथ युद्ध जीत तिब्बत से टिहरी वापिस लौट आए।

ऐसे पड़ा इगास नाम
युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई थी। और क्योकिं उस दिन एकादशी का दिन था इसलिए इस पर्व को इगास नाम दिया गया और तब से लेकर आज तक यह त्यौहार इगास नाम से दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाता है।