बीते शुक्रवार को उत्तराखंड का पारंपरिक लोक पर्व इगाज धूमधाम से मनाया गया प्रदेश में विभिन्न जगह कार्यक्रमों का आयोजन किया किया उत्तराखंड की जनता ने भैलो खेलकर अपनी संस्कृति को उजागर करने का काम किया ना सिर्फ आम लोग बल्कि मंत्रियों से लेकर अधिकारियों ने भी इस पर्व को धूमधाम से मनाया , मुख्यमंत्री से लेकर आम लोग अपने लोक पर्व को मनाते हुए खुलकर नाचे बता दें, कि देहरादून स्थित मुख्यमंत्री आवास पर इगास पर्व पर लोकगीतों व पारंपरिक नृत्य के साथ मंत्रियों ने भैलो भी खेला मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के साथ पूर्व सीएम रमेश पोखरियाल निशंक और गणेश जोशी भी कार्यक्रम में भैलो खेलते नजर आए यह तस्वीरें जिसने भी देखी वह उत्तराखंड की संस्कृति की ओर आकर्षित हुआ ।

कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या भी खेला भैलो
कैबिनेट मंत्री रेखा आर्या ने मुख्यमंत्री आवास में आयोजित कार्यक्रम में शिरकत की इस अवसर मंत्री रेखा आर्या ने भैलो खेला और सभी प्रदेशवासियों को इस लोकपर्व की बधाई व शुभकामनायें दी। मंत्री रेखा आर्य ने उत्तराखंड की परंपराओं और संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी नई पीढ़ी को सौपते हुए ये कहा कि उत्तराखंड की अपनी संस्कृति के कारण एक अलग पहचान है लेकिन वर्तमान में हम कहीं ना कहीं अपनी संस्कृति व लोकपर्व को भूलते जा रहे है अपने परंपराओं और संस्कृति को बचाने की जिम्मेदारी हमारी नई पीढ़ी की है, ऐसे में अपनी संस्कृति, रीति रिवाज और परंपराओं को संजोय रखने के लिए हमें कई अहम कदम उठाने की जरूरत है ताकि हम अपनी अलग पहचान कायम रख सकें।

दिल्ली में इगाज की धूम
खास बात यह है कि इस पर्व की धूम की केवल उत्तराखंड ही नहीं राजधानी दिल्ली तक सुनाई दी जब दिल्ली में राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी ने अपने सरकारी आवास पर इगास पर मनाया प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उत्तराखंड वासियों को इगाज पर्व की बधाई दी। बता दें, कि प्रदेश में पहली बार इगाज पर्व पर ऐसे नजारे देखने को मिल प्रदेश में जगह जगह पर आयोजित कार्यक्रमों ने ये बात तो साफ करदी प्रदेश की जनता आज भी अपनी सस्कंति को धरोवर के रुप में संभाले हुए है

ऐसे शुरु हुई थी इगाज को मनाने की रीत
वो धरोवर जो आज से 400 से पहले उत्तराखंड वासियों को सौंपी गई थी ये बात है कि आज से करीब 400 साल पहले की जब उत्तराखंड के टिहरी जिले में महिपति शाह नाम के एक राजा हुआ करते थे, एक बार की बात है कि टिहरी के राजा ने अपनी सेना को तिब्बत से युद्ध करने का आदेश दिया । राजा ने गढ़वाल की वीर भड़ माधो सिंह भंडारी जो कि उस समय टिहरी की सेना के सेनापति हुआ करते थे उन्हें सेना के साथ तिब्बत से युद्ध करने के लिए भेजा। लेकिन टिहरी की सेना के तिब्बत रवाना होने के कुछ दिन बाद ही दिपावली का त्यौहार आ गया लेकिन क्योंकि दिपावली तक टिहरी सेना का कोई भी सैनिक युद्ध से वापस नही लौटा था इसलिए किसी ने भी इस साल दीपावली नहीं बनाई लोगों ने सोचा कि माधो सिंह भंडारी और उनकी सेना युद्ध में शहीद हो गए , टिहरी सेना का टिहरी वापस ना लौटना सबसो चिंतित कर रहा था लेकिन लोगों की चिंता दिपावली के ठीक 11 दिन बाद तब दूर हुई जब दिवाली के 11 दिन बाद माधो सिंह भंडारी और अपने सैनिकों के साथ युद्ध जीत तिब्बत से टिहरी वापिस लौट आए।

युद्ध जीतने और सैनिकों के घर पहुंचने की खुशी में उस समय दिवाली मनाई थी। और क्योकिं उस दिन एकादशी का दिन था इसलिए इस पर्व को इगास नाम दिया गया और तब से लेकर आज तक यह त्यौहार इगास नाम से दीपावली के 11 दिन बाद मनाया जाता है