प्रभुपाल सिंह रावत/रिखणीखाल:
आये दिन हर रोज समाचार पत्रों,न्यूज पोर्टल,न्यूज टी वी चैनल व सोशल मीडिया में लगातार पहाड़ी क्षेत्रों में वन्य जीवों (गुलदार,बाघ,भालू) का खतरा व आतंक की खबरें तैरती रहती हैं।
पहले समय में ये वन्य जीव जंगलों में पत्थरों के आड़ में बने गुफाओं व कन्दराओ में दुबके रहते थे लेकिन जैसे जैसे मानव जाति ने अपने दूर दराज के खेत बंजर छोडे तब से ये वन्य जीव गांवों के नजदीक झाड़ियों में घात लगाये बैठे रहते हैं कि कब कौन शिकार बने।पालतू पशुओं को नहीं पालने से ये खतरा बढ़ा है ,पहले पालतू पशु जंगलों में चुगने के लिए ले जाते थे तो झाड़ियां व घास कम रहता था,कुछ वे खा जाती थी कुछ उनके पैरों से कुचल जाता था।कुछ उनके लिए घास के रूप में काटते थे।जब खेती करते थे तो लोग अपने खेतों के मेढो की झाड़ी स्वयं काटते थे।अब गाँव के आसपास झाड़ी व घास ही नजर आता है,जिसमें ये खूंखार आदमखोर वन्य जीव मानव जाति का शिकार करने को घात लगाकर आतुर रहते हैं।
आजकल गांवों को शौच मुक्त करने के लिए भी अनिवार्य शौचालय बने हैं।रात्रि में गाँव व घरों के आसपास घुप अंधेरा पसरा रहता है।लोग बिजली बिल बचाने के चक्कर में घर के बाहर एक बल्ब तक नहीं जलाते।कहा जाता है कि वन्य जीव आग व रोशनी को देखकर दूर भागता है।वैसे गांवों में दो चार सोलर पावर लाइट सिस्टम लगे हैं लेकिन वे पूरे गाँव में रोशनी देने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।अमूमन देखा गया है कि अब शाम होते ही लोग घरों के अन्दर दुबक जाते हैं,उनके लिए बाहर शौच प्रसाधन करना भी खतरे से खाली नहीं है,और वे बाहर आने को कतराते हैं।
यदि सरकार बहादुर गाँवो में सोलर पावरप्लांट सिस्टम की संख्या में इजाफा कर दे या फिर शहरों की भांति विद्युत खम्भों पर एल ई डी बल्ब की रोशनी से जगमगा दे तो गाँव की किस्मत व सूरत ही बदल जायेगी।रात्रि में चारों तरफ उजाला ही रहे तो इन खूंखार जंगली जानवरों से काफी हद तक बचाव हो सकता है।अन्त में उत्तराखंड सरकार के तेजतर्रार,युवा व लोकप्रिय मुख्य मंत्री जी से आग्रह है कि वन्य जीवों के खतरे व आतंक से बचाव के लिए इस प्रकार के समुचित कदम उठाये।तब कैसे राहत नहीं मिलेगी,तथा बराबर मोनिटरिंग होती रहे।